Tuesday, November 11, 2008

फ़िर तुम आयी नहीं....

हीं रहते हो.......!....हूँ..,  मैं सोचती थी कोई हॉस्टल जैसा होगा.  यहाँ क्या अकेले...?   नहीं......गाँव से भाई साथ में है...... खाना बना देता है... और मैं बस खूब एक्सरसाईज और स्टडी...तुम्हारी याद से फुर्सत मिलते ही.....जल्दी से अधूरा सा लग रहा वाक्य पूरा किया....   हूँ...!  वो तो दिखता है.... ऊपर से नीचे तक देखने की मुद्रा बनाते हुये बोली.  लाओ गाड़ी मैं किनारे पार्क कर दूँ.   यहाँ से बड़ी गाड़ी निकलने पर दिक्कत होती है.   हाँ.......सलिल,  दिक्कत तो हो रही है .........  क्या कहा...?   कुछ नहीं.....!  ये गुलमोहर कैसे सूख रहे हैं..... फ़िर उत्तर सुने बिना बुदबुदाती हुई .... और भी बहुत कुछ सूख रहा है...!!!  ..बस यूँ ही नंदू ने पानी नहीं दिया होगा.  तुम्हारी फेवरिट..... ब्लेक टी बनाऊं   ..... पहली बार घर आयी हो.... पानी का गिलास सामने रख कर खड़ा हो गया.  कुछ नहीं, तुम बस यहाँ पास बैठो...... लो, बैठ गया. ....अरे ये क्या...!!!  पैरों के पास क्यों...??   हाँ सखी, .......कभी कभी ......तुम्हारी खुशबू से साँस भर जी लेने का मन करता है.... वो तो यहीं कहीं से गुजरती है.... साथ बैठता हूँ.... तो पता नहीं खो जाता हूँ.... यहीं रहने दो ना.... जीने दो ना......!   हूँ...... आज हम आखिरी बार मिल रहे हैं....... इसके बाद एक्जाम्स फ़िर पता नहीं क्या...?  जिंदगी और कैरियर के लिए कुछ सोच ही न सकी...... तुम एक झोंके की तरह आये..... सब कुछ उड़ता गया.... कहाँ से समेटना शुरू करूँ...... सोचती हूँ आज ही कुछ......चलूँ.. !  हूँ..  थोडी देर रुको ..... तुम्हारे काँधे पर सर रख लूँ......!......हूँ...!  तुम नहीं होगी तो तुम्हारे इस कंधे का भुलावा तो रहेगा...... आँसू....झर रहे आँखों को पोंछने को सही.  अच्छा तो अब चलूँ........सलिल.! ......उसकी आँखों में अभी से आँसू थे.  बाहर निकले तो देखा...... बड़ी गाड़ी से रास्ता जाम हो गया था.


................समीर यादव

Sunday, November 9, 2008

नेताजी का मोबाइल ...3 [ नौकरशाही..]

चार संहिता लग गई ..... तो क्या हुआ ?  काम थोड़े ही रुक जायेगा !! ....ये सरकारी अधिकारी तो बस बहाना ढ़ूढ़तै हैं...... काम नहीं करने का. चलो अभी मिलवाता हूँ.....नेताजी से. छोटी-छोटी आँखों को जबरदस्ती विश्वास दिलाने के उपक्रम में बड़ी करता हुआ एक सेवक मुन्नू कबाडी को अपने पीछे-पीछे ड्राईंग रूम तक ले आया.  नेताजी.....! क्या बताऊँ...वो अशरफ को अयोध्यानगर थाने में पकड़ लिया गया..... कहते हैं... बिजली के तार, जो और चोरी किए हो, सब बरामद कराओ... वरना सड़ा देंगे. सुखलाल सिपाही ने बताया है कि मेरे यहाँ भी छापा मारने आ रहे हैं. थानेदार से बात की.... नेताजी ने एक साँस में बोलते मुन्नू कबाड़ी को टोका. हाँ किया था... पर थानेदार बोलता है... साहब तो तुम्हें भी उठाने को बोल गए हैं... स्स्साले ! अपने आदमी को चोरी के लिए बाकायदा स्कूटर, मार्शल जीप दे रखा है. इस बार माल और जीप के साथ पकड़ाया है... सुबह 4 बजे के चेकिंग में.... साहब ख़ुद भी थे.....!!  मैं कुछ नहीं कर सकता,  मामला साहब के हाथ में है. परेशानी के भाव मुन्नू कबाड़ी के चेहरे पर आ-जा रहे थे. नेताजी एक सेवक को इशारा करते हैं.... सेवक तो जैसे इसी के इंतजार में ही था... झट सक्रिय होकर इलाके के साहब को फोन मिलाया. उधर से हेलो कहते ही छूटते हुए बोला.... साहब, माननीय नेताजी बात करेंगे. फ़िर ऑनलाइन...मोबाइल नेताजी को पकडाता है. नेताजी नमस्कार..!  कैसे हैं पांडेयजी,,,!  नेताजी तुंरत अनौपचारिक होते हुये मुद्दे की बात पर आते हैं... देखिये क्या यही सब काम रह गये हैं आपके पास, हमारे कार्यकर्ताओं को परेशान करें, बिठा ले.! ......लेकिन वो तो माल और चोरी की गाड़ी के साथ पकडा गया है... बुझे स्वर में उत्तर आया.  तो क्या..! कार्यवाही में तो आप ही थे न.....तो फ़िर मेनेज करिये. बाद में बात करते हैं.
..........................आधे घंटे बाद सेवक पुनः वही नंबर मिलाकर मोबाइल नेताजी को देता है... आवाज आती है... जी हाँ, छोड़ने के लिए कह दिया है.  हाँ ठीक है.... देखिये चुनाव  का टाइम है... उसको,  आपको, सबको देखना है....हा हा...हा..!!!  नेताजी विजयी भाव चेहरे पर लाकर मुंह से ही हँसते हैं.


