Wednesday, August 13, 2008

तुम विश्वास करो यह निश्चित हमने तो स्वीकारा है

तुम विश्वास करो यह निश्चित हमने तो स्वीकारा है
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तुम विश्वास करो यह निश्चित हमने तो स्वीकारा है
जब भी ठोकर मिली डगर पर हमने तुम्हें पुकारा है

यहाँ अकेले अब चलना कुछ
अधिक कठिन लगता है
नेह रहित दुर्बल अवलंबन
पग-पग पर ठगता है

अब तो केवल नाम तुम्हारा अपना सबल सहारा है
तुम विश्वास करो यह निश्चित हमने तो स्वीकारा है

फिर भी कितनी दूर आ गए
रुक रुक कर यूँ चलते
पूर्ण विराम मिला ना केवल
प्रश्न हमेशा छलते
सिर्फ एक संकल्प सदा से संबल रहा हमारा है
तुम विश्वास करो यह निश्चित हमने तो स्वीकारा है

संयम धीरज सत्यशीलता
आश्रित इच्छाओं के
गुजरें हम कितने बार
कठिन परीक्षाओं से
होने से बदनाम उमर को हमने बहुत संवारा है
तुम विश्वास करो यह निश्चित हमने तो स्वीकारा है

जीवन के इस जटिल सफ़र का
निश्चित नहीं ठिकाना
पता नहीं उस मंजिल का
जहाँ इसे है जाना

इसीलिए हर अवसर पर हमने किया इशारा है
तुम विश्वास करो यह निश्चित हमने तो स्वीकारा है !
जब भी ठोकर मिली डगर पर हमने तुम्हें पुकारा है !!

रचयिता..........
सुकवि बुधराम यादव.....

4 comments:

  1. अच्छी कविता

    लेकिन वर्ड वेरिफ़िकेशन क्युं

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. bahut badhiya rachana . bhai kripya niyamit likhe . shubhakamanao ke sath .

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