Thursday, August 28, 2008

जीवन की पीड़ाओं से ...

जीवन की पीड़ाओं से यह मन व्याकुल जब हो जाता है
तब सावन नयनों में भरकर गीत अधर पर जन्माता है

सूरज का बस तपन झेलता
सदा पिपासित मरुथल रहकर
सागर को जल दे जाती हैं
दूर दूर से सरिता बहकर
ऐसा विषम विधान देखकर मन आकुल जब हो जाता है
तब सावन नयनों में भरकर गीत अधर पर जन्माता है

दर दर भटके उमर बेचारी
केवल एक किरण को पाने
चिंतन जनम जनम भर तरसे
दर्शन का वह रूप ना जाने
ऐसा मन का एक " मनोरथ " अभिशापित जब हो जाता है॥
तब सावन नयनों में भरकर गीत अधर पर जन्माता है

काँटों के बीच पुष्प पनपते
यह सबने स्वीकार लिया है
इसलिए सुख कि आशा में
दुःख को अंगीकार किया है
लेकिन जग का सुख सारा जब कैद महल में हो जाता है
तब सावन नयनों में भरकर गीत अधर पर जन्माता है

जीवन के कोई विषम क्षणों में
अपनों ने मुख मोड़ लिया हो
सारे पावन रिश्ते नाते
क्षण में केवल तोड़ दिया हो
तब एकाकीपन से बोझिल मन कुछ पल जब हो जाता है
तब सावन नयनों में भरकर गीत अधर पर जन्माता है

रचयिता
सुकवि बुधराम यादव , वर्ष - १९८०
बिलासपुर

Sunday, August 24, 2008

मोर कुंवर कन्हैया...!


जन्माष्टमी के पावन बेरा मा...परसतुत हे॥




मोर कुंवर कन्हैया...!


मोर कुंवर कन्हैया बलदाऊ के भइया
तैं झन जाबे माखन चोराय
बदनाम होथे भइया तैं झन जाबे माखन चोराय !


नौ लाख गइया उबरय नन्द महर घर
लाखन हें बछुरा बंधे !
दूध अउ दही के गा नंदिया बोहाथे
माखन सकले नई सकलाय !!
अतको मा का घट गय तोरबर कन्हैया
ओरहन जौन लाथस बलाय !
बदनाम होथे भइया तैं झन जाबे माखन चोराय !

मन लागय जतका माखन मिसरी लल्ला
घर में गुवालन संग खाव !
पन खोंची भर खातिर औरे घर जाके
चोरहा ये नाव झन धराव !!
घेरी बेरी बरजेंव नई मानस कन्हैया
दिन दिन तैं जाथस नथाय !
बदनाम होथे भइया तैं झन जाबे माखन चोराय !


खाये पीये के बस ओढर बनाथस
मसर मोटी करथस तैं जाय !
दैहा दूधहा के सब राहित छडा थस
सिकहर ले देथस गिराय !!
चिखला मतांवय तोर संगवारी चेलिक
अउ नाव तोर देंथय टिपाय !
बदनाम होथे भइया तैं झन जाबे माखन चोराय !


काय तोर नाठाइन ओ गरीब सब गुवालिन
जाथस बदला जेकरा भंजाय !
काय डार दिहिन उन माखन मा मोहनी
जौन गये तैं निचट मोहाय !!
कान धर कान्हा किरिया खा अब 'बुध' कहे
मान तोला जसुदा समझाय !
बदनाम होथे भइया तैं झन जाबे माखन चोराय !


रचयिता
सुकवि बुधराम यादव
बिलासपुर

अपन गोठ...

सुकवि बुधराम यादव जी के रचित थोरकुन गीत, कविता, जागरण गीत , मुक्तक , साखी के गुरतुर-गोठ अउ मनोरथ के माध्यम से आप मन अवलोकन करेव । ये सब मोर तीर जौन आदरणीय के जुनाहा संग्रह रहिस ओखरे खजाना आए. ...उनकर गीत/रचना प्रसतुत करईया तो मे हवव , पर आपोमन ला ऐसे लगत होही के उनकर रचना बर आपमन के जौन प्रतिक्रिया बिचार मिलथे ,तेखर बर आदरणीय बुधराम जी के का सोचना हवे..... ता मे उन्करे खजाना -संग्रह म ले एक उनकर लेख इन्हा पोस्ट करत हंव ....... आर्शीवाद देहव

अपन गोठ...

मिरगा कस बिरथा तिसना पाले जनव उचाट मारत जिनगी हा तीसर पहर म कब हबर गय पता नई लगिस , पीछू डहर झाँके ले बहुत पहाये अउ थोरे बचाए के मरम हा सालथे , जीव ला कचोतथे अउ सुरता आथे नीत के ओ गोठ जौन माता-पिता , गुरुजन अऊ बड़का सियान मन ले सुने रहेन अऊ जेकर परभाव हा आज घलव संकलप के रूप म हावय के .......