....समीर यादव.

Friday, November 7, 2008

नेताजी का मोबाइल - 2

नेताजी सुबह से अपने एयरकन्डीशन कार से चुनाव क्षेत्र के दौरे पर हैं....अब कहाँ चलना है..? भैयाजी, अयोध्या नगर..! अच्छा...गाड़ी पहले ही रोक लेना. भैया जी, वैसे भी गाड़ी अन्दर तो जायेगी नहीं.... रोड ही कहाँ है...!!! अबे, चुप्प्प....! बीच में ही किसी ने टोका. पैदल हाथ जोड़कर चल रहे नेताजी जहाँ उम्र में बड़े....किसी को देखते स्मरण पर जोर आजमाकर नाम बोलते.....उसका चरण स्पर्श कर लेते. अचानक बाएँ मुडे...... सिर झुकाया...... और सदाराम महावर के झुग्गी में घुसकर अन्दर पड़ी टूटी मचिया पर जैसे तैसे लेटी बुधिया के सिरहाने ठिठक कर लौटे और पैर तरफ़ जगह बनाकर जम गये. ....माताराम कैसी हो..!  सदाराम.... [ एक सेवक बीच में इशारा करता है..]  फ़िर अधखुले मुँह से...... बजता हुआ मोबाइल नेताजी को पकड़ा देता है..... आवाज आती है..." - कहाँ हो भैयाजी..!  यहाँ घर में माँ को दिल का दौरा पड़ गया है.... जल्दी घर आ जाइए."  मुँह में दबाये पान को दायें गाल से बांयी ओर कर अविचलित भाव से मोबाइल को.....कान से हटाकर मुँह पर लाकर सबको सुनाते हुए नेताजी कहते हैं........ अरे, इतना भी मेनेज नहीं कर सकते......... मैं अपनी माँ के पास ही तो हूँ...... और ... सदाराम ... माताराम की तबियत ठीक तो रहती हैं न....!!!

.....समीर यादव

Wednesday, November 5, 2008

नेताजी का मोबाइल......

एक राजनीतिक दल में समाज विशेष के स्वयंभू नेताजी चुनावों की घोषणा के बाद मीडिया को इंटरव्यू में पार्टी की संभावना और उसमें अपनी भूमिका पर खींसे निपोरते हुए कह रहे थे..." पार्टी ने अपने कार्यकाल में हमारे समाज का ख्याल रखकर खूब काम किया है, हम प्रचंड बहुमत से सत्ता में आयेंगे, मैं तो पार्टी का सच्चा सिपाही हूँ जो दायित्व मिलेगा...निभाने की कोशिश करूँगा. हा हा...हा..! " चुनावों में पार्टी उम्मीदवारों की सूची में अपना नाम नहीं पाने पर मीडिया के लोगों को बुलाकर वही नेता चीखते हुए कह रहे हैं..." पार्टी में भाई-भतीजावाद, अदूरदर्शिता, पक्षपात चरम पर है, नेतृत्व ऐसे लोगों से घिरा है, जिन्होंने समाज और पार्टी दोनों का कबाडा कर दिया...ऐसी पार्टी में दम....[ एक सेवक बीच में कुछ इशारा कर रहा है.]...मैं तो इस चुनाव.में... .!!! " ...इतने में उनका एक सेवक बजता मोबाइल उन्हें पकडाता है जहाँ से आवाज आती है....क्यों बुढापे में विधवा बनने का नाटक कर रहे हैं....किसी आयोग-निगम में लाल-पीली बत्ती का इंतजाम हो जाएगा...अधिकृत उम्मीदवार के समर्थन की घोषणा करिए .... जी..जी......भैयाजी., ..मित्रों मैं तो पार्टी और जनता का सेवक हूँ...न सही जब मौका मिलेगा सेवा करूँगा.... नेताजी फ़िर खीसें निपोर रहे थे...! वहाँ खड़े लोग और मीडिया वाले भी खीसें ही तो निपोर....!

