अब पुरानी शेखियां सब छोडिये सरपंच जी
आदमी के गम से रिश्ता जोडीये सरपंच जी
आपके बोये बबूलों की फसल तैयार है
दूसरों के आम तो मत तोडिये सरपंच जी
मानते है तुम तो कन्हैया हो तुम्हारे गाँव के
आबरू की मटकियाँ मत फोडीये सरपंच जी
वह तो यूँ ही गिन रहा था आपके कुर्ते पे दाग़
आप उसका हाथ तो मत मोड़िये सरपंच जी
हर किरण पीछा करेगी कल सुबह से आपका
रात भर जी चाहे जितना दौडिए सरपंच जी
आपके सब पुण्य चेहरे पर उभर कर आ गए
चाहे जैसी राम-नामी ओढीये सरपंच जी
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आपकी हर योजना है निर्दोष भीलो के लिए
बाज को अधिकृत किया है अबाबीलों के लिए
ये बहुत मासूम हैं तो आप भी हैं न्यायप्रिय
क्यों कबूतर पालते हैं धूर्त चीलों के लिए
कोई संधि हो नहीं सकती हमारे बीच में
अपना सीना है तुम्हारी सख्त कीलों के लिए
उनका आना जिंदगी में क्या कहूं कैसा रहा
जैसे एक हंस का जोड़ा शांत झीलों के लिए
तुम लिए गंगा कलश हो और यह तृष्णा अछूत
प्यास का लंबा सफ़र है इन सबीलों के लिए
शायर - प्रमोद रामावत "प्रमोद"
2 comments:
हर किरण पीछा करेगी कल सुबह से आपका
रात भर जी चाहे जितना दौडिए सरपंच जी
आपके सब पुण्य चेहरे पर उभर कर आ गए
चाहे जैसी राम-नामी ओढीये सरपंच जी
कोई संधि हो नहीं सकती हमारे बीच में
अपना सीना है तुम्हारी सख्त कीलों के लिए
बहुत अच्छी ग़ज़ल ,बेहद असरदार !
संजीव तिवारी के ब्लाग में क्लिक करके पहली बार इस ब्लाग को पढने का अवसर मिला.बेहतरीन और ग़ज़ल लिखते हैं आप
.कलम में पैनापन बहुत सहजता लिए है.किसी एक शेर का क्या कहूं,पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब है.
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