Saturday, October 18, 2008
डीएनए टेस्ट का राज ? [भाग - एक]
" यूँ तो बाबुल का घर छोड़ पिया के घर जाने वाली हर लड़की के ढेरों सपने होते हैं. और डोली में बैठते ही वह इन्हें साकार करने का ताना-बाना बुनने लगती है. पर समलिया इन लड़कियों से एकदम अलग निकली, उसने तो डोली में बैठते ही अपने सपने को साकार करने का नया ही तरीका अख़तियार करने का संकल्प ले लिया...!!!! "
डीएनए प्रोफाइलिंग विज्ञान के उन सबसे विश्वसनीय परीक्षणों में है, जिसकी सत्यता अरबों में एक त्रुटि ही होने की संभावना के कारण न्यायालय द्वारा विशेषज्ञ अभिमत के रूप में निर्विवाद स्वीकार किया जाता है. इसके लिए सेम्पलिंग, नमूना संरक्षण और परीक्षण कराना विवेचना एजेन्सी की कार्यदक्षता को पहले ही कड़े कसौटी से गुजारा जाना होता है.
..........................17 मई की सुबह कुंडम के उचेहरा गाँव निवासी कुशराम परिवार के लिए बड़ी ही परेशानी भरी थी. परिवार का इकलौता नौजवान और नव विवाहित युवक राजू बीते रोज से ही गायब हो गया था. आपसी रिश्तेदारों व अन्य परिवार वालों ने काफी पतासाजी की लेकिन उन्हें कहीं कोई सफलता हाथ नहीं लगी थी. परेशान होकर कुशराम परिवार के मुखिया फूलसिंह कुशराम तथा उसके छोटे भाई दलसिंह कुशराम ने कुंडम पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज करायी. रिपोर्ट में फूलसिंह कुशराम ने कुंडम थाना प्रभारी [SHO] को बताया कि उसके पुत्र राजू सिंह कुशराम का विवाह 14 मई को मझगवां थाना के कचनारी गाँव के 19 वर्षीया समलिया के साथ हुआ था. शादी के दूसरे दिन 15 मई राजू के परिवार में सब कुछ सामान्य से हटकर था. चौतरफा खुशियों का दौर चल रहा था. गाँव के परिवेश में जैसा होता है, उससे कहीं बढ़-चढ़कर कुशराम परिवार में हो रहा था. शाम के वक्त एक अजनबी युवक वहाँ आया जिसने अपने आप को नई नवेली दुल्हन समलिया का चचेरा भाई प्रताप सिंह बताया. राजू के परिवार जनों ने उसे बैठाया, शादी वाले घर में सबके बीच समय गुजरते जैसे देर ही नहीं लगती, बातों ही बातों में रात हो गई और फ़िर भोजन का दौर शुरू हो गया. भोजन के बाद प्रताप वापस अपने गाँव जाने की कहने लगा लेकिन घरवालों के रात रुक जाने का अनुनय करने पर प्रताप ने चार पहर वहीं बिताया. दूसरे दिन यानि 16 मई को दोपहर बाद प्रताप को छोड़ने राजू भी साथ निकला था और तब से वह वापिस नहीं लौटा.
