Monday, October 13, 2008
लाश ने दिया सुराग
जानकार बताते हैं कि आदमी अक्सर झूठ बोलते हैं, लेकिन मुर्दा कभी झूठ नहीं बोलता. यह बात कोई माने या न माने पुरवा गाँव के सैकंडों लोग मान चुके हैं. जैसा लोकार्दो कहते हैं...." शातिर अपराधी भी जहाँ अपराध करता है, उस स्थान पर कुछ न कुछ छोड़ता है या ले जाता है.." .जिसे कानून की भाषा में सबूत कहते हैं. लेकिन इस रहस्यमय कहानी में मुर्दा ही घटना स्थल से अपने हत्यारों का सुराग ले आया. बात है बरेला थाने जबलपुर से करीब २० किलोमीटर दूर स्थित पुरवा गाँव की जहाँ सडांध मारती एक लाश के पता चलते ही हड़कंप मच गया. पुलिस को लाश के कपड़ों में एक ऐसा सुराग हाथ लगा कि मात्र दो घंटे में ह्त्या के सभी आरोपी गिरफ्त में आ गए. वह सुराग था.......????
मौके पर क्या देखा ...पुलिस और फोरेंसिक विशेषज्ञ की टीम ने.
@ लाश के पश्चिम और करीब ५० मीटर दूरी पर खेत को बारबेट वायर से घेरा गया था, जहाँ दो खम्बों के बीच वायर कुछ उलझे हुए थे. उसी स्थान से खेतों के बीच एक पगडण्डी भी थी. मृतक के शर्ट का पिछला हिस्सा फटा था.
@ जमीन पर पड़े निशान और लाश को बारीकी से देखने पर समझ आ रहा था कि लाश को करीब ४० फीट खींच कर लाया गया था.
@ मृतक के गले में कुछ डोरियाँ सी उभरी थीं , जिससे लग रहा था कि उस पर कुछ दबाव डाला गया होगा.
@ मृतक के अंडरवियर में चने का भूसा लगा था, जबकि पास के खेत में गेहूं की फसल लगी थी और आसपास कही भी चने के भूसे का नामो-निशान नहीं था.
@ फोरेंसिक विशेषज्ञ ने बताया लाश "मेगेट्स स्टेज" में है जो मृत्यु के बाद लगभग 48-72 घंटे के बाद की स्थिति होती है.
बरेला थाने के गाँव पुरवा के बाहर एक फार्म हाउस से लगे बंजर भूमि पर एक अज्ञात लाश की सूचना थाने के फ़ोन पर मिलते ही थाना प्रभारी K.S. मलिक झुंझलायें और तत्काल अपने उप पुलिस अधीक्षक को इसकी ख़बर से अवगत कराया और थाने से गाँव की ओर रवाना होने के लिए फोर्स को क्लोस होने की हिदायत दिये. डी एस पी ने तात्कालिक जानकारी से पुलिस अधीक्षक मकरंद देउस्कर को सूचित कर उनके निर्देशानुसार फोरेंसिक विशेषज्ञ की टीम के साथ घटना स्थल के लिए रवानगी डाल दी.
उधर इंस्पेक्टर मलिक पुरवा के नजदीक पहुंचे ही थे कि उनके मोबाइल की घंटी बज उठी. गाँव के एक व्यक्ति ने बताया कि मौके पर भारी भीड़ जमा हो गई है और स्थिति बिगड़ने वाली है. लोग तरह तरह कि बातें कर रहे हैं . ड्राईवर ने जीप की गति बढ़ाई और कुछ ही देर में इंस्पेक्टर मलिक मौके पर पहुँच गए. घटनास्थल पर गाँव वालों का हुजूम लगा हुआ था आशंका के कारण लोग आक्रोशित हो रहे थे. इंसपेक्टर मलिक ने गाँव के कुछ जिम्मेदार लोगों को पास बुलाया और उन्हें सहयोग करने का निवेदन किया तब कुछ लोगों ने पुलिस का अपने मतलब से साथ देने हेतु आक्रोशित लोगों को शांत कराने की कोशिश करने लगे. लाश से आ रही दुर्गन्ध के कारण कोई उसके करीब जाने का साहस नही कर पा रहे थे. पुलिस को देख कुछ भले लोगों का हौसला बढ़ा और लोग लाश को करीब जाकर देखने लगे.
