Friday, February 17, 2012

मानसी ये तुमने क्या किया ......?


पुलिस स्टेशन इंचार्ज का कमरा 

एक कानूनन बालिग़ युवती सहज होने की कोशिश में अस्थिर आँखों को उठाती गिराती मोल्डेड कुर्सी के कभी आगे तो कभी पीछे खिसकती जल्दी से उस पल के गुजर जाने की दुआ कर रही है. उसके बाईं ओर उसी के पिता, दाहिनी ओर पखवाड़े भर पहले ही उसके आर्य समाज मंदिर में बने पति के पिता और सबसे बायें दोनों परिवार के शुभचिंतक बैठे थे. सामने कुर्सी पर सिविल कपड़ों में एक पुलिस अधिकारी. इन सबके बीच लड़का एक किनारे खड़ा सिर फर्श पर लगे नए टाईल्स की तरफ किये उसमें नजर आ रही धुंधली सी तस्वीर में मन ही मन कुछ बना बिगाड़ रहा था.


शुभचिंतक - चलिए इतनी मुश्किल के बाद दोनों आ तो गये साहब.... अब बयान हो जाये.


लड़की का पिता - तुम्हे २० साल पूरे नाजो-नजाकत, लाड़ प्यार से हमने पाला. जो जानते थे वो संस्कार दिया. हमसे क्या गलती हो गयी जो तुमने हमें ये दिन दिखाया. अब भी उसे छोड़कर आ जाओ, मैं तुम्हें घर में जगह दूंगा...नहीं तो तुम हमारे लिए मर गयी समझो. झुकी आँखों के भीगे कोर पोंछ कर दबे सीने को सामान्य करते हुए शुभचिंतकों की ओर देखने लगा.


लड़के का पिता - साहब, लड़के ने जो कदम उठाया उसकी हमें ज़रा भी जानकारी नहीं थी. हम उसके इस काम से सहमत भी नहीं हैं पर अब इसने ऐसा कर लिया है तो हमें लड़की को घर में तो रखना पड़ेगा. वाक्य पूरा होते ही सामने से निगाह हटाकर निर्विकार भाव से शुभचिंतकों की ओर देखने लगा.


पुलिस अधिकारी ने जैसे ही लड़के की तरफ निगाह की वहाँ बैठे कई लोगों ने एक साथ कहा - अर्चित, साहब तुमसे कुछ पूछ रहे हैं.
लड़का - हडबडाते हुए .. सर अभी एन.आई.आई.टी. से डिप्लोमा कोर्स कर रहा हूँ और जॉब के लिए प्रयास भी.


पुलिस अधिकारी - लड़की की तरफ बिना देखे ..तुम्हारा क्या कहना है मानसी ? 


लड़की याने मानसी - पुलिस अधिकारी की ओर बिना देखे.. पापा, आप हमें इसी तरह अपना लो न, मैं जानती थी आप लोग नहीं मानेंगे इसलिए ये कदम उठाया. मैं अर्चित को छोड़कर नहीं आ सकती इसी के साथ रहूंगी. दृढ़ता से हुई शुरुआत रुवांसे गले में फंसकर दो वाक्यों में खतम हो गयी.


पुलिस अधिकारी - तुमने कहाँ तक पढाई की है मानसी


आर्ट्स ग्रेजुअट हूँ सर...  


जीवन कैसे चलेगा तुम दोनों का ...प्रेक्टिकल जवाब देना.
पुलिस अधिकारी की भंगिमा में बातचीत को अधिक लंबा न खीचने का साफ़ संकेत था.


सब एक दूसरे की तरफ देखते है फिर गहरी चुप्पी छा जाती है 


ये तो लड़का है इसे तो समाज ने ही प्रमाण पत्र दे रखा है. कितने ही प्यार करे .. शादियाँ करे ..गलतियां करे. पर मानसी का क्या ? रहेगी तो इसके साथ, जैसा वो रखे, या अर्चित के पिता के हिसाब से जैसा उसे पड़े. वैसे घर से निकले तो दोनों साथ ही थे पर अब .....!  इतनी मशक्कत के बाद .... अर्चित , अर्चित के पिता, खुद उसके पिता और क़ानून के मौजूद होते हुए भी क्या मानसी का भविष्य सुखमय होना तय है ?
या फिर बार-बार ये सुनते हुए कि "मानसी ये तुमने क्या किया ?" मानसी का संघर्ष जारी रहेगा ...