Saturday, August 17, 2013

नाईट गश्त में चेकिंग



वूं वूं वूं ......................वूँ....वूं...!!!!!

अरे कितनी बार कहा गश्त के दौरान सायरन या हूटर मत बजाया करो और हाँ पीली बत्ती भी जलाने की जरुरत नहीं है.

वो क्या है न सर, फिर पॉइंट ड्यूटी वालों को पता कैसे चलेगा हम चेकिंग में आये हैं. मैं तो केवल पॉइंट पर ही बजाता हूँ.

इस चेकिंग के चक्कर में वो लोग डीसी [ड्यूटी सर्टिफिकेट] लिए बस अपने पॉइंट पर खड़े रहते हैं, मेरा बस चले तो ऐसे डीसी चेकिंग ही बंद कर दूं. वायरलेस सेट क्यों दिया है कॉल नहीं कर सकते.

सभी पॉइंट वाले के पास थोड़े ही है सर, और जो हैं वो भी किस हालत में हैं आप तो जानते हैं. किसी की बैटरी डिस, तो किसी से आवाज ही नहीं आती. ये हूटर वाला आईडिया सबसे बढ़िया है, इसीलिये सिकरवार साहब कहते हैं- “स्साले जब हम अपनी नींद रात में खराब कर रहे हैं तो इनको भी कोई हक़ नहीं है सोने का. करो हल्ला, जागते रहेंगे तो कम से कम कुछ तो क्राइम रुकेगा.”

और गोविन्द कैसा चल रहा है, सब ठीक है तुम्हारे पॉइंट पर 
जी सर !
वो मुन्ना खटिक को चेक किया, पता चला है जेल से छूट गया है.
हाँ सर, लेकिन घर पर कभी नहीं मिलता. बस उसकी माँ और भाभी रहती है
अरे कभी सुबह सुबह दबिश दिया कर, वो भी छत पर, तब मिलेगा ओके 
इस तरफ परवेज डेंजर, अशरफ डॉन, कन्नू काडर को भी दिखवा लेना गौतम....! स्साले...... कुछ न कुछ करते रहते हैं. 
हाँ सर ! आजकल कन्नू काडर अध्यक्ष बनने के चक्कर में झांसी के खूब चक्कर लगा रहा है.. गौतम ने अपना सर जिप्सी के पिछले हिस्से से डी.एस.पी.के कान के पास लाकर बताया  

अरे गौतम ! उधर देखना गली के अन्दर उस मकान की लाइट इस वक्त कैसे जल रही है.

जी सर !

जैसे ही गाड़ी रुकी वहां से कुछ आवाज आते हुए भी सुनाई दी. सब इंस्पेक्टर गौतम उसके साथ गनमेन और एक होमगार्ड फुर्ती में गाड़ी से कूदे और मकान की तरफ दौड़ लगा दिए.

मकान के नजदीक पहुँचने पर वहाँ से आती आवाज लगभग शोर में बदल चुकी थी. मुमकिन झरोखों और दरवाजों से अन्दर झाँकने के बाद भी कुछ ज्यादा समझ नहीं आने पर गौतम ने दरवाजा खटखटाना शुरू किया. थोड़ी देर तक कोई जवाब नहीं मिलने पर पुलिस वालों का गुस्सा और आवाज देने की फ्रिक्वेंसी अपने आप बढ़ने लगी. भीतर तक आवाज पहुंचाने के लिए वे दरवाजे पर हाथ की जगह मुक्के और लात मारने लगे और हाँ मुंह से.... #$%^%$ [ हाँ इसका मतलब गाली है, आपने सही सोचा ]

थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला.

पहले दौर में एक दूसरे को हैरानगी से देखा-देखी के बाद गौतम ने ही पूछा - "अरे इतनी रात को तेज आवाज में टेप बजाकर तुम क्या कर रहे हो."

“अपने घर में मैं कुछ भी करूँ आपसे क्या मतलब” – उस अधेड़ से भी अधिक उम्र के लग रहे है आदमी ने जवाब दिया.

“लेकिन इस उम्र में तुम्हारी ऐसी हरकत से दूसरे परेशान हो रहे हैं. बहुत हो गया, चलो अब सो जाओ..@#$@@ के”- गौतम ने कहा

“किसी को कोई प्रॉब्लम नहीं है तुम नाहक ही मुझे परेशान मत करो....और मुझे @#$%$$ मत दो”- आदमी ने कहा

"तुम हमें प्रॉब्लम समझाओगे #$%^&$ ....., अरे वीरेंदर ले चल इसको".

