सुकवि बुधराम यादव की लम्बी कविता "गाँव कहाँ सोरियावत हे" की अगली कड़ी भाग- 6 के रूप में प्रस्तुत है....चाल चरित म कढ़े रहंय. इन पंक्तियों में सुकवि गाँव के परिवेश में धर्म, नीति, न्याय और फैशन के बदलते और दिखावटी रूप पर कटाक्ष करते हुए ..
चाल चरित म कढ़े रहंय
होये बर होथे गाँव गाँव
की रतन अउ नवाधा रमायन!
सतसंग भागवत कथा घलव
पन बाहिर कुकुर कटायेन*!
बात बात म ओरझत फिरथें
बिरथा रार बढ़ाथें!
छिन भर म जुग भर के जोरे
नता ल होम चढ़ाथें !
नेम धेम मनवइया ओकर ले
दिन दिन दुरिहावत हें!
भले रहंय अड़हा तइहा पन
कइ ठन गुन ल पढ़े रहंय!
कदर करंय जइसन के तइसन
चाल चरित म कढ़े रहंय!
पर के खातिर सरबस देवंय
बोलंय मधुरस कस बानी!
आज सरावत हें घुरूवा म
लाज सरम सब बिन पानी!
काल परो दिन अउ का होही
अंतस सोच सतावत हे!
पढ़ंता गुनवंता मन के
आज हे घलव जमाना!
उद्दिम करके बुध बल आँछत*
जोरत हावंय खजाना!
गुन के पीछू राज राज अउ
देस बिदेस पूजाथें!
अपन नाव के संग राज के
नाव ल जबर जगाथें!
अवगुन के संग के जमाना
गुन ल घलव बढ़ावत हें!
चटनी नून बासी झड़कइया
दार बिना नइ खावंय!
गुटका पान मसाला माखुर
मुंह भरके पगुरावंय!
भिनसरहा जागब बिसरागंय
आठ बजे तक सोथें!
अधकचरा पढ़वइया घर न
घाट घलव के होथें!
तइहा के बइहा ले गय अब
कलजुग रंग देखावत हे!
किसिम किसिम के ओनहा कपड़ा
नवा समे के फैसन!
पुरती खातिर उदिम करत हें
जेकर लखारस* जइसन!
गाँव गली गुंडी घर अंगना
बैठक चौरा भावय!
सरहा सरही के कुरिया म
मन के डाह बुतावय!
इस्नो पावडर साबुन सेंट
अउ का का अजब लगावत हें!
समे के बलवंता चकिया म
एक दिन जमो पिसाथें!
दू कौड़ी म हरिश्चंद्र
राजा ल डोम बिसाथे!
गांव गौटिया तक ल तइहा
सइकल चढ़े नइ आवय!
अउ दू आखर अंगरेजी का
हिन्दी न गोठियावय!
अब इंकरे नाती नतुरा मन
अंगरेजी फरमावत हें!
अमर बेल कस अतियाचारी
बिना मूर जगरत हें!
बिना जतन के बेाम जइसे
इहाँ उहाँ बगरत* हें!
एक हाथ खीरा के लबरा
नौ हाथ बीज बतइया!
बिना गुड़ के बस बातन म
लाड़ू सिरिफ बंनइया!
करम धरम के सत्यानाशी
नीत न्याय समझावत हें!
No comments:
Post a Comment