जीवन की इन पीडाओं से
मन व्याकुल जब हो जाता है !
तब सावन नयनों में भरकर
गीत अधर पर जन्माता है !!
सूरज का बस तपन झेलता
सदा पिपासित रहता मरुथल.............
पूरी कविता शीघ्र ही पोस्ट पर.....
आदरणीय सुकवि बुधराम यादव द्वारा रचित....
आपकी टिप्पणी सार्थक होगी इस हेतु मैं आपको आश्वस्त करता हूँ, यह रचनाधर्मिता के लिए आवश्यक भी है. धन्यवाद !
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