Monday, November 3, 2008

हेलो !!! कौन...! ...भावना दीदी ~~ !! भाग- 4

इन सभी संदिग्धों से अब पुलिस ने पूछताछ के टीम बनाकर सिलसिलेवार पूछताछ करना शुरू किया....सनत  शुक्ला, राजेश पाटन वाला, राजेश गढा वाला, अजय बवेले,  और कुछ गढा के लडके.  पूछताछ करने वाली टीम जल्दी ही निराश होने लगी..." सर ! इस तरह से तो कुछ नहीं हासिल होने वाला है, ये लोग शातिर बदमाश हैं और इनसे केवल पूछताछ .....इनका हौसला बढ़ा रही है....और हमारा....??? "  नहीं, नहीं ऐसी बात नहीं है ....टी आई साहब ...थोड़ा हौसला आप भी रखिये ....किसी भी आदमी को दोषी होने के बाद लगातार निगरानी में रखकर बातचीत करने से क्लूस जरुर मिलते हैं....!!  मैं थोड़ी देर में आपको अपने ओब्सेर्वेशन का नतीजा बताता हूँ.  DSP ने विवेचना में लगे स्क्वाड का धैर्य बनाये रखने के लिए पूरे जोश के साथ समझाने की जुगत किया. अपने विडियो रिकॉर्डिंग और मुखबिर से बात करने के थोड़ी देर बाद थाने की तरफ़ अपनी गाड़ी मोड़ते हुए, टी आई को वायरलेस सेट से पूछा...लोकेशन प्लीज..!  सर थाने पर...! टी आई ने "कैरी ऑन" की औपचारिकता को छोड़....तत्काल जवाब दिया. और चिंटू कहाँ हैं...? सर वह भी थाने पर ही मौजूद है.. ओके....मैं भी थाने आ रहा हूँ ओके , रोजर सर..! टी आई ने सेट पर जवाब देकर ड्यूटी ऑफिसर से दो बढ़िया चाय लाने के लिए कहा.


टी आई साहब आप ने सबसे इन्डिविसुअली बात कर ली !...सर..अब तक तो कई बार .! ..क्या कहना है आपका..! सर, मैं तो अब आपके आदेश का इंतजार कर रहा हूँ... टी आई जैसे रटे हुए संवाद बोल रहे थे.  DSP ने कहा तो ठीक है एक बन्दे को लेकर आइये...यहीं पर.....!!!  किसे सर...? .वही....हेलो  कौन  भावना दीदी वाले को...!!! किसको सर....समझा नहीं...?  अमित ठाकुर को.....DSP ने चमकती आँखों को ऊपर उठाते हुए अपनी उँगलियों में फंसे पेपरवेट को टेबल ग्लास पर घुमा घुमाकर उसका संतुलन सांधने की कोशिश करने लगे.



चिंटू उर्फ़ अमित ठाकुर को पूछताछ के लिए पहले ही थाने बुला लिया गया था....जो अभी तक इंटेरोगेशन में पूछे जा रहे..... उसके  मालगुजार से सम्बन्ध, घटना के दिन उसकी उपस्थिति, अन्य गतिविधियाँ और कार्य के बारे सभी सवालों के जवाब बड़े इत्मीनान और गंभीरता से दे रहा था.

