Monday, September 1, 2008

संगी मन थोरुक बढे चलव गा

अब झन करव अबिरथा अबेर गा
संगी मन थोरुक बढे चलव गा
भाई मन चिटुक बढे चलव गा !!

अतियाचार करिन बैरी जब तुम निचट देह डारेव !
सुमता छांड अपुस मा दुरमत ला हितवा कर डारेव !!
लाज लुताइस दाई दीदी के , होइस अब्बड़ हलाल !
फांसी चढ़ गय मान रखे बर कई झन माई के लाल !!
अब मत होवे ओइसनहे अंधेर गा....
संगी मन थोरुक बढे चलव गा ...

अंतियावत अब चलव जवारिहा धन होय तुंहर जवानी !
माटी खातिर मर खप जावव कर लव नाव निसानी !!
सुघर घरी हे सुघर महोरत अउ सुघर मौका हे !
देश के झंडा ऊपर उठावव तब संगी ठौका है !!
पवन पावय झन दिया ल चलव घेर गा ....
संगी मन थोरुक बढे चलव गा ...

महतारी के बीर पुट अउ समरथ तुंहर में भारी !
छुए मा माटी सोन होथे गुन तुंहर हे बलिहारी !!
चाहव त पाटे समुंद पटावय फोरे फूटे पहार !
भेदभाव के ठाडे जब्बर लउहा फोरव करार !!
मन मा काबर करत हवव तभो ढेर गा ...
संगी मन थोरुक बढे चलव गा ....

तुंहर जोम अउ जोर गजब हे दुश्मन घलव बखाने !
ये धरती के रित नित ला दुनियाँ घलव हा जाने !!
गुसियावाव तो लखन लगव अउ मरजादा म राम !
हुंकारत मा हनुमत लगव करम करत घनश्याम !!
रिनहा जग हे भले , तुम हवव कुबेर गा.....
संगी मन थोरुक बढे चलव गा ...

जौन गिरे, हपटे, मदियावय बांह पकड़ के उठावव !
निर बुद्धि ,भकला, जकला ला घलव गा संग लगावव !!
बिलग बिलग मा बल बंतांठे बैरी बैर सधाथे !
सुमता देख सुमत घर-घर में सुख सौंपत पहुन्चाथे !!
अईसन घरी इंहा आथे एको बेर गा ...
संगी मन थोरुक बढे चलव गा ...

अब कभू कोई अतियाचार के झन घपतय अंधियारी !
जम्मो जुरमिल करम धरम के चलव दियना बारी !!
नवा समे के नवा देश मा नवा बिहान करव गा !
सरग बनाए बर भुइया ला सही धियान धरव गा !!
सतयुग ला लावव कलजुग मा फेर गा ...
संगी मन थोरुक बढे चलव गा ...

गजब भागीरथ तप कर जानव गंगा लाये हन !
कठिन बड़े महाभारत लड़के तिरंगा पाए हन !!
रंग बिराजे तिन गुन एकर , तीनो ताप नसांवय !
महिमा महामंत्र जप एकर जन गन मंगल पांवय !!
सरके चलाव तभे पहुंचब संझकेर गा ....
संगी मन थोरुक बढे चलव गा ...!!

रचियता
सुकवि बुधराम यादव
वर्ष- १९७८ बिलासपुर

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