Tuesday, May 24, 2011

"गाँव कहाँ सोरियावत हे" भाग- 6

सुकवि बुधराम यादव की लम्बी कविता "गाँव कहाँ सोरियावत हे" की अगली कड़ी भाग- 6 के रूप में प्रस्तुत है....चाल चरित म कढ़े रहंय. इन पंक्तियों में सुकवि गाँव के परिवेश में धर्म, नीति, न्याय और फैशन के बदलते और दिखावटी रूप पर कटाक्ष करते हुए .. 


चाल चरित म कढ़े रहंय

होये बर होथे गाँव गाँव
की रतन अउ नवाधा रमायन!
सतसंग भागवत कथा  घलव
पन बाहिर कुकुर कटायेन*!
बात बात म ओरझत फिरथें
बिरथा रार बढ़ाथें!
छिन भर म जुग भर के  जोरे
नता ल होम चढ़ाथें !
नेम धेम मनवइया ओकर ले
दिन दिन दुरिहावत हें!

भले रहंय अड़हा तइहा पन
कइ ठन गुन ल पढ़े रहंय!
कदर करंय जइसन के  तइसन
चाल चरित म कढ़े रहंय!
पर के  खातिर सरबस देवंय
बोलंय मधुरस कस बानी!
आज सरावत हें घुरूवा म
लाज सरम सब बिन पानी!
काल परो दिन अउ का  होही
अंतस सोच सतावत हे!

पढ़ंता गुनवंता मन के
आज हे घलव जमाना!
उद्दिम करके  बुध बल आँछत*
जोरत हावंय खजाना!
गुन के  पीछू राज राज अउ
देस बिदेस पूजाथें!
अपन नाव के  संग राज के
नाव ल जबर जगाथें!
अवगुन के  संग के  जमाना
गुन ल घलव बढ़ावत हें!

चटनी नून बासी झड़कइया
दार बिना नइ खावंय!
गुटका  पान मसाला माखुर
मुंह भरके  पगुरावंय!
भिनसरहा जागब बिसरागंय
आठ बजे तक  सोथें!
अधकचरा पढ़वइया घर न
घाट घलव के  होथें!
तइहा के  बइहा ले गय अब
कलजुग रंग देखावत हे!

किसिम किसिम के  ओनहा कपड़ा
नवा समे के  फैसन!
पुरती खातिर उदिम करत हें
जेकर लखारस* जइसन!
गाँव गली गुंडी घर अंगना
बैठक  चौरा भावय!
सरहा सरही के  कुरिया म
मन के  डाह बुतावय!
इस्‍नो पावडर साबुन सेंट
अउ का  का  अजब लगावत हें!

समे के  बलवंता चकिया म
एक दिन जमो पिसाथें!
दू कौड़ी म हरिश्चंद्र
राजा ल डोम बिसाथे!
गांव गौटिया तक  ल तइहा
सइकल चढ़े नइ आवय!
अउ दू आखर अंगरेजी का
हिन्‍दी न गोठियावय!
अब इंकरे नाती नतुरा मन
अंगरेजी फरमावत हें!

अमर बेल कस अतियाचारी
बिना मूर जगरत हें!
बिना जतन के  बेाम जइसे
इहाँ उहाँ बगरत* हें!
एक  हाथ खीरा के  लबरा
नौ हाथ बीज बतइया!
बिना गुड़ के  बस बातन म
लाड़ू सिरिफ बंनइया!
करम धरम के  सत्‍यानाशी
नीत न्‍याय समझावत हें!

हिंदी अरथ - कटायेन : आपस में बिना लिहाज के विवाद करना, आँछत : भरोसे में, लाखारस : सामर्थ, औकात, बगरत : फैलना, पसरना

Saturday, May 21, 2011

"गाँव कहाँ सोरियावत हे" भाग- 5

सुकवि बुधराम यादव की लम्बी कविता "गाँव कहाँ सोरियावत हे" की अगली कड़ी भाग- 5 के रूप में प्रस्तुत है. सबके  मुड़ पिरवाथें शीर्षक से आज के युवा, राजनीति और संस्कृति का गाँव के परिवेश में क्या स्थिति है..अद्भुत चित्रण.