लाश कि पहचान होते ही लोगों की ऑंखें फटी की फटी रह गई और कई असमय आए पसीना पोछने लगे. अचानक किसी ने कहा ......अरे ! ये तो गाँव का ही "गुड्डा" है. २१ साल के गबरू जवान का क्या हाल हो गया ? इसकी तो न किसी से दुश्मनी भी नहीं थी और न ही बेअदबी . कुछ ही देर में फोरेंसिक एक्सपर्ट्स के साथ DSP भी घटनास्थल पर पहुँच गए. दोनों टीम ने गुड्डा उर्फ़ सुमरत की लाश और घटनास्थल का बारीकी से मुआइना करना शुरू किया. फोरेंसिक एक्सपर्ट ने बताया लाश में जो कीड़े लगे हैं उसे विज्ञानं की भाषा में "मेगेट्स स्टेज" कहते हैं. जो मृत्यु के 48-72 घंटे में शरीर में लगते हैं. यानि लाश तीन-चार दिन पुरानी थी . पंचनामा तैयार कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.
लाश में देखी गई बारीकियों को DSP और फोरेंसिक एक्सपर्ट्स ने विवेचना के बिन्दु तय कर विश्लेषण करना शुरू किया और इंस्पेक्टर मलिक ने निर्देश के मुताबिक आस पास के एरिया की सर्चिंग करनी शुरू की और वहां खड़े लोगों में सुमरत के करीबी लोगों से बिना देरी किए उसकी आदतों, रहन-सहन, उठक-बैठक, और घर-परिवार, रिश्तेदार के सम्बन्ध में जानकारी लेकर नोट कर लिया.
पतासाजी में जुट चुकी पुलिस टीम को कुछ अहम् सुरागों का कनेक्शन जुड़ने के साथ ही थाने से जानकारी लेने पर पता चला कि गुड्डा उर्फ़ सुमरत की पिछली शाम को ही गुमशुदगी दर्ज करायी गई है. और पूर्वा गाँव से ही करीब सप्ताह भर पहले किसी छेदीलाल ने खेत से नोजल और मोटर चोरी हो जाने की जाँच के लिए दरख्वास्त दिया था. पतासाज टीम को तीन अलग-अलग टास्क के लिए तीन दिशाओं में रवाना किया गया, जों क्रमशः पहली टीम फॉर्म हाउस जो घटना स्थल से लगा हुआ था, वहां पहुंचकर चने के भूसे का पता लगाये क्योंकि लाश के अंडरवियर में वही भूसा लगा हुआ था और पुलिस को कोटवार ने बताया कि फॉर्म हाउस के खलिहान में चने का भूसा भरा हुआ है. इसलिए फॉर्म हाउस जाने वाली टीम को हिदायत दी गई कि वह पहले उस स्थल को सुरक्षित करे, फ़िर वहाँ मौजूद लोगों को लेकर थाने आए., दूसरी टीम सालीबाडा गाँव, जहाँ फार्म हाउस का मालिक संजू उर्फ़ संजीव खत्री का मकान था. तीसरी टीम गुड्डा के घर की ओर चली गई. DSP स्वयं घटनास्थल पर भौतिक, रासायनिक और मौखिक साक्ष्यों का विश्लेषण करने के बाद थाने के लिए रवाना हो गए.
पहली टीम ने फॉर्म हाउस में दबिश दी और वहाँ चने के भूसे को उठाकर अन्यत्र रखे जाने के साक्ष्य दिखने पर उसे सुरक्षित कर वहाँ मौजूद अस्सू उर्फ़ आशीष विश्वकर्मा और छेदीलाल गोंड़ को पूछताछ के लिए बरेला थाने ले आए. अस्सू और छेदीलाल फॉर्म हाउस में नौकरी करते थे. पूछताछ के दौरान दोनों ने सभी सवालों के जवाब बड़े साहस और विश्वास से देकर पुलिस की चिंता की लकीरें गहरी कर दी, दोनों बिना उलझे पुलिस के सभी सवालों का जवाब देते रहे. इस बीच DSP ने अस्सू से उसका सेल फ़ोन लेकर उसके डिटेल्स और पिछले एक हफ्ते के लोकेशंस के सम्बन्ध में जानकारी एकत्र करनी शुरू कर दी.