देखते ही देखते माहौल खराब हो गया और पुलिस ने उस आदमी को टेप रिकार्डर के समस्त सहायक उपकरणों के साथ जीप के पिछले हिस्से में ला पटका.

"सर ! ये तो बहुत #$%^# आदमी है इसे थाना ले जाना पडेगा..." गौतम रिपोर्ट देते हुए बोला.

हाँ चलो, मोती मस्जिद की तरफ से पॉइंट चेक करते हुए इसे कोतवाली छोड़ देंगे

बिठाओ इस @#$%## को और हाँ 109 कर देना, दो चार दिन उधर की हवा खा लेगा तो समझ आयेगा इसे. [पंद्रह मिनट बाद कोतवाली थाना में]

चार दिन तो नहीं दो दिन बाद उसी कोतवाली थाने में ........ सर एक रिपोर्ट करनी है. [दो घबराए से युवक मुंशी के सामने आकर कहने लगे]

बोलो ! मुंशी ने नहीं उसके मददगार ने कहा

सर हम अपने एक रिश्तेदारी में तीन दिन पहले महराजपुर गए थे. पिताजी की तबियत कुछ ठीक नहीं होने से वो यहाँ घर में रुक गए थे. आज सुबह जब हम लौटे तो पिताजी घर पर नहीं मिले...

अरे आस-पड़ोस से पूछा, जान-पहचान वालों से तस्दीक की.....आखिर कहाँ जायेंगे इस उम्र में. वाक्य पूरा होने से पहले ही मुंशी लड़कों की उम्र का अंदाज लगाकर समझाने लगे.

जी साहब पूछ लिया. कहीं से कोई खबर नहीं मिली. हमें बहुत डर लग रहा है सर.

अरे ऐसा करो घनश्याम ! गुम इंसान कायम कर लो - मुंशी जी ने अपने मददगार से रूटीन अंदाज में कहा.

हाँ क्या नाम है तुम्हारे पिताजी का, उम्र, पता, हुलिया, कपडे क्या पहने थे, कहाँ-कहाँ रिश्तेदारी है सब बताते जाओ. हाँ अभी-अभी का एक फोटो भी लगेगा.

जी साहब फोटो है...ये लीजिये. फोटो हाथ में लेकर मुंशी एक बार गौर से देखता है.

सर एक और बात है, घर मे बाक़ी सब तो ठीक है लेकिन पिताजी के कमरे से पूरा साउंड सिस्टम ही गायब है. हमें ये समझ नहीं आ रहा है कि पिताजी उस टेप रिकार्डर को लेकर आखिर कहाँ और क्यों जायेंगे, इसीलिए डर भी लग रहा है. घबराये हुए दोनों बेटे लगातार अपनी आशंका को जाहिर करने की कोशिश करने लगे.....

अरे कुछ नहीं हुआ है तुम्हारे पिताजी को, घबराओ नहीं बैठो. अभी पता लगाते हैं......कहते कहते मुंशीजी ने फटाक से 109  के रजिस्टर से गुम इंसान का रिकार्ड सरसरी तौर पर मिलान करते हुए कनखियों से मालखाने में रखे टेप रिकार्डर का जायजा भी ले लिया. फिर धीरे से मददगार घनश्याम से कहा - "जा बाहर ले जाकर इन्हें बता, कोर्ट से जमानत करा ले, रंगरेलियां मनाते पकड़े गए अपने बाप की..."


साहब ....... ! रिपोर्ट लिखानी है



हेलो...... !  
ये सोचते हुए फ़ोन कान से लगा लेता है कि नाम देखे बगैर फ़ोन उठा लो तो "हेलो" कहना ही रह जाता है 

नमस्कार सर ! शंखवार निवेदन कर रहा हूँ सर ..!
दूसरी ओर से ऐसी आवाज आने पर वह सहज हो जाता है. 

