Wednesday, February 23, 2011

एक शातिर मुल्क़ भर का सब मुनाफ़ा खा गया

प्रमोद रामावत "प्रमोद"
परिचय.......
जन्म- 5 मई 1949     शिक्षा- विधि स्नातक  
सम्प्रति- उप सम्पादक "अमृत मंथन दैनिक", जन संपर्क अधिकारी
प्रकाशन- मेरी अधूरी अमरनाथ यात्रा[ यात्रा वृत्तांत ], सोने का पिंजरा [ गजल संग्रह ] 
संपर्क- 09424097155 
प्रमोद रामावत जी की "सोने का पिंजरा" ग़जल विधा पर अद्भुत संग्रह है. एक-एक शेर इतना पुरअसर लिये है कि बस लगता है इससे बेहतर क्या. कोई ऐसा मुद्दा नहीं जो प्रमोद जी ने अपने अनूठे अंदाज में छुआ न हो. उसी नायाब ख़जाने से एक ग़जल प्रस्तुत है. 




बस्तियां जिनमें अमीरों को ख़ुदा समझा गया 
क्यों ग़रीबों को वहाँ, एक बददुआ समझा गया |

आबरू के मोल पर जो बांटता था रोटियाँ 
बस वही भूखे शहर में, देवता समझा गया |

सब उसूलों को कुचलकर कुर्सियों तक जो गया 
इस सदी में बस उसी को, रास्ता समझा गया |

छोड़ कर सिक्के सुनहरे मैं बचा लाया ज़मीर 
लो मुझे अपने ही घर में सरफ़िरा समझा गया |

एक शातिर मुल्क़ भर का सब मुनाफ़ा खा गया 
क्या ग़जब है बस इसे इक हादसा समझा गया |

बह गई आसाईशें सब जन्मदर की बाढ़ में 
और इन पैदाइशों को ख़ुशनुमा समझा गया |

आदमी की ज़िन्दगी है , दर्द में डूबी ग़जल 
आसुओं को इस ग़जल का काफ़िया समझा गया |