टी आई साहब आप ने सबसे इन्डिविसुअली बात कर ली !...सर..अब तक तो कई बार .! ..क्या कहना है आपका..! सर, मैं तो अब आपके आदेश का इंतजार कर रहा हूँ... टी आई जैसे रटे हुए संवाद बोल रहे थे. DSP ने कहा तो ठीक है एक बन्दे को लेकर आइये...यहीं पर.....!!! किसे सर...? .वही....हेलो कौन भावना दीदी वाले को...!!! किसको सर....समझा नहीं...? अमित ठाकुर को.....DSP ने चमकती आँखों को ऊपर उठाते हुए अपनी उँगलियों में फंसे पेपरवेट को टेबल ग्लास पर घुमा घुमाकर उसका संतुलन सांधने की कोशिश करने लगे.
चिंटू उर्फ़ अमित ठाकुर को पूछताछ के लिए पहले ही थाने बुला लिया गया था....जो अभी तक इंटेरोगेशन में पूछे जा रहे..... उसके मालगुजार से सम्बन्ध, घटना के दिन उसकी उपस्थिति, अन्य गतिविधियाँ और कार्य के बारे सभी सवालों के जवाब बड़े इत्मीनान और गंभीरता से दे रहा था.
DSP ने टी आई को इशारा किया कि अब चिंटू पर कुछ नजरें इनायत की जाये.... थोडी सी नफासत भरी सख्ती और अकाट्य तथ्यों के झंझावात के बीच चिंटू ने कुछ देर... न, नही, मुझे याद नहीं, मैं नहीं जानता, मुझे मालुम नही के सहारे अपना वजूद बनाये रखा....लेकिन खिलाफ होते माहौल में और अधिक देर तक टिक नहीं सका !......सूखी आँखों से आसमान की ओर निगाह करते हुए कहा...." क्या करता सर ! ..इसके सिवा मेरे पास कोई रास्ता भी नहीं था. "
.................अमित ठाकुर उर्फ़ चिंटू जो कि तीन साल पहले ड्राईवर की हैसियत से मालगुजार ओंकार प्रसाद शुक्ला के संपर्क में आया...अपने दक्षता, कौशल और विश्वास जीतने की कला से धीरे-धीरे पहले मुलाजिम फ़िर मालगुजार के कई व्यवसायिक के साथ निजी कामकाज का राजदार हो गया. ओंकार प्रसाद भी उसके काम और निष्ठा को देखते हुए उसके हैसियत से ज्यादा सम्मान देने लगा. इन्हीं बातों से चिंटू ख़ुद को एक राजदार मुलाजिम से कहीं आगे मालगुजार का हिस्सेदार [ पार्टनर ] समझने लगा. इस बीच होने वाले सभी सौदों में वह ख़ुद का हिस्सा मन ही मन जोड़ने लगा. कुछ सौदों में उसने मालगुजार से अपने लिए हिस्सा देना भी कबुलवा लिया. लेकिन ओंकार प्रसाद शुक्ला की कई आदतें मालगुजारी जो से उपजी हुईं थीं...... पगार समय पर नहीं देना, हिस्से देने के वादे बस करना, काम लेते हुए तारीफ करना और गुस्से में सब कुछ उतार देना, शराबनोशी, इस उम्र में भी नीयत ख़राब होने की कमजोरी... जा नहीं रही थीं. धीरे धीरे चिंटू मालगुजार से बेजार होने लगा और फ़िर एक दिन उसने फैसला कर लिया कि.... इतनी मेहनत और समय जो उसने लगाया है, उसका जीवन के गणित में कोई तो हिसाब होता होगा.....ये तो करना पड़ेगा...!!!
................अपने साथियों के मिलकर उसने योजना बनायी कि पहले मालगुजार को फोन करके जमीन देखने बुलायेंगे और धमका कर पैसे वसूल लेंगे...नहीं मानने पर मौका भाँप कर काम करेंगे.
................इसी योजना के तहत उसने 16 जून की सुबह 9.13 बजे राजेश गढा वाले से मिले सिम से मालगुजार को फोन किया. मालगुजार के नियत स्थान केशरवानी होटल पहुँचने पर अपने साथी....मोनू उम्र १८ वर्ष निवासी गढा मोहल्ला, भोलू उर्फ़ सचिन उम्र १९ वर्ष निवासी दशरथ नगर के साथ उसे जमीन दिखाने के बहाने अपने घर में लाकर एक कमरे में बिठा लिया. घर वालों को समझा दिया कि जमीन के एक बड़े सौदे की बातचीत चल रही है...तुम लोग डिस्टर्ब नहीं करना.