DSP ने टी आई को इशारा किया कि अब चिंटू पर कुछ नजरें इनायत की जाये.... थोडी सी नफासत भरी सख्ती और अकाट्य तथ्यों के झंझावात के बीच चिंटू ने कुछ देर... न, नही, मुझे याद नहीं, मैं नहीं जानता, मुझे मालुम नही के सहारे अपना वजूद बनाये रखा....लेकिन खिलाफ होते माहौल में और अधिक देर तक टिक नहीं सका !......सूखी आँखों से आसमान की ओर निगाह करते हुए कहा...." क्या करता सर ! ..इसके सिवा मेरे पास कोई रास्ता भी नहीं था. " 

.................अमित ठाकुर उर्फ़ चिंटू जो कि तीन साल पहले ड्राईवर की हैसियत से मालगुजार ओंकार प्रसाद शुक्ला के संपर्क में आया...अपने दक्षता,  कौशल और विश्वास जीतने की कला से धीरे-धीरे पहले मुलाजिम फ़िर मालगुजार के कई व्यवसायिक के साथ निजी कामकाज का राजदार हो गया.  ओंकार प्रसाद भी उसके काम और निष्ठा को देखते हुए उसके हैसियत से ज्यादा सम्मान देने लगा. इन्हीं बातों से चिंटू ख़ुद को एक राजदार मुलाजिम से कहीं आगे मालगुजार का हिस्सेदार [ पार्टनर ] समझने लगा.  इस बीच होने वाले सभी सौदों में वह ख़ुद का हिस्सा मन ही मन जोड़ने लगा.  कुछ सौदों में उसने मालगुजार से अपने लिए हिस्सा देना भी कबुलवा लिया. लेकिन ओंकार प्रसाद शुक्ला की कई आदतें मालगुजारी जो से उपजी हुईं थीं...... पगार समय पर नहीं देना, हिस्से देने के वादे बस करना,  काम लेते हुए तारीफ करना और गुस्से में सब कुछ उतार देना,  शराबनोशी,  इस उम्र में भी नीयत ख़राब होने की कमजोरी... जा नहीं रही थीं.  धीरे धीरे चिंटू मालगुजार से बेजार होने लगा और फ़िर एक दिन उसने फैसला कर लिया कि.... इतनी मेहनत और समय जो उसने लगाया है, उसका जीवन के गणित में कोई तो हिसाब होता होगा.....ये तो करना पड़ेगा...!!!

................अपने साथियों के मिलकर उसने योजना बनायी कि पहले मालगुजार को फोन करके जमीन देखने बुलायेंगे और धमका कर पैसे वसूल लेंगे...नहीं मानने पर मौका भाँप कर काम करेंगे.
................इसी योजना के तहत उसने 16 जून की सुबह 9.13 बजे राजेश गढा वाले से मिले सिम से मालगुजार को फोन किया.  मालगुजार के नियत स्थान केशरवानी होटल पहुँचने पर अपने साथी....मोनू उम्र १८ वर्ष  निवासी गढा मोहल्ला,  भोलू उर्फ़ सचिन उम्र १९ वर्ष निवासी दशरथ नगर के साथ उसे जमीन दिखाने के बहाने अपने घर में लाकर एक कमरे में बिठा लिया.  घर वालों को समझा दिया कि जमीन के एक बड़े सौदे की बातचीत चल रही है...तुम लोग डिस्टर्ब नहीं करना.
...............पहले इधर-उधर की बातों में लगाये रखने के बाद चिंटू दोपहर तक कहीं मुद्दे पर आया.....तो बात समझते ही मालगुजार भी उसे बातों में ही उलझाये रखकर अपने बच निकलने का रास्ता तलाशने लगा... इस शह और मात के खेल में दोनों का समय निकलता रहा.  फ़िर शाम को करीब 6.55 बजे चिंटू ने अपने साथियों से मशविरा किए बगैर मालगुजार के अभी तक घर से बाहर रहने का कारण बताते हुए खैरियत देने के साथ ही थोड़े और समय की मोहलत पाने के लिए ......मालगुजार के घर पर उसकी बड़ी बेटी भावना पाण्डेय के फोन नंबर पर काल किया. अक्सर बातचीत के शुरुआत में होने वाले .....हेलो !  कौन..?  भावना दीदी...!!!  बोलकर ओंकार प्रसाद शुक्ला के जमीन के सौदे के सिलसिले में पाटन में होने और थोड़ी देर से आने की जानकारी देने की कोशिश की. लेकिन उसे क्या मालूम था कि ये " तीन शब्द " ही उसके सटीक योजना में सेंध लगाने के लिए काफी होंगे. 
..............रात लगभग 10.00 बजे तक सौदा,  वसूली,  फिरौती ...की बात तय नहीं होने पर, तीनो साथी मिलकर मालगुजार को बीयर पिलाकर एक ही स्कूटर की बीच वाली सीट पर बिठाकर भेड़ाघाट के निर्जन लम्हेटाघाट के किनारे ले गये ...वहाँ भी हिस्सेदारी के बकाया रुपये पाने के लिए खूब जोर मशक्कत की...लेकिन कुछ नतीजा न निकलते देख रात करीब 2.30 बजे ......वहीं पड़े पत्थर, स्कूटर में रखे राड से सर पर मारकर मालगुजार को पहले अधमरा कर दिया फ़िर उसका चेहरा विकृत कर पहचान छुपाने के लिए स्कूटर के पेट्रोल से गमछा भिगाकर जला दिया. लेकिन अपने इस अपराधिक कृत्य से चिंटू न तो अपनी,  न मालगुजार ओंकार प्रसाद शुक्ला की और न ही अपने कम उम्र साथियों की पहचान पुलिस की खोजी निगाहों से छुपा पाया..... बल्कि उम्र के 24 वें साल में ही...वह मालगुजार के अधजले चेहरे की भांति अपने साथ दो और नादान साथियों का आशियाना जरुर जला बैठा.  
-- समीर यादव 
नोट  -  अभियोजन की कानूनी बाध्यता हेतु कुछ व्यक्तियों के नाम परिवर्तित कर दिए गये हैं तथा सेल नंबर्स नहीं दर्शाए गये हैं.


