बात हटकर कोई कहा जाये
और अधिक मौन न रहा जाये
सार सच कह गये फकीरों ने
बाकी सब रह गये लकीरों में
खोलकर अब उन्हें पढ़ा जाए...
और अधिक न रहा जाये
कैसे अपना वतन सँवारोगे
जब ना ख़ुद की चलन सुधारोगे
गाँधी गौतम किसे गढा जाये...
और अधिक मौन न रहा जाये
अपना उस धर्म से सुदृढ़ नाता
विश्व बंधुत्व है जो सिखलाता
आओ उन सिरफिरों को समझायें ...
और अधिक मौन न रहा जाये
कहने से है अधिक सही सुनना
सुनने से है अधिक सही गुनना
यह मिथक कुछ यहाँ ढहा जाए...
और अधिक मौन न रहा जाये
बात हटकर कोई कहा जाये
रचियता.....
सुकवि बुधराम यादव
बिलासपुर
सार सच कह गये फकीरों ने बाकी सब रह गये लकीरों में
ReplyDeleteखोलकर अब उन्हें पढ़ा जाए...
और अधिक न रहा जाये
कैसे अपना वतन सँवारोगे
जब ना ख़ुद की चलन सुधारोगे गाँधी गौतम किसे गढा जाये...
और अधिक मौन न रहा जाये .
वाह बहुत ही सुंदर
सुकवि सम्मानीय बुधराम जी यादव की यह रचना अपने आप में कितना कुछ कह गई है . एक कहावत है कि पहले अपने गरेबान में झांक कर देखो फ़िर दूसरे का देखने जाना . यही सच यह
कविता कह रही है कि पहले अपने में सुधार करो और फ़िर दूसरो से सुधार की अपेक्षा करो . समीर जी इतनी सुंदर रचना प्रस्तुत करने के लिए आभार.
bahut sundar...
ReplyDeletebahut achcha likha hai....
बहुत उम्दा, आनन्द आ गया.
ReplyDeletesunder likha hai
ReplyDeleteअत्यंत प्रेरक रचना !!
ReplyDeleteहमने अभी-अभी अपना मौन तोडा है आपकी यह रचना अब इसे मुखर कर देगी!!
मौन मुखर होगा जब सत्य प्रखर होगा तब
सुकवि बुधराम यादव जी की रचनाएँ क्रांतीकारी हैं, ये रचनाएँ आजीवन प्रेरणा देंगीं....... कवि की रचनाएँ और आपका उनके प्रति लगाव-खिंचाव दोनो "सलामी" के योग्य हैं।
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