सेवा म अरपन कर सगरी -अपन हित बिसराके
करज चुका ले महतारी के मनुख तन ये पाके

सोरह आना सच आय के ----- आये हें सो जाये बर राजा रंक फ़कीर जमो निचट जुच्छा हाथ , जत्तेक इंहा पाये , कमाए हें इहें गवाएं परही।
" अंचरा के मया " जनम देवैया महतारी अउ कोरा म basar देवैया धरती महतारी दुनो के मया के बखान अउ महिमा गान करे के laaikaai जतन आय , जौन हां ये माटी के दुलौरा जमो मनखे तक कुछ आखर मा पहुचाये ले बिस्वास हे जरुर सनेह अउ दुलार के भागी बनही ।
ये गीत अऊ कविता मन ला एक संग्रह के सकल देवाय म मोर हित-मिट साहित्यकार मन के संगी धुरंधर साहित्यकार अउ प्रयास प्रकाशन के निदेशक डॉक्टर विनय पाठक के गजब आभारी हँव ।
परम आदरणीय पंडित राजेंद्र प्रसाद शुक्ला , डॉक्टर पालेश्वर प्रसाद शर्मा जइसन प्रतिष्ठित अउ वरिष्ठ मनीषी मन के दू आखर आसिरवचन अउ सनेह के खातिर बहुते आभारी हंव ।
भाई कृष्ण कुमार भट्ट 'पथिक ' , डॉक्टर अजीज रफीक अउ सनत तिवारी घलव ला धन्यवाद ।
गीत - कविता के ये संग्रह मोर पूजनीया महतारी अउ पिता ला परम श्रद्धा सहित समर्पित हवय। जिनकर असीरवाद के आन्छत अपन भाखा के सेवा मा ये अरपन होए पावत हे ।
1966-६७ ले प्रयास प्रकाशन ले जुरे साहत्या यात्रा म , बिसरत , भुलावत , रेंगत , सुस्तावत बरस २००१ मा बिलासा कला मंच के छैन्हा मा घाम घाले बर पहली ठीहा पाईस ।
आख़िर मा ये माटी के जमो गुनिजन , मुनिजन , सुधिजन , गुरुजन अउ बुधजन मन ले निवेदन हवय के येला पढ़के , सुन के , देख के एकर बने अउ घिनहा ला पोगरी झन पचोंहय। अपन सनेह संग सुघर सुझाव अउ आसिरवाद ला बिना अबेर करे मोर कटी भेजे बर झन भुलाहन्य ।

तुंहर सनेह अऊ दुलार के अगोरा मा........


pataa...
बुधराम यादव
एम.आई.जी.अ/८
चंदेला नगर
ringroad no.२
बिलासपुर छत्तीसगढ़

जीवन की इन पीडाओं से

मन व्याकुल जब हो जाता है !

तब सावन नयनों में भरकर

गीत अधर पर जन्माता है !!

सूरज का बस तपन झेलता

सदा पिपासित रहता मरुथल.............

पूरी कविता शीघ्र ही पोस्ट पर.....

आदरणीय सुकवि बुधराम यादव द्वारा रचित....

Sunday, August 17, 2008

जिंदगी के सबब खो रहे हैं



लोग क्या से क्या हो रहे हैं
जिंदगी के सबब खो रहे हैं


रातों रात ये धन बल जुटाने
लूट रहे दिन-दहाड़े खजाने
भूलकर क्या है नेकी बदी क्या
हैं लगे दांव पर सब लगाने
बेअदब ये गजब हो रहे हैं
जिंदगी के सबब खो रहे हैं



खुद से खुद में सिमटने लगे हैं
राह असली भटकने लगे हैं
मन से इतने हुए कैसे दुर्बल
अपनों को ही खटकने लगे हैं
नासमझ बिन जतन रो रहें हैं
जिंदगी के सबब खो रहे हैं



घात प्रतिघात करने लगे हैं
त्रास संत्रास भरने लगे हैं
कौन किस पर करे अब भरोसा
अपने अपनों से मरने लगे हैं
खून से खून को धो रहे हैं
जिंदगी के सबब खो रहे हैं



घर से बेघर हुए जा रहे हैं
जुर्म के बिन सजा पा रहें हैं
सैकडों को ये दरिन्दे हर दिन
मौत के मुंह में पहुंचा रहे है
संतरी नींद में सो रहे हैं
जिंदगी के सबब खो रहे हैं



बेरहम दुश्मनों की जमातें
चैन दे दिन नाही रातें
सार्थक कुछ समाधानों के बिन
बढ़ते ही जा रही वारदातें
धरती भर ये कहर बो रहे हैं
जिंदगी के सबब खो रहे हैं



