पालीटेक्निक कालेज की ओर जाने वाली उस रास्ते में ढलान गजब की थी. चाहे तो इंजिन बंद करके भी ढुलकते हुए वहाँ तक पहुँचा जा सकता था लेकिन उसके दोनों टांगों के बीच फंसी 250 सी.सी. बाइक की इंजिन वहाँ पहुँचने से पहले इतना शोर करती कि वो जहाँ जैसी हो दौड़कर खिड़की पर ऐसे बैठ जाती जैसे कोई राजकुमार एयरक्राफ्ट लिए आँगन में ही लैंड कर रहा है. अब आठवें स्टैण्डर्ड की इच्छाएं ऐसे ही नरम-नरम मखमली होती हैं, जो कभी केफे काफी डे की रौशनी तो कभी नदी किनारे के झुरमुट, खंडहर के पीछे अँधेरे में मुकम्मल होती हैं. दूसरे महीने के पांचवे रोज उसकी बाइक स्पीड ब्रेकर पर फिसलने से गिरी थी, उसे चोट लगी और जख्मों के भरने के पहले ही वो दोनों सपने सुहाने लड़कपन पूरे करने घर से चले गए.......
जाहिर है, तलाश हुई ...रिपोर्ट हुई .... खोजबीन मची
मिल गए .....
पूछा तो कहा ..... मर्जी से गए, साथ रहे, मुहब्बत की है...
फिर बयान दर्ज होने तक "मर्जी" शिफ्ट होकर केवल लड़के की तरफ हो गयी
मुकदमा कायम हुआ.....
लड़के को चारदीवारी वाले जेल और .....लड़की उसी घर में ले जायी गयी जिसमें वो खिड़की अब हमेशा बंद रहती थी.
अरे ..! क्या सोच रहे हैं आप सब ख़तम....समाज, मर्यादा, नैतिकता .... कानून जैसी भी कोई चीज होती है कि नहीं
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