Sunday, November 2, 2008

हेलो !!! कौन...! ...भावना दीदी ~~ !! भाग-3


दूसरे दिन याने 18 जून को सुबह पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ गई, जिसमें चेहरे पर पेट्रोल जैसी ज्वलनशील पदार्थ डालकर जलाने और नुकीले, भोथरे हथियार से सर के पीछे और चेहरे पर गहरे जख्म पहुँचाकर हत्या किया जाना  लेख किया गया था. मृत्यु का कारण अधिक रक्तस्त्राव और शाक को बताया गया, जबकि समय 24 से 36 घंटे के पूर्व होना निश्चित किया गया था.

उधर मोबाइल नेटवर्क कंपनियों की मेहरबानियों से CDR  [ कॉल डिटेल्स रिपोर्ट ] लेकर कांस्टेबल उम्मीद से पहले ही DSP  के समक्ष उपस्थित हो गया. DSP ने उसे शाबास कहते हुए अभी तक लिए गये बयानों को एक बार फ़िर गंभीरता से पढ़ा, वे बयान जिसमें खास तौर से मृतक ओंकार प्रसाद शुक्ला के जानने वालों ने इस सनत शुक्ला की तरफ़ उंगली स्पष्ट रूप से उठाई थी. और फ़िर अपनी नोटिंग डायरी की कुछ ख़ास पेजेस को खोलकर, CDR  के साथ तरतीबवार विश्लेषण आरम्भ किया.  


सबसे पहले ओंकार प्रसाद शुक्ला के सेल नंबर के CDR अनालिसिस शुरू करते ही उनकी नजरें सुबह 9.13 बजे के इनकोमिंग कॉल पर जाकर टिक गई, जिसके आने पर मालगुजार बगैर ड्राईवर की प्रतीक्षा किए ही पैदल घर से निकल पड़ा था. इस नंबर के डिटेल्स नोट कर DSP ने हेड कांस्टेबल शिवनाथ को उस नंबर/सिम कार्ड के धारक व्यक्ति को फ़ौरन पता करने के टास्क पर लगा दिया. उसके बाद CDR विश्लेषण के अनुसार मृतक के मोबाइल से बेटी भावना एवं ड्राईवर अजय बवेले से हुए बातचीत की, बताये गये समय अनुसार पुष्टि हो रही थी. लेकिन लोकेशन का कालम कुछ अलग बंसी बजा रहा था, जो ध्यान देने का बिन्दु तो था..... किंतु मोबाइल के टावर्स के दूरी मेजरमेंट  की इतनी एडवांस तकनीक DSP के पास नहीं थी और विवेचना में अभी तक आए साक्ष्य भी पर्याप्त नहीं थे. की इसी आधार पर शक की थ्योरी पर काम करना शुरू कर दिया जाता. थोड़ी देर बाद हेड कांस्टेबल शिवनाथ ने फ़ोन से बताया कि सुबह 9.13 बजे कॉल वाले नंबर के सिम कार्ड होल्डर राजेश का एड्रेस पाटन है. और मालगुजार का ड्राईवर अजय बवेले दो राजेश को जानना बताता है....एक पाटन का और दूसरा गढा का ही. उधर टी आई भेडाघाट ने जानकारी दी कि ओंकार शुक्ला की बेटी भावना DSP साहब से कुछ बात करना चाहती है..!!
 