अरे टी.आई.साहब, "महिलाओं एवं कमजोर वर्ग के प्रति संवेदनशीलता" वाली कार्यशाला से कब लौट आये. कार्यशाला के "सब्जेक्ट" को जानबूझकर चबाकर बोलते हैं.  
अबकी तीसरी बार थी न सर, इसलिए दो बजे ही लौट आया था.... बिना लंच पेकेट लिए. फिर थाने से बार-बार फोन आ रहा था, एक 376 की रिपोर्ट आई है, इसलिए सीधे थाने ही आ गया था.  
अरे किसकी रिपोर्ट है ?  क्या हुआ ? ..... चेहरे से सहजता जाने लगी.
बडकुवाँ गाँव की है सर, एक महिला आई है अपने पति के साथ. सर आसपास लोकेशन हो तो थोड़ा आप भी आ जाइए न थाना तक.... ठीक रहेगा.
कैसे, कुछ सीरियस है क्या ?
नहीं सर, लेकिन मामला थोड़ा देखना पड़ेगा.
ओके ..... मैं पहुँचता हूँ.

[विशेष - थाने पर टिपिकल बॉलीवुड मूवी जैसा कोई माहौल नहीं है.]
हाँ बताओ !  - टी.आई. ने पति से पूछा 
ये मेरी पत्नी है इसके साथ गलत काम हुआ है.
कब ? टी आई की निगाहें अब उस महिला की तरफ थी. 
साहब, कल मैं तो घर पर था नहीं.......
तो फिर ....पति को बीच में रोकते हुए टी.आई. ने झुंझलाकर कहा - तुम बताओ बाई ???
लम्बी चुप्पी.............!
घबराओ नहीं ...बताओ ! पति ने भरोसा देने के अंदाज से जोर दिया 
हाँ साहब...! "कल दोपहर बाद जब हम जेवन कर अकेले घर में थे, तभी हमारे जेठजी आये और हमारे साथ जबरदस्ती गलत काम किया." महिला निगाहें फ़र्श पर गड़ाये बुदबुदाने लगी. 
टीआई, डी.एस.पी. और डे ऑफिसर तीनों की निगाह एक साथ मिली, चमकी, फिर पूछताछ शुरू .... 

कल क्यों नहीं रिपोर्ट किया ? 
साहब ये छतरपुर गए थे, रात में आये फिर हमने सबकुछ इनको बताया. रात गहरा गयी थी सो आज रिपोर्ट करने आये 
जेठ कहाँ रहता है ??
वहीँ पड़ोस में साहब - पति ने जवाब दिया 
और सास ससुर ...?
वो जेठ के साथ रहते हैं.
पहले कभी इस तरह की कोई निगाह या हरकत की थी उसने ?
समझ में नहीं आया साहब.... क्या पूछे ?
अरे, मतलब ये कि पहले कोई झगड़ा, विवाद तो नहीं हुआ था उससे ?
ना साहब !   
भाईयों में बंटवारा कब हुआ, शादी कब हुई, कितने बच्चे हैं, बंटवारे में जमीन-जायदाद का कुछ विवाद है क्या, चुनाव में कौन जीता, तुमने किसको वोट दिया था, गाँव में पार्टीबाजी है ?  उसमें तुम किस तरफ हो....?
सवाल कभी पीड़ित महिला तो अधिकांशतया पति समरथ सिंह से पूछा जाने लगा. 

अरे समरथ सिंह तुम्हारे जमीन का मामला तो कोर्ट में चल रहा है न !
जी साहब ! वो तो गजब दिन हो गए. समरथ सिंह खिसककर पत्नी के ओट में होने की कोशिश करता है.
कल तुम्हारे गाँव के फग्गन ठाकुर के यहाँ कोई कार्यक्रम था, सुना है बड़ी दूर दूर से जात-समाज के लोग आये थे जी हुजूर ! 
तेरी ससुराल कहाँ है, मतलब तेरी पत्नी कौन गाँव से आई है ?
कुदारी कलाँ, थाना महराजपुर के शम्भू सिंह की लड़की है.. साहब

इस बीच टी.आई. थाने के दीवान और एम्.एल.सी. कराने के लिए तैनात कांस्टेबल को बुलाकर कान में कुछ कहता है और इसके थोड़ी देर बाद कुदारी कलाँ गाँव  का रहने वाला कांस्टेबल विजय सिंह धीरे से पूछताछ का मुआयना कर रहे डी.एस.पी. को सेल्यूट कर निवेदन करता है - सर, शम्भू सिंह एक रिश्तेदारी में कल से बडकुवाँ गाँव आया हुआ है. कोटवार को ताक़ीद कर दिया है, उसको लेकर थोड़ी देर में वह थाने पहुँच जाएगा.  