अधिकारियों ने अस्सू से पूछा कि संजू फॉर्म हाउस कब से नहीं आया...अस्सू जो कि फॉर्म हाउस का मेनेजर का काम देखता था, ने बताया करीब 3-4 दिनों से संजू नहीं आया है, न ही उससे कोई बात हुई है. लेकिन अस्सू की मोबाइल डिटेल्स से पता चल रहा था कि वह संजू से लगातार संपर्क में था. दो दिन पहले ही बरेला में देवी जागरण में संजू आया था, लेकिन अस्सू इससे पहले ही इनकार कर चुका था. पुलिस ने पासा फेंका और कहा कि उसके पास प्रमाण है कि संजू देवी जागरण में आया था बस फ़िर क्या था, अस्सू और छेदीलाल पसीना पसीना हो गए, कमरे का तापमान अचानक बढ़ा हुआ सा लगने लगा. पूछताछ में लगी टीम ने थोड़ी हिकमत अमली दिखाई तो अस्सू ने सब सच बताने का वचन दे दिया. इसी बीच, दूसरी टीम सालीबादा से संजू उर्फ़ संजीव खत्री को लेकर आ गई. आते ही DSP ने उसका मोबाइल अपने कब्जे में लेते हुए अभी तक आए डिटेल्स को सत्यापित करना शुरू किया ही था कि थाने में संजू ने जब अस्सू और छेदीलाल को देखा और नजरें मिलाते ही वह सूखे पत्ते की तरह कांपने लगा.
तीनो को बताया गया कि चने का भूसा अंडरवियर में लगा हुआ था और तुम्हारे फॉर्म हाउस के खलिहान में भी मिला है, लेकिन दोनों जगहों भूसे को एक ही तरह से साफ करने की असफल कोशिश की गई है. जों गेहूं के खेत से गिरते हुए लाश तक एक ट्रेक बना रही है. तीनो को बात समझ तो आ ही रही थी, उन्होंने राज उगलना शुरू किया तो उसकी सडांध लाश से भी ज्यादा आने लगी कि एक आदमी के जान की कीमत क्या 1500/- के "नोजल" [पानी सींचने के काम आने वाला छोटा सा उपकरण जो पीतल का बना होता है ] से भी कम है. तीनो की बातों से जो हत्या की कहानी निकलकर आई, वह कुछ इस तरह थी कि .............
"........ पिछले कुछ समय से सालीबाडा निवासी संजीव खत्री उर्फ़ संजू के पुरवा गाँव से लगे फॉर्म हाउस में चोरी की घटनाएँ होने लगी थी. इसके ईलाज के लिए फॉर्म हाउस के मालिक संजू और मेनेजर अस्सू ने ख़ुद की व्यवस्था बना ली और जब 7 अप्रैल की रात करीब दस बजे सुमरत शराब के नशे में फॉर्म हाउस के बाउंड्री के पास मिला, तो उन्हें उसी पर चोरी का संदेह हुआ. और उससे वे पूछताछ करने लगे. इधर संजू ने भी छूट दे रखी थी कि फॉर्म हाउस में चोरों पर नजर रखो और पकड़े जाने पर जम कर सबक सिखाओ....आखिर रईसी कहाँ जाकर छुपती और जों कहाँ से न निकलती. सुमरत से अजय यादव उर्फ़ कोकले , अस्सू उर्फ़ आशीष और छेदीलाल ने फॉर्म हाउस के पास घूमने का कारण पूछा . जवाब उनके माकूल न था. सुमरत भी जब निर्दोष था तो उसने जवाब न देकर पूछताछ पर ही सवाल उठाना शुरू कर दिया. यह बात अजय, "जो सुमरत की उमर का ही उसका साथी ही था..फर्क इतना की वह जी हुजूरी कर संजू का करीबी हो गया था और अक्सर संजू के साथ उसके ऐश्वर्य का जूठन झोकते जबलपुर, दिल्ली और मुंबई की सैर भी कर आता था." को नागवार गुजारी उसने सुमरत के गले में हाथ की जंजीर डाल दी और छेदी और अस्सू ने उसे पीटना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में सुमरत लस्त पड़ गया. और तीनो ने उसे मार्च- अप्रैल की रात में फॉर्म हाउस में ही खुले आसमान के नीचे छोड़ दिया.