आये जिसके लिए भूल बैठे
थोड़े पाकर बहुत फूल बैठे
छोड़ गोता लगाना जलधि में
लहरों से खेलने तूल बैठे
खुद से खुद बेखबर हो रहे है
लोग क्या से क्या हो रहे हैं
जिंदगी के सबब खो रहे हैं

 
रचियता.....
सुकवि बुधराम यादव
बिलासपुर
========================================================================
....................... परिचय...............
......................बुधराम यादव ............
पिता का नाम - श्री भोंदू राम यादव
पत्नी - श्रीमती कमला देवी यादव
जन्मतिथि - 3 मई 1946
पता - ग्राम खैरवार (खुर्द) तहसील-लोरमी, जिला-बिलासपुर, छत्तीसगढ़.
शैक्षणिक योग्यता - सिविल इंजीनियरिंग में पत्रोपाधि अभियंता
साहित्यिक अभिरुचि - गीत एवम कविता लेखन छत्‍तीसगढी एवम हिंदी में, सतसाहित्य अध्ययन चिंतन और गायन
कृतियाँ - काव्य संग्रह " अंचरा के मया " छत्‍तीसगढी गीत एवम कविता संग्रह प्रकाशित
प्रकाशन एवम प्रसारण - वर्ष 1966-67 से प्रयास प्रकाशन बिलासपुर से प्रकाशित काव्य संग्रह 'खौलता खून', मैं भारत हूँ, नए गीत थिरकते बोल, सुघ्घर गीत एवम भोजली आदि में रचनाएँ प्रकाशित हुई . इनके अतिरिक्त अन्य आंचलिक पत्र पत्रिकाओ एवम काव्य संग्रहों में भी रचनाओं का प्रकाशन होता रहा है. आकाशवाणी तथा गोष्ठी एवम कवि सम्मेलनों के माध्यम से भी निरंतर साहित्य साधना करते रहें हैं.
सम्प्रति - अभियंता के पद पर विभिन्न स्थानों में शासकीय सेवा करते हुए साहित्य साधना में सक्रिय रहे, वर्तमान में पद से सेवानिवृत होकर बिलासपुर में सक्रिय.
वर्तमान पता - एम.आई.जी. ए/8 चंदेला नगर रिंग रोड क्र. २ बिलासपुर, छत्तीसगढ़

Saturday, August 16, 2008

मुक्तक..



मुक्तक..



पर के पीरा हा जेकर हिरदे मा जनावत हे
पर के पीरा ल जौन अपन कस बनावत हे !
ऐसनहा मनखे, मनुख नोहय देवता ये
पर के पीरा हरत जौन जनम पहावत हे !!


मांगे ले इक घरी ना कौनो उधार देंहय
बुडे जिनगी के डोंगा नई कउनो उबार देंहय !
माउका मिले हे जम्मो बिगडे बना ले संगी
रो रो गोहराबे तभो न कउनो सुधार देंहय !!



सत अउ इमान सही कउनो धरम नइये
अपन बिरान सही कउनो भरम नइये !
पर के हितवा बन के जिनगी पहा ले
'बुध' अइसन गियान सही कउनो मरम नइये !!



रतन अमोल धरे इंहा उंहा भटकत हें
बिरथा बर रात दिन माथा ला पटकत हें !
मरम नई पाइन सिरतो मनुख तन पाये के
सैघो ला छांड तभे आधा मा अटकत हें !!


बूता ओसरावय नहीं एती ओती टारके मा
रस्ता नापावय नहीं मरहा जईसे सरके मा !
सुघर करम के बिन जिनगी महमहावय नहीं
बैरी डरावे नहीं दुरिहा ले बरके मा !!


रचयिता...
सुकवि बुधराम यादव
बिलासपुर.....
========================================================================
....................... परिचय...............
..........बुधराम यादव ............
पिता का नाम - श्री भोंदू राम यादव
पत्नी - श्रीमती कमला देवी यादव
जन्मतिथि - 3 मई 1946
पता - ग्राम खैरवार (खुर्द) तहसील-लोरमी, जिला-बिलासपुर, छत्तीसगढ़.
शैक्षणिक योग्यता - सिविल इंजीनियरिंग में पत्रोपाधि अभियंता
साहित्यिक अभिरुचि - गीत एवम कविता लेखन छत्‍तीसगढी एवम हिंदी में, सतसाहित्य अध्ययन चिंतन और गायन
कृतियाँ - काव्य संग्रह " अंचरा के मया " छत्‍तीसगढी गीत एवम कविता संग्रह प्रकाशित
प्रकाशन एवम प्रसारण - वर्ष 1966-67 से प्रयास प्रकाशन बिलासपुर से प्रकाशित काव्य संग्रह 'खौलता खून', मैं भारत हूँ, नए गीत थिरकते बोल, सुघ्घर गीत एवम भोजली आदि में रचनाएँ प्रकाशित हुई . इनके अतिरिक्त अन्य आंचलिक पत्र पत्रिकाओ एवम काव्य संग्रहों में भी रचनाओं का प्रकाशन होता रहा है. आकाशवाणी तथा गोष्ठी एवम कवि सम्मेलनों के माध्यम से भी निरंतर साहित्य साधना करते रहें हैं.
सम्प्रति - अभियंता के पद पर विभिन्न स्थानों में शासकीय सेवा करते हुए साहित्य साधना में सक्रिय रहे, वर्तमान में पद से सेवानिवृत होकर बिलासपुर में सक्रिय.
वर्तमान पता - एम.आई.जी. ए/8 चंदेला नगर रिंग रोड क्र. २ बिलासपुर, छत्तीसगढ़