DSP स्वयं टीआई को लेकर देर शाम मालगुजार के घर पहुंचे . वहाँ मृतक के परिजनों ने सनत शुक्ला के व्यवहार और हरकतों के सम्बन्ध में खूब विस्तार से जानकारी दी. साथ ही घटना के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उस पर संदेह भी जाहिर कर दिया. इसी बीच हेड कांस्टेबल शिवनाथ दोनों राजेश को लेकर वहीं पहुँच गया. दोनों राजेश के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं जिसे देख रात के करीब 9 बजे का समय दिन के 12 जैसे लग रहा था. आखिर उनके चेहरे पर हवाइयाँ किस कारण से थीं...????
पाटन नामक कसबे में रहने वाले राजेश ने बताया कि वह मालगुजार मृतक ओंकार और उसके ड्राईवर अजय बवेले को जानता है लेकिन यह मोबाइल नंबर उसका नहीं है..वह तो दूसरा नंबर उपयोग करता है. जो अभी भी उसके पास है, चाहे तो चेक कर लें. दूसरी और गढा में निवास करने वाले राजेश ने बताया कि वह केवल ड्राईवर अजय बवेले को जानता है, क्योंकि वह पान मसाला खाने के लिए आता है तो कभी कभार पान दुकान पर उसकी बात -मुलाकात हो जाती है. गढा में ही काफी समय से रहने की वजह से वह मालगुजार को नाम और चेहरे से पहचानता जरुर है लेकिन उससे कभी कोई बातचीत नहीं हुई. सेल नंबर के बारे में पूछने पर उसने बताया कि करीब २ महीने पहले उसे मोहल्ले के ही अशोक नाम के सिम बेचने वाले ने यह सिम उसे 200/- रुपये में बिना कागजात के दी थी. जो बाद में उसने चिंटू को दे दिया..! इस पर DSP ने लगभग चौंकते हुए पूछा कौन चिंटू..???  तो उसने चेहरे पर बिना कोई भाव लाये जवाब दिया-  साहब ! चिंटू......याने यही अपना अमित जो गढा में रहता है.
इसी बीच भावना पाण्डेय सूजी हुई आँखे पोंछते हुए उसी कमरे में आई, जहाँ गवाह राजेश द्वय से पूछताछ चल रही थी......और भावावेश में बिना भूमिका के कहने लगी.....क्या बताऊँ सर !  मेरे ध्यान से उतर गई थी... जब 16 जून की शाम 6.55 बजे उसके मोबाइल पर घंटी बजी तो उसने फोन अटेंड करने के लिए जैसे ही नंबर देखा तो....वह पापा का कॉल था.  लेकिन फोन रिसीव करते ही उधर से आवाज आई.....हेलो...!  कौन ..? भावना दीदी..!!  यह सुनकर वह कुछ समझ नहीं पाई और बोली ....कौन..?  चिंटू तुम...!!  जवाब में उधर से बीच में ही थोडी लरजती लेकिन कड़क सी आवाज आई ...अरे नहीं नहीं ..!!!  मैं तो पाटन से बोल रहा हूँ.  तुम्हारे पिताजी को जमीन दिखाने लाया हूँ..... लो अपने पिताजी से बात करो.  थोडी देर बाद पापा ने फ़ोन पर आकर बताया कि वह जमीन देखने के लिए पाटन में है, वापस आने में लेट हो जायेंगे.  पूरी बात को ध्यान से सुन रहे पुलिस टीम में इस बार चौकाने की बारी टीआई की थी......उसने भावना से पूछा ....कौन चिंटू. ??  भावना ने आश्चर्य भाव से बताया ...सर ! यही अपना मुलाजिम अमित ठाकुर.

यहाँ प्रकरण फ़िर एक नए मोड़ पर आकर खड़ी हो गई......सनत शुक्ला...?  राजेश...पाटन वाला  ??राजेश...गढावाला  ???   और फ़िर चिंटू उर्फ़ अमित ठाकुर ???? अशोक सिमवाला, भावना पाण्डेय, केशरवानी होटलवाला  या फ़िर कोई और ?????.  क्या देर रात को मालगुजार के घर बैठे DSP  जैसे इन कड़ियों को जोड़ने में अभी भी लगे हुए थे.......उसी तरह आप भी लगे हुए हैं......!!  या फ़िर आप किसी निष्कर्ष पर ही पहुँच गये....!!!

मैं तो DSP साहब के साथ हूँ, जो सूत्रों को करीने से जोड़कर ठोस तरीके से मामले की तह में पहुँचाना चाहते हैं और उसके पहले कुछ बताना...!!!!!  भी नहीं चाहते .

तो पढिये यह जानने के लिए......कि आखिर लाल हवेली के मालगुजार ओंकार प्रसाद शुक्ला के रहस्यमय ह्त्या का सूत्रधार, जिम्मेदार और हत्यारा कौन ???? पुलिस ने विवेचना में आगे क्या किया .....

