Tuesday, October 28, 2008
सुप्रकाश की खातिर जलते
तेरे आँगन की अंधियारी मेरे आँगन में भर देना
लेकिन इससे पहले साथी एक दीप चौखट धर देना...
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******** दीप पर्व की शुभकामनायें *********
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हमको खुशियाँ सहित सुहाती सबकी परम आजादी
लेकिन जाने क्यों भाती हैं उनको बस बरबादी
मानवता की सदा हिफाजत हमने चाहा
दानवता का उन्होंने है साथ निबाहा
करतूते इंसा के पद से नीचे उन्हें गिराती ...
लेकिन जाने क्यों भाती हैं उनको बस ..
हम अनेकता में भी एकता को जीते हैं
पीड़ित रहकर भी सबकी पीड़ा पीते हैं
नीति निभाने विवश धरा की परम्परा से आदी ...
लेकिन जाने क्यों भाती हैं उनको बस ..
रहें साथ सहृदय सुदृढ़ हो भाईचारा
विकसित मानवता में हो अस्तित्व हमारा
यह वसुधा परिजन है हमने की है सदा मुनादी ...
लेकिन जाने क्यों भाती हैं उनको बस ..
हम समता के साथ समन्वय को अपनाते
संस्कार श्रम संस्कृतियों के हमसे नाते
सुप्रकाश की खातिर जलते दीप-तेल बन बाती ...
लेकिन जाने क्यों भाती हैं उनको बस ..
रचियता....
सुकवि बुधराम यादव
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4 comments:
is baar manaye aisi diwali, koi kouna rahe na khali, ghar ghar mangal deep jalayen,sabke dilo ko harsayen. narayan narayan
सबके विचार अन्तत: बदलेंगे। आशा बनाये रखी जाय।
दीपावली मंगलमय हो।
Bahut uttam!!
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/
आपको भी सपरिवार दीपावली की शुभकामनाएं ।
घुघूती बासूती
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