
नयना नीर भरे कोई फिर ना झरे
नाही कोई किसी को छले
आओ सबसे से मिले गले.....
इस चमन में अमन की वो गंगा बहे
जन गण सदियों सलामत औ चंगा रहे
धरा धर्ममय सर्वसम्पन्न जन
भूख भय भेद संत्रास के हो दमन
दिन प्रतिदिन और फूले फले
आओ सबसे मिले हम गले ......
क्रांतियाँ जोड़कर हम शिखर पर चदें
भ्रांतियां तोड़कर हम निखरकर बढ़ें
प्रीति परतीति मन में पिरोते रहें
स्नेह समता समन्वय संजोते रहे
यूँ ही चलते रहे सिलसिले
आओ सबसे मिले हम गले ....
दौर अनचाहे विपरीत जो भी चले
बीज किन्तु विलग के ना कोई पले
यह हमें आस और पूर्ण विश्वास
जमीन एक और एक आकाश हो
खुशियाँ नितनव जहाँ हर पले
आओ सबसे मिले हम गले
नयना नीर भरे कोई फिर ना झरे
नाही कोई किसी को छले......
रचयिता.....
सुकवि बुधराम यादव
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