चौथा और अन्तिम भाग.... कल दिनांक - 03.11.2008

Saturday, November 1, 2008

हेलो !!! कौन...! ...भावना दीदी ~~ !! भाग-2





गढा जबलपुर का मशहूर " लाल हवेली "  भेडाघाट-लम्हेटा घाट से लगभग 25 किलोमीटर दूरी पर है..और वहाँ के मालगुजार ओंकार प्रसाद शुक्ला जो एक संपन्न परिवार का मुखिया था, की ऐसे निर्जन स्थान पर निर्मम ह्त्या......!!!  मामले में हत्या और इसके तरीके के पीछे जितने भी सम्भव कारण...या सूत्र हो सकते थे ..बिना देरी किये पुलिस ने सोचना, जोड़ना और जुटाना शुरू किया.

मृतक ओंकार प्रसाद शुक्ला का एक भरा पूरा परिवार था. जिसमे गृहिणी पत्नी के अलावा दो पुत्रियाँ दोनों विवाहित, उनमे से एक घटना के कुछ दिनों ही पूर्व मायके माँ-पिता से मिलने आई थी.  मालगुजारी का काफी जमीन जायदाद होने के साथ, वह इस क्षेत्र में दिलचस्पी होने के कारण बहुत समय से प्रोपर्टी डीलिंग बिजिनेस में भी था. एक पुरानी लेकिन मेन्टेन फियेट कार और उस पर एक अदद ड्राईवर अजय बवेले था. घर में लैंड लाइन टेलीफोन के अलावा एक सेल फ़ोन भी व्यक्तिगत उपयोग के लिए ले रखा था. घर से ही अपने कारोबार का ऑफिसनुमा कार्य कुछ विश्वसनीय पुराने मुलाजिमों के माध्यम से चलाता था. अभी तक आई इस तरह की जानकारी को अनालिसिस की भट्टी में चढाये पुलिस कुछ और सूत्रों की प्रतीक्षा में वहीं तैनात...आने जाने वालों से बातचीत करती रही. इस समय तक ओंकार प्रसाद शुक्ला के स्थानीय परिजन एवं कारोबारी रूप से नजदीकी लोग मातमपुरसी के लिए घर पर आने लगे थे. पुलिस से अनौपचारिक बातचीत में घर वालों ने बताया कि मृतक ओंकार का अपने सगे छोटे भाई सनत शुक्ला से संपत्ति सम्बन्धी पुराना विवाद कई मामलों मुकदमों के साथ अदालत में चल रहा है....और इसीलिए उनके परिवार का आपस में किसी भी सुख-दुःख में आना जाना भी नहीं है. इसके अलावा अन्य किसी व्यक्ति से विवाद या अन्य कोई बात-अदावत न कभी बताई गई, न ही उनकी जानकारी में अब तक आई है. अधिकांश परिजनों एवं करीबियों ने इस बात को और पुष्ट भी किया.



अभी विवेचना की कोई एक दिशा तय करना मुमकिन नहीं था...इसलिए पुलिस हत्या के पीछे ....मृतक ओंकार प्रसाद शुक्ला का अपने सगे भाई सनत शुक्ला से चला आ रहा विवाद , अन्य किसी प्रोपर्टी डीलर से छुपा हुआ कोई विवाद , फिरौती के लिए अपहरण-हत्या,  अवैध सम्बन्ध, घरेलु विवाद---में कोई पारिवारिक कलह, संपत्ति सम्बन्धी विवाद, अन्य कोई तात्कालिक कारण या फ़िर सुपारी हत्या, में घटना से जुड़े साक्ष्य ढूंढ़ रही थी. लेकिन इसके साथ भेडाघाट पुलिस DSP के नेतृत्व में कुछ और कोणों पर भी सोच रही थी.  
                                   
