सुकवि बुधराम यादव की रचनाओं के अनवरत क्रम में ..
उनके दोहे....आगामी लगातार अंकों में.
बहुत प्रफुल्लित न रहो, तनिक सफलता पाय
बढ़ो साधते लक्ष्य वह, नजर जहाँ तक जाय
धैर्य और संतोष दो, जीवन के पतवार
इनके अवलंबन बिना, नाव लगे नहीं पार
बार बार ठोकर लगे, पथ में अगर सुजान
निश्चित ही सन्मार्ग से, भटक गए 'बुध' मान
इतने क्यों हिंसक हुए, प्रतिकारों के ढंग
अर्थ धर्म चिंतन पुनीत, सकल हुए बदरंग
ज्यों ज्यों पर उपकार में, रिक्त होय भण्डार
त्यों त्यों खुशियाँ खोलती, बंद ह्रदय के द्वार
उड़ने से झुकना भला, रखें धरा से जोड़
जो अपने अस्तित्व का, बोधक है बेजोड़
क्रोध न इतना कीजिये, सुध बुध जाय नसाय
औरों को पीड़ीत करें, अनहित जो घर लाय
सद्चरित्र से हीन जन, सरकंडे सा होय
हर झोंके से वह झुके, लोक लाज निज खोय
आंसू देकर हमदर्दी, ले कुछ भले बटोर
किन्तु श्वेद अर्पण बिना, जग समझे कमजोर
भीड़ भरी दिखती नहीं, सुजन शिखर की राह
धीरज सौरभ शील का, हो न रहा निर्वाह
......सुकवि बुधराम यादव
8 comments:
अरे, समीर भाई
कहाँ थे जनाब और अब कहाँ हो?
नियमित दिखिये भई. दोहे बहुत पसंद आये. आभार इस प्रस्तुति का.
आप के दोहे तो बहुत ही अच्छॆ लगे.
धन्यवाद
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
बहुत बढिया दोहे है।बधाई।
बहुत सुन्दर रचना . आदरणीय सुकवि बुधराम यादव को बहुत बहुत बधाई .
आपका ब्लॉग नित नई पोस्ट/ रचनाओं से सुवासित हो रहा है ..बधाई !!
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आयें मेरे "शब्द सृजन की ओर" भी और कुछ कहें भी....
बहुत बढिया दोहे है।
बुधराम यादव को बधाई .
समीर यादव जी!
जन्म-दिन मुबारक हो!
bahut hi badiya dohe...doha bhale hi aaj kam prayog mein hao lekin bahut prabhkari madhyam hai....
.....aapko janam din kee haardik shubhkaamnayne..
बहुत बढ़िया...पर निरंतरता रखें. यदुकुल पर आपका स्वागत है.
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