...............पहले इधर-उधर की बातों में लगाये रखने के बाद चिंटू दोपहर तक कहीं मुद्दे पर आया.....तो बात समझते ही मालगुजार भी उसे बातों में ही उलझाये रखकर अपने बच निकलने का रास्ता तलाशने लगा... इस शह और मात के खेल में दोनों का समय निकलता रहा. फ़िर शाम को करीब 6.55 बजे चिंटू ने अपने साथियों से मशविरा किए बगैर मालगुजार के अभी तक घर से बाहर रहने का कारण बताते हुए खैरियत देने के साथ ही थोड़े और समय की मोहलत पाने के लिए ......मालगुजार के घर पर उसकी बड़ी बेटी भावना पाण्डेय के फोन नंबर पर काल किया. अक्सर बातचीत के शुरुआत में होने वाले .....हेलो ! कौन..? भावना दीदी...!!! बोलकर ओंकार प्रसाद शुक्ला के जमीन के सौदे के सिलसिले में पाटन में होने और थोड़ी देर से आने की जानकारी देने की कोशिश की. लेकिन उसे क्या मालूम था कि ये " तीन शब्द " ही उसके सटीक योजना में सेंध लगाने के लिए काफी होंगे.
..............रात लगभग 10.00 बजे तक सौदा, वसूली, फिरौती ...की बात तय नहीं होने पर, तीनो साथी मिलकर मालगुजार को बीयर पिलाकर एक ही स्कूटर की बीच वाली सीट पर बिठाकर भेड़ाघाट के निर्जन लम्हेटाघाट के किनारे ले गये ...वहाँ भी हिस्सेदारी के बकाया रुपये पाने के लिए खूब जोर मशक्कत की...लेकिन कुछ नतीजा न निकलते देख रात करीब 2.30 बजे ......वहीं पड़े पत्थर, स्कूटर में रखे राड से सर पर मारकर मालगुजार को पहले अधमरा कर दिया फ़िर उसका चेहरा विकृत कर पहचान छुपाने के लिए स्कूटर के पेट्रोल से गमछा भिगाकर जला दिया. लेकिन अपने इस अपराधिक कृत्य से चिंटू न तो अपनी, न मालगुजार ओंकार प्रसाद शुक्ला की और न ही अपने कम उम्र साथियों की पहचान पुलिस की खोजी निगाहों से छुपा पाया..... बल्कि उम्र के 24 वें साल में ही...वह मालगुजार के अधजले चेहरे की भांति अपने साथ दो और नादान साथियों का आशियाना जरुर जला बैठा.
नोट - अभियोजन की कानूनी बाध्यता हेतु कुछ व्यक्तियों के नाम परिवर्तित कर दिए गये हैं तथा सेल नंबर्स नहीं दर्शाए गये हैं.
7 comments:
वाह, कोई न कोई सुराग छूट ही जाता है!
बढ़िया प्रस्तुति।
यानि अगर विवेचना अधिकारी ठान ले तो अपराधी को वर्तमान सुविधायों के साथ भी धर दबोचा जा सकता है...एक निवेदन है आपसे अपने कलर कॉम्बिनेशन बदल कर देखे पाठको को पढने में आसानी होगी .
@ डॉ अनुराग...
बहुत धन्यवाद आपको.. हौसला बनाये रखने का. मैं स्वयं कई बार रंगों के संयोजन पर दुविधा में था लेकिन समझ नहीं आ रहा था आपने इसे दूर कर दिया. आपके सुझाव पर तत्परता से अमल किया, अब कैसा है विचार दीजियेगा. स्नेह-अनुराग बनाये रखें.
...समीर यादव
तभी तो कहते है कतिल कितना भी शतीरक्यो ना हो कोई ना कॊई गलती कर ही देता है; बहुत ही अच्छे ढंग से आप ने यह लेख लिखा, ओर सुंदर शव्दो से सजाया.
धन्यवाद
पुलिस की मुस्तैदी का जीता जागता प्रमाण.मगर लोगों को तो उनकी नाकामायबी ही दिखती हैं. बहुत सही विवेचना रही. वाकई, सधी हुई कथा.
" sameer jee thanks a lot for your precious comment on my blog.... first time read your blog, its mind blowing very thrilling seems like reading a thrilling novel....very intresting to read real story's over here.."
Regards
IS DHARAVAHIK NE SABAKO BAANDH LIYA THA
BADHAIYAAN
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