Thursday, October 23, 2008

ब्रेन मेपिंग और नार्को टेस्ट....!!!

.............................देश के अग्रणी मानसिक स्वास्थ्य संस्थान "नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेस" के निदेशक की अगुआई में बनी विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों की छः सदस्यीय कमेटी ने ब्रेन मेपिंग के सन्दर्भ में अपने जिन निष्कर्षों का खुलासा किया है, वह काफी अहमियत रखते हैं......आइये देखते आज के समय में सर्वाधिक चर्चित टेस्ट की हकीक़त और फ़साना क्या है..!!!..............................उपरोक्त कमेटी में देश के अन्य अग्रणी संस्थानों के बिहेविरियल एंड कोगनिटिव साइंस, साइको फार्माकोलाजी, साइकिआत्री, फोरेंसिक साइंस जैसे अहम् विषयों के जानकार शामिल थे, जिन्होंने ब्रेन मेपिंग के बारे में अपने अध्ययन को अंजाम दिया. सभी जानते हैं कि आपराधिक घटनाओं में या आतंकी कार्रवाइयों में संलिप्तता की पड़ताल करने के लिए इन दिनों नार्को परीक्षण के साथ-साथ ब्रेन मेपिंग परीक्षण का बोलबाला भी बढ़ा है. ब्रेन मेपिंग में अभियुक्त को कंप्यूटर से जुडा एक हेलमेट पहनाया जाता है. जिसमें कई सेंसर और इलेक्ट्रोनिक उपकरण लगे होते हैं. फ़िर जाँच अधिकारी एवम फोरेंसिक विशेषज्ञ की मौजूदगी में उसे अपराध से जुड़ी तस्वीरें दिखाई जाती है. इसे देखकर अभियुक्त के दिमाग में उठी हलचलों की इलेक्ट्रिकल फिजिओलाजिकल गतिविधियों का विश्लेषण किया जाता है. अपराध विज्ञान में उपकरण के तौर पर काम करने के लिए एक ऐसी प्रक्रिया की जरुरत होती है जिसमें ग़लत होने की संभावना समाहित हो. बंगलौर और गांधीनगर आदि स्थानों पर जहाँ यह परीक्षण किया जाता है, क्या वहाँ इस कारक को मद्देनजर रखा गया है ?
................................वैसे सिर्फ़ ब्रेन मेपिंग नहीं अपितु नार्को टेस्ट की वैज्ञानिकता पर भी बहुत पहले सवाल खड़े किए जा चुके है. यह जानना भी दिलचस्प है कि अपने यहाँ भले ही नार्को टेस्ट लोगों को नया नजर आता हो, विकसित देशों में तो वह वर्ष 1922 में मुख्यधारा का हिस्सा बना था जब राबर्ट हाउस नामक टेक्सास के डॉक्टर ने स्कोपोलामिन नामक ड्रग का दो कैदियों पर प्रयोग किया था. दरअसल नार्को एनालिसिस टेस्ट एक फोरेंसिक टेस्ट है, जिसे टेस्ट जाँच अधिकारी, मनोवैज्ञानिक, डॉक्टर और फोरेंसिक एक्सपर्ट की मौजूदगी में अंजाम दिया जाता है. इसमे संदिग्ध व्यक्ति को सोडियम पेंताथेल नामक केमिकल का इंजेक्शन दिया जाता है. जिससे न केवल वह अर्ध बेहोशी की हालत में चला जाता है बल्कि उसकी तर्क बुद्धि / रिजिनिंग भी ख़तम हो जाती है. और फ़िर उससे सवाल पूछ कर जानकारी उगलवाई जाती है. वह व्यक्ति जो एक तरह से सम्मोहन अवस्था में चला जाता है वह अपनी तरफ़ से ज्यादा कुछ बोलने की स्थिति में नहीं होता बल्कि पूछे गए कुछ सवालों के बारे में कुछ बता सकता है. जो लोग यह मानते है कि नार्को टेस्ट में व्यक्ति हमेशा सच ही उगलता है, दरअसल उस अवस्था में भी वह झूठ बोल सकता है, विशेषज्ञों को भरमा सकता है.
................................जहाँ विकसित दुनिया के बाकी हिस्सों ने ऐसे टेस्ट को इन्वेस्टीगेशन से मुख्य रूप से पृथक कर दिया हो, ज्यादातर डेमोक्रेट दुनिया जिनमे अमेरिका और ब्रिटेन भी शामिल हैं, वहाँ ऐसे टेस्ट कुछ समय से लुप्त प्राय जैसे हैं जबकि हमारे देश में ऐसे टेस्ट की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है. किसी अपराध के संदिग्ध को पकड़ते ही लोग उसके नार्को टेस्ट की मांग करने लगते हैं कि इनका अगर नार्को टेस्ट हो जाए तो सच्चाई उगल ही देंगे. संविधान का एक अहम् तत्त्व है article - 20[3] जो कहता है कि "किसी व्यक्ति को जिस पर कोई आरोप लगे हैं, उसे अपने खिलाफ गवाह के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाएगा." अगर नार्को टेस्ट की बुनियादी अंतर्वस्तु को समझाने की कोशिश करेंगे तो इसके जरिये व्यक्ति को एक तरह से अपने खिलाफ गवाह के तौर पर इस्तेमाल किए जाने की संभावना रहती है. लेकिन विगत कुछ निर्णयों में माननीय न्यायालयों के द्वारा टेस्ट के पक्ष में मत दिया गया है.