Friday, August 15, 2008

साखी....


साखी....



एक झन के जन्माये एक अँगना मा खेलेन बाढें !
हिन्दू सिख ईसाई मुल्ला फेर कैसे बन ठादें !!



जनधन पाके अतियाँवय अउ पद पाके गरुवाय !
जोबन पाके इतरावय पर एक्को संग ना जाय !!



बिरथा करत गुमान हवस ये कभू दगा दे जाहय !
हाड़ मास के पुतरी संगी माटी मा मिल जाहय !!



कए दिन के जिनगानी सुघ्घर हांसत खेलत पहा ले !
गुरतुर भाखा बाउर के भईया अंतस ला फरियाले !!



काम क्रोध अउ लोभ इनकर किस्सा ला कतेक बखानी !
जिनगी के जब्बर बैरी तीनों अवगुन ल जानी !!



घरी घरी घुरत हे जिनगी पल पल खिरत जाय !
बिना तेल के बाती कस जाने कब जाहे बुझाय !!



चार लाख चौरासी भटके तब मनखे तन पाये !
देहरी मा ठाडे गुण भीतर घुसरे के बिसराये !!



पानी भीतर के पुरैन कस ये दुनिया मा जीले !
जम्मो रस के सार राम-रस तैं जी भर के पीले !!



दुसर के दुःख देख देख दुरिहाले जौन मुस्काथे !
'बुध' काबर नई सोचे एक दिन ओकरो ऊपर आथे !!



रचयिता .....
सुकवि बुधराम यादव..
बिलासपुर...

Thursday, August 14, 2008

आंसू पीकर फिर बैरन ये साँस ठहर ना जाये






आंसू पीकर फिर बैरन ये साँस ठहर ना जाये
इससे पहले अब अधरों पर आओ गीत सजाये

औरों से छल करते करते
खुद को ही छल डाले
स्थिरता के बदले भीतर
मृगत्रिष्णा को पाले
गैरों को क्या अपनाते जब अपने हुए पराये
आंसू पीकर फिर बैरन ये साँस ठहर ना जाये

हमने हरदम बचना चाहा
परनिंदा परद्रोहों से
किन्तु बताओ बचा कौन है
अपनों के विद्रोहों से
राम तलक निर्वासित होकर वन में वास बनाए
आंसू पीकर फिर बैरन ये साँस ठहर ना जाये

क्यों न विमुख होगा अंतर्मन
नेह रहित उपभोगों से
एक बूंद भी स्नेह मिला ना
बिना स्वार्थ जब लोगों से
हमने करके होम निरंतर अपने हाथ जलाये
आंसू पीकर फिर बैरन ये साँस ठहर ना जाये

सुधा पिलाकर जो औरों को
विषम गरल खुद पीतें हैं
पाकर वे अमरत्व जगत में
तुझमें मुझमे जीते हैं
इसीलिये हमने भी कितने क्षीर सिन्धु विलगाये
आंसू पीकर फिर बैरन ये साँस ठहर ना जाये

अपनों के खातिर कुछ
खोने का संत्रास नहीं था
लेकिन कुंडल कवच मांग लेंगें
यह विश्वास नहीं था
खेद है सबकुछ देकर भी हम कर्ण नहीं कहलाये
आंसू पीकर फिर बैरन ये साँस ठहर ना जाये


रचयिता
सुकवि बुधराम यादव
बिलासपुर

सुन भगवान् हमार .....


तोर कलजुग ले अब तो तहीं उबार ये दे सुन भगवान् हमार !
मनखे मा कर दे हमरो गा सुमार ये दे सुन भगवान् हमार !!


तैहा के मनखे सब धरम करम जानय
दाई दादा गुरु पीढी ला बहुते मानय
परहित मा अब्बड़ कन पुन ला सरेंखय
पर पीरा मा गजब पाप ला उन देंखय
सदा जिनगी अउ उन्चहा बिचार ये दे सुन भगवान् हमार !
तोर कलजुग ले अब तो तहीं उबार ये दे सुन भगवान् हमार !


