Sunday, September 14, 2008

बोके बमुरी तैं चतुरा आमा कैसे खाबे



जइसन करम करबे फल वोइसनहे पाबे
बोके बमुरी तैं चतुरा आमा कैसे खाबे




लंद्फंदिहा लबरा झबरा के
दिन थोरके होथे
पिरकी घलव चकावर करके
मुड़ धर के रोथे
रेंगे रद्दा नरक के कैसे सरग हबराबे
बोके बमुरी तैं चतुरा आमा कैसे खाबे




दूसर बर खंचवा कोडवैया
अपने गिर मरथे
चुरवा भर मा बुड्वैया ला
कौन भला तिरथे
असल नक़ल सब परखत हे अउ कत्तेक भरमाबे
बोके बमुरी तैं चतुरा आमा कैसे खाबे




जनधन पद अउ मान बडाई
पाके झन गरुवा
साधू कस परमारथ करके
पोनी कस हरुआ
बर पीपर बन खड़े खजूर कस कब तक इतराबे
बोके बमुरी तैं चतुरा आमा कैसे खाबे




अंतस कलपाये ले ककरो
पाप जबर परथे
हिन् दुबर दुखिया के सिरतो
सांस अगिन झरथे
छानी ऊपर होरा झन भूंज जर बर खप जाबे
बोके बमुरी तैं चतुरा आमा कैसे खाबे




सब दिन सावन नई होवे
नई होय रोज देवारी
सब दिन लांघन नई सोवे
नई खावे रोज सोहारी
का सबर दिन रहिबे हरीयर कभू तो अयिलाबे
बोके बमुरी तैं चतुरा आमा कैसे खाबे




सौंपत मा झूमे रहिथे
बिपत मा दुरिहाथे
जियत कहिथे मोर मोर
मरे मा तिरयाथे
ये दुनिया के रित एही काखर बर खिसियाबे
बोके बमुरी तैं चतुरा आमा कैसे खाबे




रचयिता
सुकवि बुधराम यादव
बिलासपुर

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