प्रमोद रामावत "प्रमोद"
परिचय.......
जन्म- 5 मई 1949 शिक्षा- विधि स्नातक
सम्प्रति- उप सम्पादक "अमृत मंथन दैनिक", जन संपर्क अधिकारी
प्रकाशन- मेरी अधूरी अमरनाथ यात्रा[ यात्रा वृत्तांत ], सोने का पिंजरा [ गजल संग्रह ] संपर्क- 09424097155
प्रमोद जी नीमच मालवा अंचल के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं और अपनी रचनाओं से न केवल साहित्य प्रेमियों अपितु आम जन को भी अपना रसिक बना लिया है. प्रमोद जी की पंक्तियाँ बिना किसी लाग लपेट के सीधे दिल से दिल को पहुँचती है. वे जितनी सहजता से कार्यक्रमों का संचालन करते हैं उतनी ही सरलता से सबसे घुलमिल भी जाते हैं. उनके स्नेह से अभिभूत मैं, उनकी कुछ मेरी पसंद की पंक्तियाँ आप सबसे बाँट रहा हूँ.
मुझको यही जमीं यही आसमान मिले
मरकर दोबारा आऊं तो हिंदी जुबां मिले दुनिया बहुत बड़ी है, मगर मुझको इससे क्या ?
जब भी वतन मिले यही हिन्दोस्तां मिले |
उम्र भर एक दर्दों ग़म का सिलसिला चलता रहा
जिंदगी से कुछ कदम का फासला चलता रहा
साथ कुछ रिश्ते लिए हम थे सफ़र पर उम्र के
राह भर लुटते रहे, यूँ ही काफ़िला चलता रहा |
हंसते हैं न रोते हैं, ये सब बर्फ़ीले चेहरे हैं
इनकी मुस्काने गिरवी हैं, आँसू पर भी पहरे हैं
शंख, अजाने, कथा, नगाड़े, कितने वहम रिवाज़ों के
उनकी बस्ती का क्या होगा, जिनके आक़ा बहरे हैं
हर सुबह यह खून में भीगा हुआ अखबार क्यों ?
रौशनी के नाम पर अंधियारे का व्यापार क्यों ?
जिंदगी को लीलती बेदर्द आतिशबाजियां
यह ख़ुशी के नाम पर सहमा हुआ त्यौहार क्यों ?
मंजिले भी उन्ही को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है
पंख होने से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है
हम कोई भी पता लिखें उस पर, ख़त को कब ऐतराज होता है
अनलिखा ख़त ही मान लें उसको बेटी तो बेजुबान होती है |
और अंत में एक ....अशआर..
एक भाषा है जो सारे मुल्क़ को मंजूर है
आप रिश्वत की जुबां में बात करके देखिये |
7 comments:
दुनिया बहुत बड़ी है, मगर मुझको इससे क्या ?
जब भी वतन मिले यही हिन्दोस्तां मिले |
बहुत खुब जी, बहुत सुंदर कविता. धन्यवाद
अंत के अशआर की भाषा कड़वी है, लोकल ट्रेन के शोरगुल जैसी बात. पोस्ट को बेमजा कर दे रही है.
अच्छी कविता... धन्यवाद.
"अशआर" शेर का बहुवचन (अर्थात बहुत से शेर) है..
एक शेर के लिए अशआर?.
@Rahul Singh ji, S.M.HABIB ji आपका बहुत शुक्रिया..टिप्पणियों से सीखने को मिला. निश्चित रूप से अगली बार इससे परिमार्जन होगा. सही कहूँ तो अशआर के विषय में मेरी अधिक जानकारी nahin है. isliye yah chuk hui है.
मुझको यही जमीं यही आसमान मिले
मरकर दोबारा आऊं तो हिंदी जुबां मिले
दुनिया बहुत बड़ी है, मगर मुझको इससे क्या ?
जब भी वतन मिले यही हिन्दोस्तां मिले
सुन्दर रचना
करे नवीनता का आव्हान,
नव वर्ष की नव बेला में, करें नव शब्द का निर्माण.
नूतन वर्ष की बधाई और ढेरों शुभकामनाये ।
nasmkaar !
aap ke blog pe aana ka pehlaa avsar hai , achcha laga . sadhuwad .
saadr
नीरज जी के ब्लौग से और फिर अभी-अभी प्रमोद जी से हुई फोन पर बातचीत के बाद सीधा आपके ब्लौग पर आ रहा हूँ....ग़ज़ल की दीवानगी ग़ज़ल का जुनू कुछ ऐसा चढ़ा हुआ है कि कहीं भी अच्छी शायरी दिखती है तो बस पूछिये मत क्या नशा चढ़ता है।
आप ये बताइये कि उनकी शेष ग़ज़लें कैसे पढ़ी जा सकती हैं। फेस-बुक पे पढ़ रह था मैं, आप चाहेंगे तो मैं प्रमोद साब की ग़ज़लें कविता-कोश पे लगा सकता हूं। इससे पहले भी कुछ शायरों की ग़ज़लें लगाता रहा हूं कविता-कोश पर!
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