Thursday, March 17, 2011

कद नहीं बढ़ता कभी परछाईयों के साथ



बढ़ गयी शोहरत मेरी, रुसवाइयों के साथ |
कद नहीं बढ़ता कभी, परछाईयों के साथ ||

लोग सुनते हैं मगर दिखता नहीं सबको 
अश्क़ शामिल हैं मेरे शहनाइयों के साथ 

ये नहीं उजड़ी फ़कत मैं भी तो उजड़ा हूँ 
एक रिश्ता है मेरा अमराइयों के साथ 

महफ़िलों में आपको ज़िल्लत उठानी है 
मैं तो जी लूँगा मेरी तनहाइयों के साथ 

मैं अजन्ता की रवायत देख लूं फिर से 
एक दिन आ जाइये अंगडाईयों के साथ 

प्रमोद रामावत "प्रमोद"

4 comments:

'साहिल' said...

बढ़ गयी शोहरत मेरी, रुसवाइयों के साथ |
कद नहीं बढ़ता कभी, परछाईयों के साथ ||


वाह प्रमोद जी! क्या मतला निकाला है!

खूबसूरत अशआरों से सजी एक उम्दा ग़ज़ल! पढ़कर आनंद आ गया!

Arun sathi said...

वाह समीर भाई लालजब, लगता दिल की बात कही है। खास कर अजंता की रवायत बहुत खूब, सुन्दर गजल के लिए बधाई।

होली की शुभकामनाऐं।

नीरज गोस्वामी said...

प्रमोद जी का जवाब नहीं...हम तो उनके बहुत बड़े प्रशंशक हैं.
होली की ढेरों शुभकामनाएं.
नीरज

अरुण अवध said...

बहुत अच्छी ग़ज़ल ....
हर शेर खूबसूरत और मुकम्मल !

लोग सुनते हैं मगर दिखता नहीं सबको
अश्क़ शामिल हैं मेरे शहनाइयों के साथ

मैं अजन्ता की रवायत देख लूं फिर से
एक दिन आ जाइये अंगडाईयों के साथ