Tuesday, June 28, 2011

गाँव कहाँ सोरियावत हें..भाग-10

सुकवि बुधराम यादव की लम्बी कविता "गाँव कहाँ सोरियावत हे" की अगली कड़ी भाग- १० के रूप में प्रस्तुत है. इस अंक में "नाचा-गमत" में कवि ने लोक गीत-गायक, खेल-तमाशा,मनोरंजन,बाजार  को स्मरण किया है... 

नाचा-गमत

नाचा गमत रहस लीला तक
धीरे धीरे नदाथें!
सधे मजे कइ कलाकार ल
लोगन घलव भुलाथें!
चैन चिकरहा तुला तबलहा
रघ्‍घु जइसन रागी!
परी प्रेम जोधन कस जोकर
मसलहा* बैरागी!
गिरिवर के  नाचब ल अभो
गली-गली गोठियावत हें!

पुतरी अउ ओ रहस लीला के
दिन जानव दुरिहागंय!
टी व्ही विडियो फिल्मी एलबम
ठौर म इंकर समागंय!
ब्रहा,बिसनू,पारबती,शिव,
संग राधा गिरधारी!
बिसर के  चारो धाम करावत
हें सिरियल म चारी*!
भेख बदलगे देश बदलगे
बपुरा करम ठठावत* हें!

हाथी आतंकी  कस लागंय
भीम ह नसल वादी!
धरे तंबूरा नारद लागय
डोकरी संग फरियादी!
गाय बछरूवा अउ जनता के
गइया गति होवत हे!
अहिरा कस सरकार कलेचुप*
मुड़ धर के  रोवत हें!
चतुरा चमरू चिकरहा संग
रामू राग मिलावत हे!
चरकोसी ले रहस लीला के
आरो* तइहा जावय!
गाड़ा गाड़ी भर भर लइका -
-पिचका  धर धर आवंय!
नवछटहा अलबेला टूरा
अउ मलमलही* टूरी!
पान चबावंय मुंह रचावंय
पहिरंय रंग-रंग चूरी!
सुरता के  गंगा म डुबकी
देखनहार लगावत हें!

बीच बीच म सूत्रधार जब
किसन कथा समझावय!
सरधा ले सुनय जुरमिल के
जयकारा बोलवावंय!
रहय मनौती जेकर ओ
नाचा गमत करवावंय!
मेला मड़ई अउ पाबन कस
सब अतमा जुरियावंय!
लरा-जरा* के  खातिर अब तो
असली ल तिरियावत हें !

बिन मतलब के  अब चतुरा जब
देव दनुज नइ लेखंय!
फेर मसाल म आँखी फोरत
सरी रात का  देखंय!
सुवा ददरिया करमा भोजली
बर बिहाब अउ पंथी!
बांस गीत भरथरी अउ आल्हा
गावत कोड़ंय खंती!
एलबम रेडियो टी.व्ही. टेप म
अब तो मन बहलावत हें!

हिंदी अरथ:- मसलहा- मसाल दिखाने वाला, चारी- निंदा-परिचर्चा, ठठावत- पीटना, कलेचुप-चुपचाप रहना ,आरो- आवाज, शोर गुल, मलमलही-स्व प्रदर्शन की  भावना से प्रेरित युवती, लरा-ज़रा- ऐरे-गैरे, दूर के  रिश्ते,  


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