Friday, April 29, 2011

गाँव कहाँ सोरियावत हें..भाग-3

इस अंक में गाँव कहाँ सोरियावत हें से सुकवि बुधराम यादव की लम्बी कविता का प्रथम भाग प्रस्तुत है. छत्तीसगढ़ी के सुधि पाठकों के लिए कुछ शब्दों के हिंदी अर्थ को भी इस भाग के अंत में स्थान दिया गया है ताकि कविता का पूरे भाव से रसास्वादन किया जाए.


गठरी सब छरियावत हें

देखते देखत अब गांव गियाँ
सब शहर कती ओरियावत हें!
कलपत कोयली बिलपत मैना
मोर गाँव कहाँ सोरियावत हें!
ओ सुवा ददरिया करमा अउ
फागुन के  फाग नंदावत हे
ओ चंदैनी ढोला-मारू
भरथरी भजन बिसरांवत हे!


 डोकरी दाई के  जनउला*
कहनी किस्सा आनी बानी!
ओ सुखवंतिन के  चौरा अउ
आल्हा रमायन पंडवानी!
तरिया नदिया कुंवाँ बवली के
पानी असन अटावत हें!

सुकुवा* ऊवत नींद भर रतिहा
अउ कुकरा बासत भिनसरहा
अब पनिहारिन गगरी* मांजय
न बहरी बाजय मुंधियरहा*!
उठ नवा बहुरिया घर लीपय
 न गोबर हेरंय लछमैतीन !
ढेंकी* मूसर के  आरो तो
बिन सूने गुजर गय कइयो दिन!
अब खोर गली छर्रा-छिटका*
न अंगना गोबर लिपावत हे!

अमली-चटनी आमा-चानी
भाटा-खोइला* सुकसा-भाजी*!
बंडी पोलखा के  लेन देन
ओ हाट-बाट खउवा-खाजी!
बर पीपर पिकरी* चार जाम
बन बोइर तेंदू अउ औंरा!
चर्रा गिल्ली डंडा फुगड़ी
सब बिसरागंय बांटी भौंरा!
अब नवा जिनिस मन ऊपरागंय
जुन्ना* जमो तरियावत* हें!

अब अधरतिहा दौंरी फांदय
न पंगपंगात* नागर साजंय
जतवा* कहुं बाजय घरर घरर
न दही मथावय घमर घमर!
पहुना परमेसर नइ मानय
गीता रमायन नइ जानय!
न किंजरय फेरी गली गली
न सरेखंय अब हली भली !
जुग भर के  जोरे मया पिरीत
के  गठरी सब छरियावत हे!

ओ खेतवरिया के  रूखुवा म
रेरा चिरइया के  खोंधरा*!
रूंधे बांधे बारी बखरी
पाके  सुार जोंधरी जोंधरा!
ओ हरेली के  गेंड़ी अउ
पोरा के  नंदी जंतुलिया!
बिहाव के  सिंघहा-झांपी* अउ
नोनी के  नानुक  झंपुलिया*
करसा करी के  लाड़ू संग
अब बतासा बिसरावत हें!

ओ तरिया तीर नदिया खंड़ म
कुहक त फुदकत बइठे कोयली!
ओ घाघर तितुर के  तुर तुर
अउ मैना के  अइंठे बोली!
पड़की  के  घुटरब* घुटुर घुटुर
अउ कठखोलवा के  खटर खटर!
खंचवा* कस आँखी खुसरा के
घुवा के  बड़का  बटर बटर!
ओसरी पारी सब गाँव छोड़
डोंगरी पहरी बर जावत हें!

भूखन घर बाबू के  छट्ठी
दुखिया घर के  ओ अतमैती* !
बर पीपर अउ लीम छइहाँ तरि
गुड़ी म बइठे पंचयती!
उन पंच कहाँ परमेसर कस
अब तो बछवा कस अदरा* हें।
कहे बर छांटे-निमेरे
पन सिरतो बदरा-बदरा हें!
लरहा मरहा तक  पद पाके
रतिहा भर म हरियावत हें!