एक ठन निगोटी पहिर के दिन काँटे
तन मन के भेद जमो अंतस ले पांतय
चटक मटक ले निच्चट रहिन दुरिहाए
संत सही करम करिन गरब ला बरकाये
जनम धरे के अउ कत्तेक हे सार ये दे सुन भगवान् हमार
तोर कलजुग ले अब तो तहीं उबार ये दे सुन भगवान् हमार !


जांगर भर बूता कंरय खा-पी अतियावंव
मेहनत के पाछु अपन बाघ अस गुर्रान्वय
चारी चुगरी म नई जिनगी खपांवय
गुरतुर बोंलय जनव अमृत बरसांवय
अब रोजे जनमाथे दुश्मन हजार ये दे सुन भगवान् हमार
तोर कलजुग ले अब तो तहीं उबार ये दे सुन भगवान् हमार !


सुमता के डोरी मा जक्कड़ के बांधे
उठे बैठे अउ जागे के गुण सांधय
ऊपर अनपद भीतर ले गजब सुजान रंहय
मुखागर बैठे उन सगरी पुराण कहयं
अब तो पढ़े लिखे हो गायन गवार ये दे सुन भगवान् हमार !
तोर कलजुग ले अब तो तहीं उबार ये दे सुन भगवान् हमार!


गोद भदाई पहिरे मुंड खुमरी ढाँके
देह चिरहा बंडी ले कल्लेचुप झांके
तभो मसर मोटी मा गान्वय ददरिया
अर तत्ता बइला ला हांके नगरिहा
अब तो संगवारी नई चिन्हे खेतखार ये दे सुन भगवान् हमार
तोर कलजुग ले अब तो तहीं उबार ये दे सुन भगवान् हमार !


थोरहे खेती कंरय अउ बहुते उपजान्वय
'सोन चिरैयाँ' अपन देस ला कहांवय
अंग अंग उनकर सोन अउ चांदी मा सोहय
घर अंगना ला जगमग लछमी हा मोहय
अब जम्मो देखव त होत हे खुवार ये दे सुन भगवान् हमार
तोर कलजुग ले अब तो तहीं उबार ये दे सुन भगवान् हमार !


गाँव सहर जमो डहर माते हे कन्झत
सुरसा कस पसरत हे 'जनसँख्या' झंझट
ऊपर ले महंगाई कनिहा ला टोरत हे
दुख के मोटरा मा अउ दुख ला जोरत हे
कब तक सहिबोन अइसन अतियाचार ये दे सुन भगवान् हमार
तोर कलजुग ले अब तो तहीं उबार ये दे सुन भगवान् हमार !


मंदिर सुन्ना हे मयखाना म मेला
गुरु चेला मां होवत ठेलम ठेला
अइसन अमोलहा ये जोनी नई सोंचय
झूठें ला खाथें अउ झूठें अन्चोथय
देखव लबरा मन के भारे बजार ये दे सुन भगवान हमार
तोर कलजुग ले अब तो तहीं उबार ये दे सुन भगवान् हमार !


रचियता.............
सुकवि बुधराम यादव
बिलासपुर...

Wednesday, August 13, 2008

तुम विश्वास करो यह निश्चित हमने तो स्वीकारा है

तुम विश्वास करो यह निश्चित हमने तो स्वीकारा है
............................
तुम विश्वास करो यह निश्चित हमने तो स्वीकारा है
जब भी ठोकर मिली डगर पर हमने तुम्हें पुकारा है

यहाँ अकेले अब चलना कुछ
अधिक कठिन लगता है
नेह रहित दुर्बल अवलंबन
पग-पग पर ठगता है

अब तो केवल नाम तुम्हारा अपना सबल सहारा है
तुम विश्वास करो यह निश्चित हमने तो स्वीकारा है

फिर भी कितनी दूर आ गए
रुक रुक कर यूँ चलते
पूर्ण विराम मिला ना केवल
प्रश्न हमेशा छलते
सिर्फ एक संकल्प सदा से संबल रहा हमारा है
तुम विश्वास करो यह निश्चित हमने तो स्वीकारा है

संयम धीरज सत्यशीलता
आश्रित इच्छाओं के
गुजरें हम कितने बार
कठिन परीक्षाओं से
होने से बदनाम उमर को हमने बहुत संवारा है
तुम विश्वास करो यह निश्चित हमने तो स्वीकारा है

जीवन के इस जटिल सफ़र का
निश्चित नहीं ठिकाना
पता नहीं उस मंजिल का
जहाँ इसे है जाना

इसीलिए हर अवसर पर हमने किया इशारा है
तुम विश्वास करो यह निश्चित हमने तो स्वीकारा है !
जब भी ठोकर मिली डगर पर हमने तुम्हें पुकारा है !!

रचयिता..........
सुकवि बुधराम यादव.....

Tuesday, August 12, 2008

नयना नीर भरे कोई फिर ना झरे


नयना नीर भरे कोई फिर ना झरे
नाही कोई किसी को छले
आओ सबसे से मिले गले.....