करीब एक घंटे बाद ....
अब टी.आई. के कक्ष में हो रही पूछताछ में एक व्यक्ति और बढ़ गया, वह था ... शम्भू सिंह 
पूछताछ महिला से शुरू होती है और वह पीड़ित महिला पहले वाली ही बात को .............ठिठक-ठिठक कर दोहरा की कोशिश करती है...... "साहब.......... बुरा काम किया" 
यह सुनकर वहाँ मौजूद एक व्यक्ति अवाक हुआ, वह था शम्भू सिंह. बाक़ी तो पहले ही सुन चुके थे.
वह तुरंत बोल पड़ा - क्या बोल रही हो ? मैं कल से फग्गन के घर हूँ. समरथ तुमने कुछ बताया ही नहीं और शामलाती [पीड़ित का जेठ] तो कल दोपहर से शाम तक वहीँ कार्यक्रम में मौजूद था. तभी तो समझ ही न आये कि पुलिस आखिर मुझे क्यों बुला रही भला. अब घरबार की इज्जत को इस तरह थाना-कचहरी तक लाओगे तो क्या रह जाएगा. एक सुर में बोलते हुए शम्भू पीड़ित महिला की तरफ घुम गया - "अगर ये सच है तो बोल बेटी ! बड़ी बात है ....!
 फिर एकटक अपनी बेटी को देखता दीवार से घिसटकर जमीन पर बैठ गया शम्भू सिंह.


टी आई के कमरे में कुछ देर लम्बी चुप्पी.....................पसरी रही   !
एक तरफ पुलिस वाले निगाहों से इशारे कर रहे थे, तो दूसरी तरफ आँखे चुराने का खेल सा हो रहा था. जो थोड़ी देर में आंसुओं से डबडबाने लगी.
"बाबूजी.......... तुम्हारे सामने झूठ न कह सकेंगे" - वह बिना आँसू पोछे बोलने लगी 
तुम्हारी सों ... इन्होने कहा हमसे, जो जमीन बचानी है तो केस में समझौता करानी जरुरी है... तो उसके लिए एक मुकदमा हमारी तरफ से दरज करानी होगी.... इसी खातिर हमसे ये रिपोर्ट कराने लाये हैं. हमने मना किया था, नहीं माने.

अब उसकी निगाह पिता से पुलिस की तरफ हुई.. 
साहब.....! रिपोर्ट लिखानी है, हाँ लिखानी है हमें, पर हमारे पति के खिलाफ. वैसे तो हम थाने कभी न आते, पर ये ले आये हैं तो लिखिए..... कितना जुर्म करते हैं ये हम पर, हमारे बच्चों पर, सब बरबाद कर दिया पी-पीकर, न कमाना न कोई उदम करना, न जमीन रही न इज्जत, अब ये धत करम ही रह गया था सो ...... लिखानी है रिपोर्ट.
पति सरककर दरवाजे से बाहर खड़ा हो जाता है और बेटी पिता के गले लगकर रो रही है.

Tuesday, July 30, 2013

जा कुलच्छनी........! सब बरी हो गए





















तुम क्यों आये रिपोर्ट करने ...?
फुसफुस..फुसफुस.....
हाँ कारण ही कान में बताता है.
ऐसी रिपोर्ट हुई तो गुम इंसान ही कायम होना था, लिखा नाम, पता, हुलिया, अंतिम बार कब, कहाँ, किसके साथ देखी गयी.

खोजबीन हुई ........ हाँ भई सच में हुई
न वो मिली, न उसकी लाश ! [ओह इतनी जल्दी लाश क्यों लिख दिया]  

अब जिद से थाने में पहले कान में फुसफुसा कर बतायी गयी कहानी जोर से खुले में सबके सामने सुनाई गयी.
मामला ही ऐसा था कि.......
केस में मर्डर की धारा बढ़ाई गयी [हाँ ठीक सोच रहे हैं अजूबा ! डेड बॉडी मिले बिना]

फिर खोजबीन हुई....... हाँ भई ठीक से हुई 
नहीं मिली, मिलनी भी नहीं थी  
रामपुर बन्नौदा जिला शहडोल से बहती नदी की तेज बलखाती धार से गुम हुई थी वह, ज़िंदा.
सुनते हैं वह तो धकेले जाने से पहले ही मर सी गयी थी. हाँ कारण बताया गया था उसे पहले.

समय गया, बातें रह गयी.... लाश तक नहीं मिली.
हाँ ठीक सोचा आपने, सुराग.... वो भी नहीं मिले.