अब मरघटिया अउ गौचर का
धरसा* म धांन बोवावत हे!
गउठान बिना कोठा भीतर
गरूवा बछरू बोमियावत* हें!
जेती देखव बेजा कब्‍जा
रस्ता अउ डगर छेंकाये हें।
सब पाप पोटारे बइठे हें
पुन कौंड़ी असन फेंकाये हें!
लोटा धर बाहिर जाये बर
माई मन बड़ सकुचावत हें!

जुन्ना दइहनही म जब ले
दारूभट्ठी होटल खुलगे!
टूरा टनका  मन बहकत हें
सब चाल चरित्‍तर  ल भुलगें!
मुख दरवाजा म लिखाये
हावय पंचयती राज जिहाँ।
चतवारे* खातिर चतुरा मन
नइ आवत हावंय बाज उहाँ!
गुरतुर भाखा सपना हो गय
सब कॉंव कॉंव नरियावत हें!

*हिन्‍दी अरथ - जनउला : पहेली बुझाना,  सुकुवा : शुक्रतारा,  गघरी : पानी का घड़ा,  मुंधरिहा : भोर का  समय,  ढेंकी : पैर से अनाज कूटने हेतु लकड़ी का  उपकरण,  छर्रा-छिटका : छिड़कना,  भांटा-खोइला : धूप में सुखाए गए कटे हुए भटे के  टुकड़े,  सुकसा-भाजी : धूप में सुखाई गई चना,तिवरा,गोभी आदि की  भाजी,  पिकरी : पीपल का  फल, जुन्‍ना : पुराना, तरियावत : नीचे होना, पंगपगांत : सूर्योदय पूर्व, जतवा : कोदो दलने हेतु मिट्टी की बड़ी चकिया,  खोंधरा : घोंसला,  झांपी : शादी में कन्‍या पक्ष की  ओर से वर पक्ष को सगुन के  सामान भरकर दिये जाने वाला बाँस से निर्मित ढक्कन सहित बड़ा टोकना,  झपुलिया : ढक्‍कन वाली बाँस की विशिष्ट टोकरी,  घुटरब : आवाज निकालना,   खंचवा : गड्ढा,  अतमैती : मृत्‍युभोज, अदरा : नवसिखिया, धरसा : गाँव में निस्तार हेतु बैल गाडिय़ों एवं जानवरों के आने-जाने के  लिए छोड़ा गया चौड़ा रास्ता,  बोमियावत : अधीरता से आवाज निकालना,  चतवारे : साफ करना

4 comments:

Sapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com ) said...

सुकुवा* ऊवत नींद भर रतिहा
अउ कुकरा बासत भिनसरहा
अब पनिहारिन गगरी* मांजय
न बहरी बाजय मुंधियरहा*!
उठ नवा बहुरिया घर लीपय
न गोबर हेरंय लछमैतीन !
ढेंकी* मूसर के आरो तो
बिन सूने गुजर गय कइयो दिन!
अब खोर गली छर्रा-छिटका*
न अंगना गोबर लिपावत हे!

बेहतरीन रचना

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

अइसन रचना पढ़ के अपन छत्तीसगढ़ी भासा उपर गरब होथे.शब्द हे,भाव हे,लिखइया चाहिए.बेतुक तुकबंदी करके सीडी निकाल के कतको झन बाजार ला पाट दे हें.यहू नहीं सोचयं के ये सीडी ला दूसर प्रदेश के मनखे मन सुनिहीं तो हमर भासा के बारे मा बिचार बनाहीं.श्री बुधराम यादव के रचना देश कोन्हों जगह मा पढ़े जाही ,छत्तीसगढ़ी ला संपन्न भासा मानबे करिहीं.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

पोस्ट ए कमेन्ट नज़र नहीं आ रहा है

समीर यादव said...

Sapna Nigam , अरुण कुमार निगम जी आप लोगों के स्नेह और शुभकामनाओं के लिए आभार. मैं रचनाकार तक आपकी बात पहुँचाने का प्रयास करूँगा. स्नेह बनाये रखें.