इस चमन में अमन की वो गंगा बहे
जन गण सदियों सलामत औ चंगा रहे
धरा धर्ममय सर्वसम्पन्न जन
भूख भय भेद संत्रास के हो दमन
दिन प्रतिदिन और फूले फले
आओ सबसे मिले हम गले ......

क्रांतियाँ जोड़कर हम शिखर पर चदें
भ्रांतियां तोड़कर हम निखरकर बढ़ें
प्रीति परतीति मन में पिरोते रहें
स्नेह समता समन्वय संजोते रहे
यूँ ही चलते रहे सिलसिले
आओ सबसे मिले हम गले ....

दौर अनचाहे विपरीत जो भी चले
बीज किन्तु विलग के ना कोई पले
यह हमें आस और पूर्ण विश्वास
जमीन एक और एक आकाश हो
खुशियाँ नितनव जहाँ हर पले
आओ सबसे मिले हम गले

नयना नीर भरे कोई फिर ना झरे
नाही कोई किसी को छले......

रचयिता.....
सुकवि बुधराम यादव

Monday, August 11, 2008

रिमझिम बरसय बादर

जोहार भाई मन ला.....!
सावन भादो म एक ठन गीत भेजत हवं
अनंद लव अउ अपन बिचार देहव.....!!
.............................. समीर..



.................. रिमझिम बरसय बादर ........

रिमझिम बरसय बादर अउ डोले पवन !
बिजली रहि-रहि बारय तन म ये अगन !!
सरग बैरी गजब घमघमाथे
पापी मन म डर ये समाथे !
चुचवावय ओरिया जईसे दुनो नयन
बिजली रहि-रहि बारय तन म ये अगन

माते मजूर बन मा नाचय
मेचका बिरहा पुरान बांचय !
नदियाँ कस बाढे मोर जीव के
जरनबिजली रहि-रहि बारय तन म ये अगन

सावन हरेली भादो पोरा
धरके लाये हें अपन कोरा !
मोर सुख बाढे बिटिया जैसे गय गवन
बिजली रहि-रहि बारय तन म ये अगन

खेत-खार मा गुन्जय ददरिया
गावंय जुरमिल जमो जवारिहाँ
पिया बिना लागय मोला बही बरन
बिजली रहि-रहि बारय तन म ये अगन

घर घर गौरा भोजली
गावंयदेबी देवता गजब रिझांवय !
मन के मिलौना बिन में का करंव अपन
बिजली रहि-रहि बारय तन म ये अगन

जब ले चौमास सुघर आइस
सबके हिरदे निचट जुदाइस !
मोर जीव के जियान काउन करय हरन
बिजली रहि-रहि बारय तन म ये अगन !!

रिमझिम बरसय बादर अउ डोले पवन !
बिजली रहि-रहि बारय तन म अगन !!

......................रचयिता.....
.....सुकवि बुधराम यादव..
............. बिलासपुर..

महर महर महकय माटी

............महर महर महकय माटी.........








महर महर महकय माटी मोर लहर लहर लहरावय धान !
खेत मेढ़ मा ठाढे मगन मन मुचुर मुचुर मुसकावय किसान !!

जुरमिल बेटा-बहु सुवारिन
खेत के बन-कचरा निरवारिन !
जईसे जिनगी के गुन अवगुन
निरवारय कोई चतुर सुजान !!
महर महर महकय माटी मोर,
लहर लहर लहरावय धान !

झिमिर झिमिर बादर बरसय
धरती के चारों खुंट सरसयं !
सुध बुध बिसरे बांचय
दादुरजस के जानव पोथी पुरान !!
महर महर महकय माटी मोर,
लहर लहर लहरावय धान !

सुरूर सुरूर पुरवैया डोले
खर खर धान के पाना बोलय !
चिरईं चुरगुन जमो खार के
जुरमिल जनव मिलांवय तान !!
महर महर महकय माटी मोर,
लहर लहर लहरावय धान !

मेहनत के फल समुनहे पाके
तन मन के सब दुःख बिसराके !
चोंगी मा माखुर भर आगी
चकमक मा सुलगावय मितान !!
महर महर महकय माटी मोर,
लहर लहर लहरावय धान !

कनिहा मा ओठ्गाये तुतारी
धरे खांध मा रांपा कुदारी !
अलबेला अलखावत गावय
मोर धरती मोर जीव परान !!
महर महर महकय माटी मोर,
लहर लहर लहरावय धान !

महर महर महकय माटी मोर लहर लहर लहरावय धान !
खेत मेढ़ मा ठाढे मगन मन मुचुर मुचुर मुसकावय किसान !!

..................रचयिता.......
.सुकवि बुधराम यादव..
..........बिलासपुर..

जागरण गीत

.................... जागरण गीत .................