.................................इसमें कोई दो राय नहीं कि नार्को टेस्ट में कोई व्यक्ति कुछ भी प्रलाप करे या कबूल करे. अपराध को साबित करने के लिए प्रमाणों की आवश्यकता होती ही है . टेस्ट से प्राप्त जानकारी को विवेचना में अन्य सूत्रों से कोरोबोरेट करने और सुसंगत बनाने के लिए उपयोग किया जाता रहा है. अभियुक्त को दवा पिलाकर उससे जानकारी लेने की इस कोशिश को चेन्नई एवम मुंबई हाईकोर्ट ने "यातना के श्रेणी" में रखने से मना किया और ऐसा तर्क दिया कि अभियुक्त को भले ही उसकी इच्छा के विरुद्ध प्रयोगशाला में ले जाया जाए, लेकिन टेस्ट के दौरान वह जो बात प्रगट करे, वे स्वैच्छिक हो सकती है. .................................वर्ष 2000 में तत्कालीन सरकार की सदारत में आपराधिक न्याय प्रणाली को सुधारने के लिए जो मलिमथ कमेटी बनी थी उसके जरिये कानून में सकारात्मक परिवर्तन की यही कोशिश हम देख सकते है. दरअसल नार्को टेस्ट को लेकर अमेरिकी गुप्तचर एजेन्सी सीआईए, जिसने शीत युद्ध के दौर में इसे आजमाकर सच उगलवाने की खूब कोशिश की थी, के अनुभव बहुत उत्साहजनक नहीं थे. उपरोक्त कमेटी ने भी अपने अध्ययन में इन नार्को टेस्ट को लेकर अवैज्ञानिक और सबूतों के तौर पर इस्तेमाल पर रोक लगाने की अनुसंशा की है. अतएव मामला अब कानून निर्माता सरकार, इन्वेस्टीगेशन एजेन्सी और न्यायालय के बीच है.....कि इस चर्चित अपराध अनुसंधान परीक्षण को किस रूप में उपयोगी बनाये रखा जाये.

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11 comments:

Pawan Kumar said...

समीर जी नार्को टेस्ट पर आपने इतना अच्छा लिखा है कि लगा कि हर एक सरकारी अफसर को इससे वाकिफ होना चाहिए. आप तो पुलिस सेवा में हैं भी.इधर पुलिस सेवा में इतना अच्छा स्टफ आया है लगता है कि पुलिस अब नए तकनीकों से भी जुड़ रही है आगे भी आपसे बात चीत होती रहेगी

समयचक्र said...

आपके ब्लॉग के माध्यम से अच्छी जानकारी पाठको को सुलभ होती है और पुलिस विभाग के बारे में काफी कुछ जानने का मौका मिलाता है . नार्को टेस्ट पर तथ्यात्मक जानकारी के लिए आभार .

कुश said...

क्या बात है! बहुत कुछ पता चला आज तो आपके ब्लॉग पर.. धन्यवाद इतनी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए..

Hari Joshi said...

तथ्‍यपरक जानकारी। बेहतरीन पोस्‍ट। बधाई।

डॉ .अनुराग said...

इस जानकारी के लिए शुक्रिया .पर दुर्भाग्य से इस फिल्ड के डॉ की बहुत कमी है हमारे देश में .इसके प्रशिक्षण के लिए कोई बहुत ज्यादा संसथान नही है

Abhishek Ojha said...

बड़े काम की जानकारी.

Gyan Dutt Pandey said...

एक्सीलेण्ट!
आपने निमहन्स का कोई लिंक इस बारे में दिया होता तो मजा आ जाता!

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर जानकारी दी आप ने, धन्यवाद

दीपक said...

एक ज्ञानवर्धक पोस्ट है यह !!नार्को टेस्ट के बारे मे बहुत कुछ नया जानकर अच्छा लगा !!धन्यवाद

समीर यादव said...

@ ज्ञान जी...
शुक्रिया ध्यान दिलाने का, भविष्य में जानकारी के संबंधित लिंक्स हेतु जरुर ध्यान रखूँगा. लेकिन कभी कभी ये पोस्ट के उद्येश्य के इतर और विषय को उलझाऊ बना देते हैं. ब्लॉग पर जब तक आप जैसे गुणी लोगों का फीड बेक नहीं मिलेगा..प्रयोग करना मुश्किल होता है.

@ डॉ अनुराग जी...
आपसे सहमत हूँ , शायद मेडिकोलीगल डोक्टोर्स की फिल्ड में लूप लाइन जैसे होता है. कई बार पोस्टमार्टम के लिए आँखों, ENT, आदि को डेप्लोय कर दिया जाता है तो ऐसे विशेषज्ञता से जुड़े टेस्ट में तो कोई बात ही नहीं. मेडिकोलीगल के क्षेत्र में बहुत कम डोक्टोर्स हैं, पर उनमें जो हैं उन्होंने अपने कार्य व्यवहार से मेडिको-जुरिसप्रुदेंस में अप्रतिम ख्याति भी अर्जित किया है. हमारे यहाँ डॉ डी.के. सत्पथी का नाम आदर से लीजेंडरी लोगों में लिया जाता है. वो भी इस विषय पर आपकी तरह ही विचार रखतें हैं. प्रशिक्षण संस्थान और अनुकूल वातावरण दोनों की कमी है.

36solutions said...

धन्‍यवाद समीर जी, व्‍यावसायिक रूप से अपराध कानूनों में मेरी रूचि एवं दक्षता दोनो कम है, इस कारण मेरे लिये आपके द्वारा दी गई जानकारी बहुत काम की है । सनद रहे वक्‍त पर काम आवे ...... धन्‍यवाद ।