..........................पुलिस थाने में इस शिकायत को गुम इन्सान रजिस्टर में दर्ज कर समूचे जिले की पुलिस को वाइरलेस सेट से तत्काल सूचना दे दी गई. राजू का कहीं कोई पता नहीं चला, किसी थाने से कोई राहत की ख़बर न मिली. पुलिस ने पहले तो इसे एक सामान्य अनुक्रम की घटना मानकर तफ़्तीश शुरू की, जैसा कि अमूमन इस तरह कहीं अचानक काम आ जाने से चले जाने और रुकने वाले लोग दूसरे-तीसरे दिन वापस घर आ जाते है. लेकिन जब लगातार पाँच दिन तक उसका कोई पता नहीं चला तो पुलिस और राजू के परिजनों की चिंता बढ़ती चली गई. उप पुलिस अधीक्षक ने मामले की अपने स्तर पर समीक्षा की और केस में अभी तक के जाँच में आये तथ्यों को बारीकी से जोड़ना शुरू किया. केस के कुछ महत्वपूर्ण सूत्र और व्यक्ति की भूमिका संदेह से परे नजर नहीं आती देख उन पर ही विवेचना को केंद्रित कर, मुखबिर भी पतासाजी के लिए लगा दिये गये. अलग टास्क देकर पुलिस की दो टीम बना दी गई. एक टीम राजू के परिजनों, दोस्तों और नई नवेली दुल्हन समलिया से पूछताछ में लग गई तो दूसरी टीम का ध्यान राजू के चचेरे साले प्रताप जो कि घटना क्रम का अन्तिम साक्षी था, पर केंद्रित था.
............................प्रताप के बारे में पता करने के लिए पुलिस टीम जब मझगवां थाने के गाँव कचनारी पहुँचा तो वहाँ बताया गया कि इस नाम का कोई व्यक्ति उस गाँव और आस पास है ही नहीं. प्रताप द्वारा अपना पता ग़लत बताये जाने को लेकर पुलिस के शक की सुई घुमने लगी. पुलिस ने समलिया से आकर उसके बारे में पूछताछ की, पर समलिया से भी प्रताप के बारे में कोई महत्वपूर्ण जानकारी हासिल नहीं हो सकी. DSP के निर्देशन में काम कर रही टीम ने अपना दायरा उचेहरा गाँव से लगे हुए आसपास के क्षेत्रों तक बढ़ा लिया और राजू, समलिया, प्रताप के जीवन चर्या का खाका खींचा जाने लगा. दूसरी टीम को ख़बर मिली कि कुछ लोगों ने राजू को एक नहीं दो आदमियों के साथ देखा था और दोनों आदमी बाहरी लग रहे थे. तीनो एक ही साइकिल पर सवार इत्मीनान से बातचीत करते ददर गाँव डिंडोरी रोड की तरफ़ जा रहे थे. पुलिस की पड़ताल में रोज एक नई जानकारी, तो कई शिगुफ़े जुड़ने लगे. इन्हें जरुरत के मुताबिक छंटाई की जाती रही.
...........................इसी बीच चरित्र सत्यापन में लगी टीम ने DSP को चौकाने वाली जानकारी दी कि दुल्हनिया समलिया का किसी भूरा नाम के लड़के के साथ लगाव होने की बात गाँव के लोग दबी छुपी कह रहे हैं. यह बात मुखबिरों ने तस्दीक भी कर दी. कहानी में आये नये पात्र को बिना देरी किए पुलिस ने पूछताछ के लिए बुला लिया, लेकिन इस कदम से पुलिस को भी यकीन नहीं था कि वह अब इस मामलें के उस छोर पर पहुँच गई. जहाँ से आगे जाने पर भौंचक कर देने वाली बात सामने आने वाली है.
क्या था राजू के गायब होने का राज ??, क्या प्रताप भी गायब था ? या फरार ?? या फ़िर जिन्दा ही नहीं..??? भूरा ने क्या कहा अपने , राजू , प्रताप और तथाकथित प्रेयसी समलिया के बारे में. समलिया ने अभी तक क्या छुपाया था !! और क्या सही बताया था !!! क्या पुलिस विवेचना के अनसुलझे रहस्य से परदा हटाने के कगार पर थी या अभी तक रहस्य के बियाबान में ही विचरण कर रही थी.
शेष "विवेचना लेख" पढ़ें आगामी अंक भाग - दो में.
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3 comments:
एब्ने सफी बी.ए. को पढ़ने जैसा मजा आ रहा है!
अरे भाई जब मजा आने लगा तो पोस्ट बन्द कर के चले गये, बहुत सुन्दर है आप की लिखी यह कहानी, अगली कडी का इन्त्जार
धन्यवाद
इंतजार है!
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