Wednesday, August 10, 2011

हमें आज़ाद होने का अभी, मतलब नहीं आता





मेरे प्रिय ग़जलकार प्रमोद रामावत "प्रमोद" स्वाधीनता सन्दर्भ 
को लेकर क्या रचते हैं.. क्या ग़जब तेवर हैं आप भी देखिये तो सही... 

गुलामी में जो जज्बा था, नज़र वो अब नहीं आता 
हमें आज़ाद होने का अभी, मतलब नहीं आता 

गुलामों की तरह ही जी रहे हैं, लोग लानत है 
शहादत के लिए चाहें तो अवसर कब नहीं आता 

हम ही हाक़िम, हम ही मुंसिफ़ हम हैं चोर-डाकू भी 
करें हम ख़ुदकुशी तो फ़िर बचाने रब नहीं आता 

लड़ाने के लिए तो बीच में मज़हब ही आता है 
छुड़ाने को पुलिस आती है, तब मज़हब नहीं आता 

हमारी जातियाँ दीवार बन जाती है रिश्तों में 
मगर ज़ब खून चढ़ता है, ये मुद्दा तब नहीं आता 

5 comments:

  1. आपको जनम दिन की ढेरों बधाई

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  2. समीर भाई,
    आरज़ू चाँद सी निखर जाए,
    जिंदगी रौशनी से भर जाए,
    बारिशें हों वहाँ पे खुशियों की,
    जिस तरफ आपकी नज़र जाए।
    जन्‍मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
    ------
    दूसरी धरती पर रहने चलेंगे?
    उन्‍मुक्‍त चला जाता है ज्ञान पथिक कोई..

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  3. सुन्दर कविता, हर किसी को शिक्षा और आज़ादी मिले, तो मतलब भी कमो-बेश समझ आ ही जायेगा।

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  4. बेहतरीन लिखा है,

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आपकी टिप्पणी सार्थक होगी इस हेतु मैं आपको आश्वस्त करता हूँ, यह रचनाधर्मिता के लिए आवश्यक भी है. धन्यवाद !