Friday, October 3, 2008

और अधिक मौन न रहा जाये

आज के अवसर पर एक प्रासंगिक रचना प्रस्तुत है...



बात हटकर कोई कहा जाये
और अधिक मौन न रहा जाये


सार सच कह गये फकीरों ने
बाकी सब रह गये लकीरों में
खोलकर अब उन्हें पढ़ा जाए...
और अधिक न रहा जाये


कैसे अपना वतन सँवारोगे
जब ना ख़ुद की चलन सुधारोगे
गाँधी गौतम किसे गढा जाये...
और अधिक मौन न रहा जाये


अपना उस धर्म से सुदृढ़ नाता
विश्व बंधुत्व है जो सिखलाता
आओ उन सिरफिरों को समझायें ...
और अधिक मौन न रहा जाये


कहने से है अधिक सही सुनना
सुनने से है अधिक सही गुनना
यह मिथक कुछ यहाँ ढहा जाए...
और अधिक मौन न रहा जाये
बात हटकर कोई कहा जाये


रचियता.....
सुकवि बुधराम यादव
बिलासपुर

6 comments:

  1. सार सच कह गये फकीरों ने बाकी सब रह गये लकीरों में
    खोलकर अब उन्हें पढ़ा जाए...
    और अधिक न रहा जाये
    कैसे अपना वतन सँवारोगे
    जब ना ख़ुद की चलन सुधारोगे गाँधी गौतम किसे गढा जाये...
    और अधिक मौन न रहा जाये .

    वाह बहुत ही सुंदर
    सुकवि सम्मानीय बुधराम जी यादव की यह रचना अपने आप में कितना कुछ कह गई है . एक कहावत है कि पहले अपने गरेबान में झांक कर देखो फ़िर दूसरे का देखने जाना . यही सच यह
    कविता कह रही है कि पहले अपने में सुधार करो और फ़िर दूसरो से सुधार की अपेक्षा करो . समीर जी इतनी सुंदर रचना प्रस्तुत करने के लिए आभार.

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  2. bahut sundar...
    bahut achcha likha hai....

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  3. बहुत उम्दा, आनन्द आ गया.

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  4. अत्यंत प्रेरक रचना !!

    हमने अभी-अभी अपना मौन तोडा है आपकी यह रचना अब इसे मुखर कर देगी!!

    मौन मुखर होगा जब सत्य प्रखर होगा तब

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  5. सुकवि बुधराम यादव जी की रचनाएँ क्रांतीकारी हैं, ये रचनाएँ आजीवन प्रेरणा देंगीं....... कवि की रचनाएँ और आपका उनके प्रति लगाव-खिंचाव दोनो "सलामी" के योग्य हैं।

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