Thursday, March 7, 2013

बन्दूक चल गयी



हल्की बूंदा-बांदी से सड़क गीली हो गयी थी. ठिकाने पर पहुँचने से पहले शहर पार करना ही था. 
दौलत सिंह से मिलते हुए चलेंगे, शादी में नहीं आ सके थे न 
हाँ ! पर ज्यादा टाईम नहीं लगाना.... कंधे पर सीलिंग बेल्ट से फंसी बन्दूक को दायें से बायीं ओर करते हुए कहा उसने 
ओहो..हो..! खड़..र....र.. धडाक ..!! 
लाईट में कुछ दिखा नहीं.... ये ट्रक वाले भी न ..डीप्पर....तो देते ही नहीं 
यार, बन्दूक चल गयी 
सड़क के दूसरी ओर जमीन पर पड़े लड़के को आने जाने वाले देख कर रुकने लगे
दोनों उठे .... अब उनकी मोटरसाइकल कोतवाली थाने की तरफ गयी और ..
थाना पहुँचकर रिपोर्ट लिखाने लगे .....

साहब, मैं ....................पिता............... उम्र करीब पैतीस साल निवासी ............ खेती-किसानी का काम करता हूँ. मैं अपने साथी ............ के साथ मोटरसाइकल से ........................ गाँव के दौलत सिंह के यहाँ शादी में शामिल होने जा रहा था. ............गाँव के स्कूल वाले मोड़ पर पहुँचते ही.................................... !!!!!


अधूरा नहीं है ये.... दरअसल रिपोर्ट तो पूरी लिखाई गयी, लेकिन क्या लिखाई गयी होगी ? 


रिपोर्ट जो लिखाई गयी____________



साहब, मैं ....................पिता ............... उम्र करीब पैतीस साल निवासी ............ खेती-किसानी का काम करता हूँ. मैं अपने साथी ............ के साथ मोटरसाइकल से ........................ गाँव के दौलत सिंह के यहाँ शादी में शामिल होने जा रहा था . ............गाँव के स्कूल वाले मोड़ पर पहुँचते ही सामने से ट्रक आने पर मैं मोटरसाइकल धीमी करके सड़क किनारे रोकने लगा तभी मैंने बांयी तरफ हरपालपुर के रामबीर सिंह को वहाँ बन्दूक लिए खड़े देखा. उसने बन्दूक से मेरी ओर निशाना लेकर मुझे जान से मारने की नियत से गोली चलाई. घबराकर सड़क किनारे कीचड़ में हम गिर गए. राजबीर सिंह से जमीन के मामले को लेकर मेरी पुरानी रंजिश है. मैं और मेरे साथी ............. ने वहाँ राजबीर सिंह को देखा है, सामने आने पर पहचान लूँगा. रिपोर्ट करता हूँ कार्यवाही की जाए 



Sunday, March 3, 2013

उसी तरह बारिश पर भी ....

















बातचीत ........... क्या हुआ था ! तुम्हे पता ?

दृश्य एक .......

पहला - हर गुरूवार का तमाशा है यार ! दिन ब दिन भीड़ बढ़ती जा रही है
दूसरा - हाँ ! उधर दमोह, टीकमगढ़, सागर और छतरपुर तरफ से ज्यादा लोग आ रहे हैं
तीसरा - अरे क्या बात कर रहे हैं अपने जबलपुर से कोई कम है. क्या जज, नेता, बड़े अफसर सब आ रहे हैं
पहला - अब इसे क्या माने आस्था या इलाज न मिलने की दिक्कत
तीसरा - वो जो होता है न, जिसका कोई अंत नहीं....  वही है ये
पहला - पर इस बार चौकी "बाबाजी" [ सरौते वाले ] के घर के बजाय किसी खुली जगह पर लगवाना होगा
दूसरा - बिलकुल अब तक तो पुलिस के दम से चल गया
तीसरा - फिर बारिश का भी अंदेशा है, कुछ इधर-उधर हो गया तो स्टेमपीड [ भगदड़ ] हुआ मानो

दृश्य दो ..............

दूसरा - सारा अरेंजमेंट धरा रह गया.....
तीसरा - बारिश से पंडाल गिर गए और खेतों में पानी भरने से कीचड़ अलग हो गया
दूसरा - उधर चार बजे से उसी जगह चौकी भी शुरू हो गयी, किसको समझाए
पहला - व्यवस्था तो लगी है न ?
दूसरा - उसी के कारण तो अब तक चालीस हजार की भीड़ निकल गयी....

अचानक बारिश ...........
बचने के लिए गाँव की गलियों में बाबाजी के आशीर्वाद के लिए अपनी बारी का इन्तजार कर रहे बीमार बूढ़े, महिलायें, बच्चे और उनके साथ लगे सब भागे ......
बारिश बंद ...........
वही सब लोग वापस भागे ..........साथ ही "लंच" के बाद बाबाजी का सिद्ध जल छिड़काव ....
...........................................भगदड़...................................

दृश्य तीन ...........

पहला - ओह ! कम से कम तीन दर्जन लोगों को तो मैंने गाड़ी में डालकर रवाना किया
दूसरा- डालकर मतलब.... !
तीसरा - मतलब ...इन बिखरे चप्पल जूतों से समझ लो
चौथा - फिर भी कितने लोग मर गए .....?
पहला - अभी तो दस मान लें ....
चौथा - कुछ ज्यादा नहीं हो गए ......!!!
फिर से चौथा - हमारी व्यवस्था लगी थी, देखिये...... जिस प्रकार आस्था पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता ................उसी तरह बारिश पर भी.