फिर भी पुलिस ने गवाह, सबूत जुटाया और न्यायालय में चालान [चार्जशीट] किया....... उंची कुल-जात की लड़की को गाँव के चमरापारा के लड़के से कुजात-पियार हो गया. लोक-लाज का लिहाज न रखी. धत ! कितना चेताया, कोई ऐसा सोचे भी न, मिसाल रहे. घर से निकाला चोटी पकड़कर, कपड़े थे बदन पर, बेटी थी आखिर, सब अपनों की भीड़ भी थी इसलिए बस चप्पल-जूते की चपत लगाते, कानों में शीशा घोलते, घसीटते... उफनती नदी के किनारे लाये, धकेल दिया...... जा कुलच्छनी !!!

पुलिस भी न ....पक्का केस बनाकर....ये सब न्यायालय में पेश किया था 
हाँ साहब, पियार था दोनों में, मिलते थे, एक दूसरे को देखकर हँसते भी थे
हाँ साहब, महराज के घर में झगड़ा हुआ था
जी साहब, बहुत भीड़ थी, सब चिल्ला रहे थे मारो-मारो....
हाँ साहब, वहाँ गिरने के बाद किसी को दिखी नहीं
इन बयानों के साथ पुलिस ने चप्पल, चूड़ी के टूटे टुकड़े, एक मोबाइल, चुनरी भी जप्त किया था.

पर मानिए उसके घर देर है अंधेर थोड़े, आखिरकार छह साल बाद न्याय मिल गया.
ऐसे कोई जांच होती है भला. लाश नहीं, जप्ती कुछ ख़ास नहीं, ऊपर से गवाह बोलते नहीं.
फैसला दिया-
"गवाह और सबूतों के अभाव में मामले के सभी आरोपियों को [हाँ माँ-बाप-भाई-चाचा सहित] बा-इज्जत बरी किया जाता है."   

Thursday, March 7, 2013

बन्दूक चल गयी



हल्की बूंदा-बांदी से सड़क गीली हो गयी थी. ठिकाने पर पहुँचने से पहले शहर पार करना ही था. 
दौलत सिंह से मिलते हुए चलेंगे, शादी में नहीं आ सके थे न 
हाँ ! पर ज्यादा टाईम नहीं लगाना.... कंधे पर सीलिंग बेल्ट से फंसी बन्दूक को दायें से बायीं ओर करते हुए कहा उसने 
ओहो..हो..! खड़..र....र.. धडाक ..!! 
लाईट में कुछ दिखा नहीं.... ये ट्रक वाले भी न ..डीप्पर....तो देते ही नहीं 
यार, बन्दूक चल गयी 
सड़क के दूसरी ओर जमीन पर पड़े लड़के को आने जाने वाले देख कर रुकने लगे
दोनों उठे .... अब उनकी मोटरसाइकल कोतवाली थाने की तरफ गयी और ..
थाना पहुँचकर रिपोर्ट लिखाने लगे .....

साहब, मैं ....................पिता............... उम्र करीब पैतीस साल निवासी ............ खेती-किसानी का काम करता हूँ. मैं अपने साथी ............ के साथ मोटरसाइकल से ........................ गाँव के दौलत सिंह के यहाँ शादी में शामिल होने जा रहा था. ............गाँव के स्कूल वाले मोड़ पर पहुँचते ही.................................... !!!!!


अधूरा नहीं है ये.... दरअसल रिपोर्ट तो पूरी लिखाई गयी, लेकिन क्या लिखाई गयी होगी ? 


रिपोर्ट जो लिखाई गयी____________



साहब, मैं ....................पिता ............... उम्र करीब पैतीस साल निवासी ............ खेती-किसानी का काम करता हूँ. मैं अपने साथी ............ के साथ मोटरसाइकल से ........................ गाँव के दौलत सिंह के यहाँ शादी में शामिल होने जा रहा था . ............गाँव के स्कूल वाले मोड़ पर पहुँचते ही सामने से ट्रक आने पर मैं मोटरसाइकल धीमी करके सड़क किनारे रोकने लगा तभी मैंने बांयी तरफ हरपालपुर के रामबीर सिंह को वहाँ बन्दूक लिए खड़े देखा. उसने बन्दूक से मेरी ओर निशाना लेकर मुझे जान से मारने की नियत से गोली चलाई. घबराकर सड़क किनारे कीचड़ में हम गिर गए. राजबीर सिंह से जमीन के मामले को लेकर मेरी पुरानी रंजिश है. मैं और मेरे साथी ............. ने वहाँ राजबीर सिंह को देखा है, सामने आने पर पहचान लूँगा. रिपोर्ट करता हूँ कार्यवाही की जाए 



Sunday, March 3, 2013

उसी तरह बारिश पर भी ....

















