Sunday, February 24, 2013

"मर्जी" शिफ्ट होकर केवल लड़के की तरफ हो गयी

पालीटेक्निक कालेज की ओर जाने वाली उस रास्ते में ढलान गजब की थी. चाहे तो इंजिन बंद करके भी ढुलकते हुए वहाँ तक पहुँचा जा सकता था लेकिन उसके दोनों टांगों के बीच फंसी 250 सी.सी. बाइक की इंजिन वहाँ पहुँचने से पहले इतना शोर करती कि वो जहाँ जैसी हो दौड़कर खिड़की पर ऐसे बैठ जाती जैसे कोई राजकुमार एयरक्राफ्ट लिए आँगन में ही लैंड कर रहा है. अब आठवें स्टैण्डर्ड की इच्छाएं ऐसे ही नरम-नरम मखमली होती हैं, जो कभी केफे काफी डे की रौशनी तो कभी नदी किनारे के झुरमुट, खंडहर के पीछे अँधेरे में मुकम्मल होती हैं. दूसरे महीने के पांचवे रोज उसकी बाइक स्पीड ब्रेकर पर फिसलने से गिरी थी, उसे चोट लगी और जख्मों के भरने के पहले ही वो दोनों सपने सुहाने लड़कपन पूरे करने घर से चले गए.......
जाहिर है, तलाश हुई ...

रिपोर्ट हुई .... खोजबीन मची 

मिल गए .....

पूछा तो कहा ..... मर्जी से गए, साथ रहे, मुहब्बत की है...

फिर बयान दर्ज होने तक "मर्जी" शिफ्ट होकर केवल लड़के की तरफ हो गयी
 मुकदमा कायम हुआ.....

लड़के को चारदीवारी वाले जेल और .....लड़की उसी घर में ले जायी गयी जिसमें वो खिड़की अब हमेशा बंद रहती थी.

अरे ..! क्या सोच रहे हैं आप सब ख़तम....समाज, मर्यादा, नैतिकता .... कानून जैसी भी कोई चीज होती है कि नहीं

उसे भी मालूम ये पुलिस की गाड़ी है

गाड़ी के पहुंचते-पहुंचते सिग्नल पर बत्ती लाल हो गयी. वह धीरे से शीशा नीचे कर अगल-बगल देखने लगा. करीब डेढ़ साल के बच्चे को जैसे तैसे से गोद उठाये वह बच्ची स्कार्पियो, वेगन-आर, स्विफ्ट के पास से हाथ जोड़े उसके ठीक बगल वाली सफारी के बंद शीशे पर ठक-ठक करती मांगने लगी. अगला नंबर अपना मानकर उसने डिक्की की तरफ एक नजर घुमाते हुए जेब से ही सिक्का टटोल लिया.
 
वह घूमी तो....फिर उसके बाजू से गुजरकर पिछली गाड़ी पर दस्तक देने लगी...बाबूजी ... बाबूजी...! 

सिक्का मसलते हुए वह सोचने लगा....... उसे भी मालूम ये पुलिस की गाड़ी है