सबके  मुड़ पिरवाथें

अब नवा जमाना के  लइका
सब नवा नवा भर गोठियाथें
हंसिया कुदरी घर खेत कती
जाये खातिर बर ओतियाथें*!
बाबू साहेब अउ हवलदार
पढ़ लिख के  कइ झन होवत हें!
कइयों झन के  करतूत देख
दाई ददा मन रोवत हें!
काम कमाई बिन कौड़ी भर
सूट बूट झड़कावत हें!

अब के  लइका  मन के  होथे
ऊंच पूर कद काठी।
पन नइ जानय अखरा का ये
अउ भांजे बर लाठी!
रतिहा भर म राजनीति के
होथें जबर जुवारी!
पंचपति, सरपंच पति बन
लक्ष्मीपति पुजारी!
होटल म खावब अउ मोटर म
बस चलब सुहावत हें।

राजनीति के  ओट म अइसन
नगरा नाचे लागिन!
तइहा के  सोये राक्वछस मन
लागत हे फेर जागिन!
पउवा बोतल कुकरा बोकरा
सौ पचास रूपिया म!
लुगरा पोलखा* घोतिया पटकू
अउ गहना-गुरिया म!
पैसा वाले मन गरीब के
नीयत घलव डोलावत हें!

नकटा बुचुवा मारे कूटे
चोर उचक्का डाकू  !
लोफड़ लंपट छल परपंची
लोभी  लुच्‍चा आगू!
भरे सभा म बइठे खुरसी
मच मच के  गोठियाथें!
चमचा भरंय हुंका रू ऊपर
ले ताली पिटवाथें!
अपन नफा के  सिरिफ गोठ ल
जानत अउ जनावत हें!

पंच कउन सरपंच कउन
जनपद जिला पंचाइत!
गांव ठाँव के  हित सेती* बर
एक  ठन जबर सिका इत!
नोट म बोट सके ले खातिर
घर पहली सिरवाथें!
जीत गइन तौ पांच बरिा ले
सबके  मुंड़ पिरवाथें!
मरहा-खुरहा-दुबरहा के
हक  ल सक ल पचावत हें!

गली गुड़ी अऊ हाट बाट म
गंजहा भंगहा घूमय!
गहना गुरिया भड़वा बरतन
के  कीमत म झूमय !
मंदिर स्कूल पंचइत भवन म
जुआ सट्टा खेंलंय !
अपन सब सिरवाके  लइकन
मन बर पाप सके लंय !
असली सपूत हें गिने चुने
जे गाँव के  लाज बचावत हें!

आगी खाके  अंगरा उगलंय
अउ उधम मचावंय घूम घूम!
चिमटी भर ओनहा कपड़ा म
इन नाचंय गावंय झूम झूम!
घर घर म टी.व्ही.टेप देख सुन
एक  एक  ले अनहोनी!
टूरा टनका  के  का  कहिबे
बिगड़त हें मोटियारी नोनी!
चोंगा डब्‍वा तो ठौर ठौर
अनसुरहा कस बोरियावत* हें!

जेकर हाथ लगाम थमायेन
घोड़ा नइ कबूवावंय!
न काठी ले ऐंड़ लगावंय
न कोड़ा चमकावंय!
अंधवा कनवा खोरवा* लुलुवा
अउ डोकरा डोकरी के !
सुख सुविधा ल हवंय डकारत
जइसे सब पोगरी के !
अपन भितिया खदर-कुरिया*
काया कलप करावत हें!

बदनाम घलव हें नाव बिचारी
मितानिन संगवारी के !
पंचाइत अउ का  सुसाइटी
स्कूल का  आंगन बारी के !
कु छ सढ़वा बन कुछ हरहा* कस
मौका  पाके  ओसरावत* हें!
कुछ रूप रंग म बउराये
कुछ चारा चर पगुरावत हें!
बइठे जउने डारा अड़हा
निरदइ असन बोंगियावत* हें!