16 जून को भी ओंकार प्रसाद शुक्ला अपने सामान्य दिनचर्या के मुताबिक सुबह उठे,  तैयार होकर हल्का फुल्का नाश्ता किया और अखबार पढ़ते-पढ़ते ड्राईवर का इंतजार करने लगे. तभी उसके मोबाइल पर एक कॉल आया कि  " गौतम जी के मढिया के पास केशरवानी होटल पर आओ,  एक जमीन देखने चलना है. "  मिलने के लिए बताया गया स्थान इतना नजदीक था कि मालगुजार घर से पैदल ही चले गये.  घरवालों ने भी इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, क्योंकि कभी कभार ड्राईवर के लेट होने पर मालगुजार स्वयं काम पर निकल जाते और जरुरत पड़ने पर उसे फ़ोन करके अपने पास बुला लेते थे. लेकिन सुबह आने वाला वह फ़ोन किसका था, यह अब भी कोई नही जानता था..जिसका कॉल उसे आखिरी बार घर से निकाल ले गया था. 
घरवालों और सभी मुलाजिमों के बयानों में कोई खास बात नहीं समझ में नहीं आई, सिवाय ओमकार प्रसाद की बड़ी बेटी भावना पाण्डेय के बयान में यह बताना कि.... 16 तारीख को पापा ने उसके मोबाइल पर एक बार सुबह जमीन देखने जाने की बात बताने, फ़िर दो बार ड्राईवर के आने पर मोबाइल से बात करने के लिए कहने और फ़िर एक बार शाम को जमीन देखने के कारोबारी सिलसिले में पाटन में होने और देर से घर लौटने की जानकारी देने के लिए फ़ोन किया था.  ड्राईवर अजय बवेले ने बताया कि उसे घर के काम से देरी हो जाने के कारण, करीब 12 बजे उसने एक बार फ़ोन पर मालगुजार से बात की तो मालगुजार ने उससे कहा कि- " ठीक है, मैं जमीन देखने जा रहा हूँ, तुमको कहाँ आना है.... थोडी देर से बताता हूँ."   मुलाजिम चिंटू उर्फ़ अमित ठाकुर जो 17 जून की शाम से मृतक ओंकार के घर पर मौजूद था, ने बताया कि उसका कोई भी काम होता था तो सेठ जी [ मालगुजार ] एक रात पहले या सुबह से फोन करके बता देते थे, कि वह आकर मिल ले या फलां काम कर ले.  लेकिन कल कोई बात ही नहीं हुई.  वह तो दोपहर तक तो अपने घर पर ही था.  वैसे भी उसका मोबाइल फोन आजकल रिचार्ज नहीं हो पाने के कारण बंद पड़ा है. और.......वह शाम को जैसे ही मालगुजार के बारे में सुना तुंरत घर चला आया. DSP ध्यान से इन बातों को सुनते रहे ...बयां लिखने और विडियो रिकॉर्डिंग करने के अलावा भी वो अपनी डायरी में कुछ-कुछ नोट करते जा रहे थे.

जानकारी में आये इन तथ्यों की तत्काल पुष्टि प्राथमिकता में था इसलिए क्रमशः ..... केशरवानी होटल के पास ओंकार प्रसाद के पहुँचने और वहाँ पर किसी से मिलने ....पाटन में ओंकार प्रसाद से व्यक्तिगत एवं कारोबारी रूप से जुड़े सभी लोगों की तसदीक कर ली गई. लेकिन किसी ने भी मालगुजार के पाटन आने, जाने, मिलने या देखने की जानकारी होने की बात में हामी नहीं भरी. DSP ने शांत भाव से इन सभी लोगों के सेल नंबर नोट किए और अपने एक कांस्टेबल रीडर को बुलाकर कुछ नम्बर्स को पृथक से नोट कराने लगे....शायद कॉल डिटेल्स रिपोर्ट [ CDR ] मँगाने के लिए.

अभी विवेचना की कोई एक दिशा तय करना मुमकिन नहीं था...इसलिए पुलिस हत्या के पीछे ....मृतक ओंकार प्रसाद शुक्ला का अपने सगे भाई सनत शुक्ला से चला आ रहा विवाद , अन्य किसी प्रोपर्टी डीलर से छुपा हुआ कोई विवाद , फिरौती के लिए अपहरण-हत्या,  अवैध सम्बन्ध, घरेलु विवाद---में कोई पारिवारिक कलह, संपत्ति सम्बन्धी विवाद, अन्य कोई तात्कालिक कारण या फ़िर सुपारी हत्या, में घटना से जुड़े साक्ष्य ढूंढ़ रही थी. लेकिन इसके साथ भेडाघाट पुलिस DSP के नेतृत्व में कुछ और कोणों पर भी सोच रही थी.


तो पढिये यह जानने के लिए......कि आखिर लाल हवेली के मालगुजार ओंकार प्रसाद शुक्ला के रहस्यमय ह्त्या का सूत्रधार, जिम्मेदार और हत्यारा कौन ???? पुलिस ने विवेचना में आगे क्या किया ....
.........तीसरा या  भाग..3 .कल 2-11-2008 को 

सूचना-  इस लेख में अभियोजन की आवश्यकता हेतु कुछ नाम परिवर्तित कर दिए गए हैं, साथ ही सेल नंबर्स नहीं दिये गये हैं...इस हेतु खेद है. उम्मीद है इस से रचना प्रवाह बाधित नहीं होगी.