प्रमोद रामावत की गजल.....
१.
खामोशी का अर्थ समझने की खातिर
सारा जीवन शोर मचाते रहते हैं
सिर का इससे अच्छा क्या उपयोग करें
यहाँ वहां हर जगह झुकाते रहे
उनको मुझसे निस्बत है या नफरत है
लिख कर मेरा नाम मिटाते रहते हैं
हमको आँगन की पीड़ा से क्या मतलब
हम तो बस दीवार बनाते रहते हैं
किसी तरह दिल को समझाते रहते हैं
हम पत्थर पर फूल चढ़ाते रहते हैं
कहीं राह में रख देते तो बेहतर था
गंगाजी में दीप बहाते रहते हैं
२.
सादगी चाहिए सादगी के लिए
मैं अकेला जिया इस सदी के लिए
आदमी की तरह आदमी के लिए
दुश्मनी से भरा ये जहां और मैं
हर किसी से मिला दोस्ती के लिए
प्यास बढ़ती गयी जल सिमटता गया
अब दुआ कीजिये बस नदी के लिए
रहनुमाई की जिद फिर अँधेरी सड़क
मैं जला उम्र भर रौशनी के लिए
हुस्न मोहताज है सादगी का मगर
सादगी चाहिए सादगी के लिए
आसमां पर हजारों फ़रिश्ते है कम
इक मसीहा बहुत है जमीं के लिए
.............प्रमोद रामावत
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