लखनउ दिल्‍ली का  कानपुर अब
खोर-गिंजरा* मन बर पारा!
जकला भकला मन रहिन कहाँ
निच्‍चट सिधवा अउ बिचारा!
राज राज म किंजर बुलके
सीख गइन दुनियादारी!
खपरा ले लेंटरहा खातिर
बेचत हावंय कोला बारी!
दू चार आना मनो लगथें
बांचे  कइ नाव धरावत हें!


Tuesday, May 17, 2011

गाँव कहाँ सोरियावत हे .. भाग-4

सुकवि बुधराम यादव की लम्बी कविता "गाँव कहाँ सोरियावत हे" की अगली कड़ी भाग- 4 के रूप में प्रस्तुत है. घंघरा -घुघरू, घुम्‍मर-घांटी  को आधार बनाकर कवि ने गाँव को किस तरह स्मरण किया है..देखते ही बनता है.



घंघरा -घुघरू, घुम्‍मर-घांटी

सुरता आथे सुखरा डोकरा
सन के  गुढुवा* आँटत ढेरा*!
मचिया बइठे चोंगी पीयत
माखुर थैली धर पठेरा*!
दू आखर गावय बांस गीत
अउ चार आखर लोरिक  चंदा!

                                                               अइसन गावत नाती नतुरा ल
अरखावत सुार बीच बीच
हे मया मोह जवर फंदा!
कउन आज भुरियावत* हे!

आँखी समुंहे म आ जाथे
संझवती गरूवारी बेरा!
चिरइ चिरगुन के  चहचहाब
चर चहक त जावब बसेरा!
बेंदरा भलुवा संग मदारी
देवार भड्डरी के  डेरा!
झंपुली भर साँप धरे लहुटब
हंफरत गठरी धर सपेरा!
नंदी बैला डमरू धुन
अब कहाँ कहुं बौरावत हें !

घुघरू कौड़ी रिग बिग सोहय
गर म टिकली* अउ बलही* के !
रूनझुन बाजय पैरी खनकय
जइसे टूरी मलमलही* के !
गोड़ म गोड़ायत* गर लहंगर*
खडफ़ड़ी* बंधाये हरही* के !
तभो छिनभर न रीत* रहय
मुंह गोड़ ह जबर लपरही* के !
छइहाँ बिन अब तो बरदिहा*
बरदी ल नइ ठोरियावत* हें!

घंघरा  घुघरू घुम्‍मर घांटी
गरूवारी* बेरा जब बाजंय!
बंसुरी के  धुन म ,वाल बाल
जइसे सब लइका  मन नाचय!
बुड़ती बेरा ललहूं सुरूज के
लाल किरन जब धुर्रावय!
चरवाहा मन के  चेहरा चुपरे
राम राज जइसे भावय!
सिरमिट गिट्टी के  खोर गली
अब धुर्रा कहाँ उड़ावत हें!

रभावत दौडय़ रामबती अउ
हुंक रत आवय परबतिया!
गंगाजल भोजली के  संग म
तरिया बर जावय दुरपतिया!
लीपे पोते अंगना डेहरी म
चौक  पूरय जब क रमौतिन!
तुलसी चौरा अन्न के  कोठी
ल दीया देखावय अमरौतिन!
अब ऊवत अंगन बटोरब
बूड़त दीयना देब भुलावत हें!

अब हाथ हाथ भर के  मुनगा
अउ गज भर लमा परोड़ा!
देहे बर नइ आवय पूछत
दीदी मयारूक  मनटोरा!
गन्ना रस लोटा भर पीले
खाले जी भर गुड़ के  भेली!
अब अंतस ले  घनवारा*
हे क उन कहइया बरपेली* !
अपरिधहा* होवत जावत हें
अउ मनमाने पगुरावत हें!