जब सुबह 4 बजे छेदी फसल में पानी दिलवाने के लिए उठा तो उसने देखा, सुमरत अभी वहीं पड़ा है. उसने पास जाकर देखा और दो लात मारकर उठाने की कोशिश की. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी ...सुमरत के बदन पर पानी और झिंझोड़ने का कोई असर न होते देख छेदी ने अस्सू को उठाया और सारी बात बताई. ख़बर मालिक संजू तक पहुंचाई गई जो तुंरत फॉर्म हाउस पर आया और लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगे. " देखो अभी दिन में कुछ भी करना ठीक नहीं होगा जो होगा रात में, अभी इसे खलिहान में रखे चने की भूसे में दबाकर रख दो . मै रात में आता हूँ " ..कहकर संजू चला गया. रात हुई तो अस्सू और संजू के निर्देशन में अजय और छेदी सुमरत की लाश लेकर पैदल निकल पड़े. लाश लेकर चलते खौफ और सावधानी बरतने के कारण रौशनी का उपयोग नहीं कर रहे थे. जब कंधे पर जवान लाश हो तो अच्छे अच्छों की हिम्मत पस्त हो जाती है. आपाधापी में फॉर्म हाउस में लगे कंटीले तार इनमें से किसी को दिखा नहीं और सुमरत की मृत देह छेदी के कंधे से फिसलकर बारबेट वायर के दूसरी ओर जा गिरी. तार में फंसकर सुमरत की शर्ट भी फट गई. तीनो लाश को दूर ले जाकर ठिकाने लगाना चाहते थे लेकिन किस्मत और बारबेट के कन्टीलें तार में उलझ कर रही सही हिम्मत भी खो बैठे और वही से उलटे पैर फॉर्म हाउस लौट कर दुबक गए.
दूसरे दिन संजू फॉर्म हाउस फ़िर आया और उसने तीनो को डांटने लगा कि लाश इतनी नजदीक क्यों फेंका . उसे ठीक ढंग से ठिकाने लगाओ. उस रात अस्सू , अजय और छेदी फ़िर से हिम्मत जुटाकर निकल पड़े और लाश को किसी तरह बाउंड्री से 40 फीट दूर ही घसीट सके. लाश को दुबारा ठिकाने लगाने के बाद अजय दिल्ली का कोई काम निकालकर गाँव से भाग गया. और बाकी दो अपने काम में रमने का प्रयास करने लगे. लेकिन कहा है न खून सर चढ़कर बोलता है. लाश ख़राब हुई गंध फैली और उसमे मौजूद सबूत ने कानून के हाथ इनके गिरेबां तक पहुँचा दिए. चारो आरोपियों को गिरफ्तार कर उनके विरुद्ध चालान न्यायालय पेश किया जा चुका है....... "
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5 comments:
सही दिशा मे विवेचना से अपराधी का पकडा जाना तय हो जाता है। वैसे इस अपराध को कथा का रोचक स्वरुप दिया है आपने।पुलिस की पूरी टीम को बधाई जो उस केस को सुल्झाने मे सफ़ल रही।
इसे ब्लाग पर प्रस्तुत करने के लिए आपको आभार, इस तरह के प्लेटफार्म के लिए यह बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रयास है ।
मेरी भी, पुलिस की पूरी टीम को बधाई जो उस केस को सुल्झाने मे सफ़ल रही।
शुक्रिया...हौसला बढ़ने का. वस्तुतः मैं इस तरह की अपराध विवेचना को अपराध कथा के रूप में प्रस्तुत नहीं करना चाहता ..!!! प्रथम प्रयास में अनेक त्रुटियां होगी. मेरी सोच इन अपराध अनुसंधान के पीछे पुलिस की कर्मण्यता [अ.... भी ] , अपराध का समाज से सरोकार, इस सरोकार से सुधार की गुंजाईश परखना, घटना की सच्चाई और इन सबके बीच स्तरीय साहित्य. यह सदैव परीक्षित हो एक पुलिस अधिकारी के द्वारा लिखे जाने वाले साहित्य के रूप में तब कोई बात है. शायद इस सोच के साथ सफल रहूँ तो कुछ सार्थकता हो.!! वरना इस तरह के कथित साहित्य सामग्री की बाजार में कमी नहीं है.
उम्मीद है आगे ओर भी कई किस्से पढने को मिलेगे .....खास तौर से एक पुलिस वाले की कलम से .......
ब्लागिंग मे एक चीज अच्छी हो रही है व है पारदर्शीता और ईमानदारी !! अक्सर सरकरी अफ़सर फ़ुल पत्ती पर लिखते है मगर सिस्टम पर नही ! पत्रकार नेता पर लिखते है खुद पर नही !पुलिस कविता कहानी मे मस्त है कानुन पर नही ।आपने इस अपराध की विवेचना कर अपने घर से सफ़ाई का कार्य आरंभ किया है ! मेरे मन मे कुलबुलाते इस शक को आपके पिछले दो लेखो ने शांत कर दिया !! धन्यवाद
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