बातचीत ........... क्या हुआ था ! तुम्हे पता ?

दृश्य एक .......

पहला - हर गुरूवार का तमाशा है यार ! दिन ब दिन भीड़ बढ़ती जा रही है
दूसरा - हाँ ! उधर दमोह, टीकमगढ़, सागर और छतरपुर तरफ से ज्यादा लोग आ रहे हैं
तीसरा - अरे क्या बात कर रहे हैं अपने जबलपुर से कोई कम है. क्या जज, नेता, बड़े अफसर सब आ रहे हैं
पहला - अब इसे क्या माने आस्था या इलाज न मिलने की दिक्कत
तीसरा - वो जो होता है न, जिसका कोई अंत नहीं....  वही है ये
पहला - पर इस बार चौकी "बाबाजी" [ सरौते वाले ] के घर के बजाय किसी खुली जगह पर लगवाना होगा
दूसरा - बिलकुल अब तक तो पुलिस के दम से चल गया
तीसरा - फिर बारिश का भी अंदेशा है, कुछ इधर-उधर हो गया तो स्टेमपीड [ भगदड़ ] हुआ मानो

दृश्य दो ..............

दूसरा - सारा अरेंजमेंट धरा रह गया.....
तीसरा - बारिश से पंडाल गिर गए और खेतों में पानी भरने से कीचड़ अलग हो गया
दूसरा - उधर चार बजे से उसी जगह चौकी भी शुरू हो गयी, किसको समझाए
पहला - व्यवस्था तो लगी है न ?
दूसरा - उसी के कारण तो अब तक चालीस हजार की भीड़ निकल गयी....

अचानक बारिश ...........
बचने के लिए गाँव की गलियों में बाबाजी के आशीर्वाद के लिए अपनी बारी का इन्तजार कर रहे बीमार बूढ़े, महिलायें, बच्चे और उनके साथ लगे सब भागे ......
बारिश बंद ...........
वही सब लोग वापस भागे ..........साथ ही "लंच" के बाद बाबाजी का सिद्ध जल छिड़काव ....
...........................................भगदड़...................................

दृश्य तीन ...........

पहला - ओह ! कम से कम तीन दर्जन लोगों को तो मैंने गाड़ी में डालकर रवाना किया
दूसरा- डालकर मतलब.... !
तीसरा - मतलब ...इन बिखरे चप्पल जूतों से समझ लो
चौथा - फिर भी कितने लोग मर गए .....?
पहला - अभी तो दस मान लें ....
चौथा - कुछ ज्यादा नहीं हो गए ......!!!
फिर से चौथा - हमारी व्यवस्था लगी थी, देखिये...... जिस प्रकार आस्था पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता ................उसी तरह बारिश पर भी.

Sunday, February 24, 2013

"मर्जी" शिफ्ट होकर केवल लड़के की तरफ हो गयी

पालीटेक्निक कालेज की ओर जाने वाली उस रास्ते में ढलान गजब की थी. चाहे तो इंजिन बंद करके भी ढुलकते हुए वहाँ तक पहुँचा जा सकता था लेकिन उसके दोनों टांगों के बीच फंसी 250 सी.सी. बाइक की इंजिन वहाँ पहुँचने से पहले इतना शोर करती कि वो जहाँ जैसी हो दौड़कर खिड़की पर ऐसे बैठ जाती जैसे कोई राजकुमार एयरक्राफ्ट लिए आँगन में ही लैंड कर रहा है. अब आठवें स्टैण्डर्ड की इच्छाएं ऐसे ही नरम-नरम मखमली होती हैं, जो कभी केफे काफी डे की रौशनी तो कभी नदी किनारे के झुरमुट, खंडहर के पीछे अँधेरे में मुकम्मल होती हैं. दूसरे महीने के पांचवे रोज उसकी बाइक स्पीड ब्रेकर पर फिसलने से गिरी थी, उसे चोट लगी और जख्मों के भरने के पहले ही वो दोनों सपने सुहाने लड़कपन पूरे करने घर से चले गए.......
जाहिर है, तलाश हुई ...

