Saturday, February 21, 2015

बदलाPUR ने बदला बदला लेने का अंदाज़

                                       
अपना बॉलीवुड बदला/revenge पर खाँटी मूवी बनाने और #टैग लाइन रखने का आदी रहा है. हमारी टिपिकल बदला लेने वाली फिल्मों में खालिस अनैतिकता, अन्याय और सिस्टम के खिलाफ उतने ही अभिनव ढंग से बदला लेने वाला नायक कभी-कभार विलेन से तो ज्यादातर महँगे टिकिट और बेशकीमती टाइम खोटी करने वाले दर्शकों से हिसाब बराबर करता है. क्या "बदलाPUR" का बदला भी उतने ही शिद्दत से श्रीराम राघवन [एजेंट विनोद फेम] ने रचा है ? यह जानने के लिए फिलिम देखना तो बनता है.

फ़िल्म दर्शक की नब्ज़ को पहले ही मिनिट से मैच कर लेती है फिर उसे थामे, दबाये, बढाए, रोके चलती रहती है. गाने बैकग्राउंड स्कोर की तरह हैं जो सूफियाना अंदाज़ में में स्टोरी को सपोर्ट करती हैं, गुटखा थूकने, कश लगाने या फिर उबासी दूर करने के लिए वॉशरूम तक जाने की इजाज़त नहीं देती.  ये सोचना मज़ेदार है कि जब श्रीराम राघवन ने इसके कलाकारों को पहली बार story narrate किया होगा तब उनका रिएक्शन कैसा-कैसा रहा होगा. कुछ को समझ आया होगा तो कुछ ने इस रिस्क के साथ फिल्म साइन कर लिया होगा कि फिल्म के प्रीमियर शो में राघवन से ही पूछ लेंगे.

दर्शक को सबकुछ  दिखाकर उसे स्टोरी के क्लाइमेक्स पर अटकल लगाते रहने पर मजबूर करना ही इस "थ्रिलर" का असली "थ्रिल" है.

यामिनी गौतम, दिव्या दत्ता, राधिका आप्टे, विनय पाठक, हुमा कुरैशी एक तरफ अपने करैक्टर में डूबे हुए "irreplaceable" हैं, तो दूसरी तरफ "तीन प्रमोशन और दो बाईपास" वाला पुलिस ऑफिसर, "पुराने चाँवल में कीड़े न निकाल" की सलाहियत वाली माँ, पुलिस थाना, जेल, पुलिस/जेल लाइन के साथ सिनेमेटोग्राफी सब फिल्म के मूड और फ्रीक्वेंसी को ऊपर वाले लेवल पर ले जाते हैं.

वरुण धवन चौंकाते हुए उठते हैं, तो नवाजुद्दीन की एक्टिंग सभी रसों का पान कराती यह तय करती है कि वो स्टोरी टेलिंग की विधा के साथ इस फिल्म के असल हीरो हैं. बहरहाल अब बॉलीवुड एक्सपेरिमेंट, सेक्स को लॉजिकली यूज करना सीख रहा है.

धोनी की तरह फिल्म की फिनिशिंग भी नवाजुद्दीन ने अपने ही बिग शॉट अंदाज़ में किया है. क्या किसी अन्याय/गलत कार्य का बदला उसी तरह लिया जाना कंसर्न्स को न्याय दिलाने का सही इंसानी तरीका है या नहीं ? इस प्रश्न को ऑडियंस के दिमाग में खलबली मचाने के लिए छोड़ते हुए.


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#समीर