ओ हटवारा के  बर पीपर
अउ ठाकुर दइया के  गस्ती!
ओ तरिया पार के  बेल पेड़
डूमर बोहार बस्ती बस्ती!
बिही बगइचा सीता फल
अउ आम जाम कांदा बारी!
ओ धाप धाप* भर अमरइया
के  छाँव परागय संगवारी!
अमहा जमहा अउ पिपरहा
सब ठौर के  नाव नदावत* हें!


*हिन्‍दी अरथ - गुढुवा : लकड़ी में गूँथा हुआ रस्सी का ढेर, ढेरा : हाथ से गूँथे रस्सी के  ढीलेपन को बल देने हेतु लकड़ी या धातु का उपकरण, पठेरा : मिट्टी की दीवाल में छोटे-मोटे सामान रखने या दीया-चिमनी रखने हेतु बनाई गयी जगह, भुरियावत : लोरी गाकर सुनाया या पुचकारना, टिकली : माथे या शरीर के  अन्‍य भाग में मौलिक  रंग के अतिरिक्त छोटी-छोटी बिंदी जैसे छींटें,  बलही :  जिसका  हल्का  लाल-पीला रंग हो,  गोड़ायत : अत्‍यधिक चंचल युवती, गर लहंगर : भगेड़ू जानवर के  पैर में बाँधा जाने वाला लकड़ी का  टुकड़ा,  खडफ़ड़ी : अधिक  भगेड़ू जानवर के  गले में लटकाया गया लकड़ी का मोटा एवं चार-पांच फीट टुकड़ा,  हरही : जानवर के  गले में बाँधने लक ड़ी से बनी घंटी,   हरही :  नजर चुराकर खेत खलिहानो में बारंबार जाने वाली गाय, रीत : खाली या रिक्त,  लपरही :  मुँह मारने वाली, बरदिहा :  किसानों के  गाय-बैल चरवाहा,  ठोरियावत : इकट्ठा करना,  गरूवारी : गोधूलि बेला, घनवारा : गन्ने के  खेत में स्थापित गुड़ बनाने हेतु चरखे की  जगह, बरपेली : बरबस आग्रह,  अपरिधहा : अपने लिये सोचने वाले या स्‍त्री,    धाप :  लगभग मील भर की  दूरी, नंदावत : विलुप्त होना

कवि परिचय
बुधराम यादव
जनम : 3मई १९४६ 
जनम स्थान : ग्राम पंचायत -खैरवार खुर्द, जिला -बिलासपुर
माता : पूजनीय स्व. ढेलादेवी यादव
पिता : पूज्यवर श्री भोंदूराम यादव
शिक्षा : पत्रोपाधि सिविल अभियांत्रिकी
लेखन : सन् 1965 ले छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी म गीत, कविता अउ लेख
परसारन : आकाशवाणी रायपुर, बिलासपुर सहित दूरदर्शन बिलासपुर ले समे-समे म परसारन
डॉ. अजय पाठक के हिन्‍दी गीत संग्रह ‘बूढ़े हुए कबीर’ के छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद ‘डोकरा भईन कबीर’
परकासित होवइया : हिन्दी `दोहा संग्रह' -` मन मतंग बूझे नहीं', हिन्दी -गीत-कविता संग्रह - `पाने को अमरत्व'
संपादन : छत्तीसगढ़ी इंटरनेट ब्लॉग पतरिका `गुरतुर गोठ' के वरिष्ठ संपादक, `छत्तीसगढ़ी चैनल' स्मारिका 2010 के संपादक
परकासित कृति : `अॅचरा के मया '' 2001
वर्तमान म : छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति जिला शाखा बिलासपुर के अध्यक्ष
सेवा निबरित सिविल अभियंता
संपरक : `मनोरथ' एमआईजी ए/8,चंदेलानगर, रिंगरोड नं.2, बिलासपुर (छ.ग.) मोबाइल : 09755141676