मालिक बन गयं नौकर भैया
ऊंच हबेली के रहवैया !
हमरे घर ले हमला धकियावत हें
अब तो जागव छतिसगद्रिया मन
मौउका ये हाथ ले गवावंत हे !!

लोटा धर के आइन जेमन होगयं सेठ महाजन
धान कटोरा सजाइन तेमन हो गयं भाट अउ मांगन
हमर ओरिया घाम घलाईया
हमर देहे ला खवईया
हमरे बर कुकुर कस गुर्रावत हें !
अब तो जागव छतीस..............


हमर सत इमान धरम के इन होगें बयपारी
होत बिहनिया झाँकत हावन इंखर हम दुवारी
इन भाइन खुर्सी बैठवैया
हमन टहल के बजवैया
हुकुम हमर ऊपर इन चलावत हें !
अब तो जागव छतीस ..


दिन मा दू रात मा चार महल इन सिर्जाथें
हमर छानी-परवा उघरा भितिया अउ भहराथे
हितवा बन के बिष देवइया
जोंक जनव ये लहू पिवईया
हमर आन्छत इन मजा उड़ावत हें
अब तो जागव छतीस.....


घर आये पहुना कस सुघर उंच पीढा बैठारेन
अपन पेट के बाना मार के इन्कर पेट मा डारेन
खाके पतरी छेदा करइया
बाहिर डेहरी के बैठिया
घर मा हमर दवां ये बगरावत हें !
अब तो जागव छतीस ..

का गुन मा थोरे कउनो ले का बल के हम हीन
बीत गे ओ समे जवंरिहा फिर गय अब ओ दिन
ये भुइंया के सेवा बजैया
छत्तीसगढ़ ला मोर कहैया
पार बांधव पानी अब बोहावत हे !
अब तो जागव छत्तीसगढ़ मन मौका ये हाथ ले गवावंत हे .......!!


............ रचनाकर
........सुकवि बुधराम यादव

तैं भले बिसर दे

.....................तैं भले बिसर दे ..............

तैं भले बिसर दे मोला गियां, तोर सुरता गजब आवत हे !
घरी घरी दिन छिन पल पल, मोर जियरा ल कलपावत हे !!

कैसे मंतर तैं साधे
मोटहा मया डोर मा बांधे !
जतके तोर ले दुरिहाथंव
ओतके बहुते सपनाथँव !!
तोर पैरी के रुनझुन जोही सोये नई देवय जगावत हे
तैं भले बिसर दे मोला गियां तोर सुरता गजब आवत हे !

सांप असन बेनी के फुंदरा
पिंवरा पोलखा लाली लुगरा !
चमकत माथा के टिकली
बीच बादर जईसे बिजली !!
तोर मांग के सुघ्घर सेंदुर संग मोला रहि रहि के समझावत हे
तैं भले बिसर दे मोला गियां तोर सुरता गजब आवत हे !

कान खिनवा गर म रुपिया
संग छजय पातर सुतिया !
बहुंती बांह के तोर गोरी
अउ चुरी करंय मन चोरी !!
गोड़ के तोर लाली महाउर अंतस म दवाँ लगावत हे
तैं भले बिसर दे मोला गियां तोर सुरता गजब आवत हे !

चिमटी भर कनिहा
एक दुसर बर हें अरपन !
पाँव के बिछिया चरफोरी
चंदा तोर जनव चकोरी !!
मुड-गोड़ के जमो सवांगा तोर नितनाम संदेसा लावत हे
तैं भले बिसर दे मोला गियां तोर सुरता गजब आवत हे !

जिनगी के रद्दा नापत
गहिरा उथली ल झाँकत !
किंजरत हावंव संगवारी
धरे मनसुभा एक भारी !!
आँखी के पुतरी तोर बिना जमो जिनिस अबिरथा जावत हे
तैं भले बिसर दे मोला गियां तोर सुरता गजब आवत हे !

काँटा खूंटी भरे पयदगरी
छांड आयेंव मया के सगरी !
कहुं मन ये नई थिरावय
जीव के जियान नई सिरावय !!
निरमोही तोर लागे जादू तन भितिया कस भहरावत हे
तैं भले बिसर दे मोला गियां तोर सुरता गजब आवत हे !

ए दे सिरतोन तोला बतावंव
रोवत नई बने तौं गावँव !
जब ले तन म हावय स्वासा
तब तक मन म हावय आसा !!
तभे नयना चौबीसों घरी ओरवाती कस चुचवावत हे
तैं भले बिसर दे मोला गियां तोर सुरता गजब आवत हे !

.............रचियता
.......सुकवि बुधराम यादव
.........बिलासपुर..

तैं भौंरा बन के आजा

सुध के बाती म तोर जोही जिनगी के जोत जगावत हौं !
तैं भौंरा बन के आजा गियाँ तन बगियाँ मैं ये सजावट हौं !!

