Thursday, September 4, 2008

हम तेरी मनुहार में मितवा कैसे गीत सुनाये




हम तेरी मनुहार में मितवा कैसे गीत सुनाये
सिसक रहे सब साज उम्र के कैसे राग मिलाये



सुख दुःख की अनुभूति
वक्त ने बेहद जटिल दिया है
जीते बाजी हार में यूँ
उसने तब्दील किया है
कई विसंगतियों के कितने कारण क्या बतलाये
हम तेरी मनुहार में मितवा कैसे गीत सुनाये



अभिशापित सी हुई जिंदगी
नीरवता को जीने निकट
अकिंचन इस काया के
फटेहाल को सीने
अनुभव की कुछ अर्जित दौलत है जो तुम्हें लुटाएं
हम तेरी मनुहार में मितवा कैसे गीत सुनाये



संध्या साथ लिए आती है
निशा एक अनजानी
किसको व्यथा बताएं अपनी
किसको राम कहानी
रात पहाती है आँखों में बैठे दिवस बिताये
हम तेरी मनुहार में मितवा कैसे गीत सुनाये



इस विराम सफ़र में थककर
पग जब भी रुक जाते
अनजाने अनचाहे बरबस
गीत अधर तक आते
टुकडों में बिखरे शब्दों से कैसे छंद बनाए
हम तेरी मनुहार में मितवा कैसे गीत सुनाये



रचयिता
सुकवि बुधराम यादव
बिलासपुर

आदरणीय बुधराम यादव जी की रचनाये सुनता पढता मै बड़ा हुआ हूँ... मूलतः यह रचनायें अद्भुत कवित्व....के साथ गेय शब्दावली शैली में रचित हैं , जो की आदरणीय बुधराम जी के मुख से सुने बिना अधूरे हैं। chhatisgadhi लोक साहित्य में यह वस्तुतः दुर्लभ है। लेकिन यहाँ पर मेरी भी विवशता है कि उपलबध्ता के परिसीमा में जो हो सका है वह आपके सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ। आदरणीय को सुकवि कि उपाधि उक्ताशय से ही प्रदत्त है। कभी कवि सम्मलेन अथवा किसी गायन कार्यक्रम में उन्हें सुनना आदरणीय के प्रति सम्मान को वृद्धि ही करती है। अब आप भी उनकी रचनाओं का पाठन करते हुए उस अद्भुत गेयता का रसास्वादन का अनुभव करें।

3 comments:

  1. प्रथम्त:आज आपके कमेंट बाक्स ने अपना हडताल खत्म कर दिया इसके लिये बधाई ॥ जीवन को प्रेरीत करती और उर्जा देती इस रचना के लिये आभार ॥

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  2. सुकवि बुधराम यादव की इस बेहतरीन रचना को पढ़वाने का आभार. जानकर अच्छा लगा, आप जबलपुर में हैं. मैं भी जबलपुर का ही हूँ किन्तु विगत १० वर्षों से कनाडा आ बसा हूँ. मेरे ब्लॉग का पता http://udantashtari.blogspot.com/ है. हल्का फुल्का कुछ लिखते रहते हैं.

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आपकी टिप्पणी सार्थक होगी इस हेतु मैं आपको आश्वस्त करता हूँ, यह रचनाधर्मिता के लिए आवश्यक भी है. धन्यवाद !