रिपोर्ट हुई .... खोजबीन मची 

मिल गए .....

पूछा तो कहा ..... मर्जी से गए, साथ रहे, मुहब्बत की है...

फिर बयान दर्ज होने तक "मर्जी" शिफ्ट होकर केवल लड़के की तरफ हो गयी
 मुकदमा कायम हुआ.....

लड़के को चारदीवारी वाले जेल और .....लड़की उसी घर में ले जायी गयी जिसमें वो खिड़की अब हमेशा बंद रहती थी.

अरे ..! क्या सोच रहे हैं आप सब ख़तम....समाज, मर्यादा, नैतिकता .... कानून जैसी भी कोई चीज होती है कि नहीं

उसे भी मालूम ये पुलिस की गाड़ी है

गाड़ी के पहुंचते-पहुंचते सिग्नल पर बत्ती लाल हो गयी. वह धीरे से शीशा नीचे कर अगल-बगल देखने लगा. करीब डेढ़ साल के बच्चे को जैसे तैसे से गोद उठाये वह बच्ची स्कार्पियो, वेगन-आर, स्विफ्ट के पास से हाथ जोड़े उसके ठीक बगल वाली सफारी के बंद शीशे पर ठक-ठक करती मांगने लगी. अगला नंबर अपना मानकर उसने डिक्की की तरफ एक नजर घुमाते हुए जेब से ही सिक्का टटोल लिया.
 
वह घूमी तो....फिर उसके बाजू से गुजरकर पिछली गाड़ी पर दस्तक देने लगी...बाबूजी ... बाबूजी...! 

सिक्का मसलते हुए वह सोचने लगा....... उसे भी मालूम ये पुलिस की गाड़ी है

Sunday, January 20, 2013

असुविधा हुई तो काहे का एक्ट और सुविधा के लिए क्यों नहीं एक्ट


ट्रेफिक रूल्स, कोलाहल नियंत्रण अधिनियम, गुटखा, पान मसाला, तम्बाकू पदार्थ के उपयोग से सम्बंधित एक्ट और आबकारी अधिनियम..आदि कुछ इस तरह और भी नितांत आम जीवन को रेगुलेट करने वाले एक्ट हैं. हमारी सोच तो देखिये हम स्वयं तो इनका पालन करते नहीं और उस पर फिर अपनी छोड़ दूसरों से पालन कराने के लिए कानून लागू कराने वाली एजेंसियों से अपेक्षा करते हैं बल्कि कई बार तो उनसे भिड भी जाते हैं. कभी कभार मन कहे या संस्कार पुकारे तो यह सोच कर मना लेते हैं कि हम ऐसा करने से स्मार्ट साबित हुए. वो देखो कब से बेवकूफों की तरह भीड़ में लाइन लगाए खडा है या....! एक मिनट की जल्दी से हम सिकंदर हो जाते हैं. चोरी-छिपकर इनकी अवहेलना से हम होशियार हो जाते हैं. अपनी असुविधा पर काहे का एक्ट और सुविधा के लिए क्यों नहीं एक्ट. ये तो है फेक्ट. एक्ट पर कुछ तो हो पोजिटिव एक्ट.

                                                           आम आदमी के जीवन को रेगुलेट करने वालों प्रावधानों में दलित और महिलाओं से सम्बंधित एक्ट भी हैं. आखिरकार समाज के इतने बड़े तबके को प्रभावित करने वाले पहलुओं को अनदेखा कैसे किया जा सकता है. इस मसले पर भी दोहरे मापदंड का ट्रीटमेंट देखने में आता है. जो चतुर है वह इन प्रावधानों का न केवल उपयोग करता है बल्कि दुरुपयोग भी करता है...वहीँ दूसरी और जो वास्तविक रूप से पीड़ित होते हैं वह अपनी बात कह नहीं पाते या फिर उनके प्रति न्यूनतम संवेदनशीलता का अभाव होता है. परिणाम यह होता है के इन प्रावधानों का समुचित उपयोग हो नहीं सका है. एक तरफ ज्यादती की लाइन क्रास हो रही तो दूसरी और लोग फिनिशिंग लाइन तक नहीं पहुँच पा रहे. पर प्रशासन की गैर-जिम्मेदारी और असंवेदनशीलता के लिए कोई बहाना उपयुक्त नहीं.