लुगरा पहिरेंव रेसमाही
गहना ला जमो गवानाही
अंगरा चुहय ये अंग-अंग ले
बैरी देखत म जरजाही !!
एक जुग मा बगरे केस कोर मै सेंदुर आज लगावत हौं !
तैं भौंरा बन के आजा गियाँ...

खुंट धर अंगना लीप डारेंव
मोतियन चौंक ये पुर डारेंव !
गंगाजल मा नहवा के
कंचन काया कर डारेंव !!
अरजी-बिनती कर बेलपाती शिवजी म ये दे चढ़ावत हौं !
तैं भौंरा बन के आजा गियाँ....

खोर गली ये सुघर बहारे
दियना घी के घलव बारे !
डेहरी बईठे बाट जोहय
दुनो ये नयना रतनारे !!
समुन्हें ले जमो जवईया सो धनी रहि-रहि के सोरियावत हौं !!
तैं भौंरा बन के आजा गियाँ...

घेरी बेरी ये अंचरा सरकय
फर फर डेरी अंग फ़रकय !
अलबेला तोर औती के
सुख मा आठों अंग भर गयं !!
छिन घर अंगना छिन खोर गली तोर आरों ओरखे जावत हौं !
तैं भौंरा बन के आजा गियाँ ....

पापी कौआं छानी मा बोलय
जनव भेद जिया के खोलय !
तोर केरा खाम कस बइयां बिन
मन पीपर पात कस डोलय !!
सइयां पाँव पखारे बर दूब चन्दन घलव मंगावत हौं !

तैं भौंरा बन के आजा गियाँ तन बगिया मै ये सजावत हौं..
सुध के बाती मा तोर जोही जिनगी के जोत जगावत हौं...

............रचनाकार
.... सुकवि बुधराम यादव
..... बिलासपुर

कोंअर काया कुम्हालागे

मोर फूल असन कोंअर काया कुम्हलागे
निरमया निरमोही तोला दया नई लागे...
तोला मया नई लागे.....

रेंगव तव अंचरा कांध ले सरकत जाथे
बैरी ये जवानी घरी-घरी गरुवाथे
तोर संग गोहरावत काजर घलव धोवागे...
निरमया निरमोही...........

पैरी के रुनझुन सबद निचट नई परखे
चुरी खनके के आरो घलव नई ओरखे
पुन्नी चंदा तोर छाँव जोहत कौआगे
निरमया निरमोही.............

सगरी जिनगी तोर बर अरपन कर डारेंव
ये मांग के सेंदुर तोर खातिर भर डारेंव
तोर मया पिरित मा लोक लाज बिसरागे
निरमया निरमोही......

तरिया नदिया मे संगवारी छेंकत हे
तोर नाव के गोटी मोर डहर फेंकत हे
अनमोल रतन ये गली-गली मा बेचागे
निरमया निरमोही तोला दया नई लागे ........
मोर फूल असन कोंअर काया कुम्हलागे.......
............तोला मया नई लागे

रचयिता
सुकवि बुधराम यादव वर्ष- 1976

Sunday, August 10, 2008

अइसन भुइंयाँ के करबोन सिंगार

अइसन भुइंया के करबोन सिंगार.....

जिबोन एकर बर हम मर्बोन एकर बर,
औ धरबोन जनम हम हजार.....
अइसन भुइंयाँ के करबोन सिंगार,
अइसन माटी के करबोन सिंगार...

मया के कोरा मा पउढेन एकर हम
अंचरा के पायेन दुलार
चिखला माटी लागे एकर चन्दन कस
धुर्रा के महिमा अपार
सरगसुख जानव पहुँचावत हे घर-घर
एकर गंगा-जमुना के धार
अइसन भुइंया के करबोन सिंगार.....

रतिहा मोती झरे छैन्हा चदैनी
आऊ दिन मा सुरुज के अंजोर
झुमरय ये धरती सरग मुसकावे
सुन करमा ददरिया के सोर
गावत हे पोथी राम्मायन कस जस एकर
करबोन चोला पैलहे पार
अइसन भुइंया के करबोन सिंगार....

गजब दुलौरा मयारुक ये माटी के
हम संगवारी किसान
हमर सोये रतिहा होते ये धरती मा
जागे ले होते बिहान
मिहनत आछत सुघर लछमी बिराजे
हमर घर अंगना दुवार
अइसन माटी के करबोन सिंगार.........

सुघर रहिबोन सुघर कमाबोन
सुमता मा करबोन बिचार
भटके भुलाये ला रद्दा देखाबोन
धरम के दियना ला बार
संझहा बिहनिया एकर पैएयाँ पर्बोन
धन होही जनम हमार
अइसन भुइंया के करबोन सिंगार...
अइसन माटी के करबोन सिंगार....
जिबोन एकर बर हम मर्बोन एकर बर हम....!

...गीतकार बुधराम यादव के रचना
वर्ष 1975