सुकवि बुधराम यादव की लम्बी कविता "गाँव कहाँ सोरियावत हे" की अगली कड़ी भाग- 7 के रूप में प्रस्तुत है..
इन पंक्तियों में सुकवि गाँव के परिवेश में कृषि, फसल. विश्वास और परम्परा के लोप होते परिदृश्य पर बयान करते हुए .. दुबराज चांउर के महमहाब..
दुबराज चांउर के महमहाब
बेरा कुबेरा नगरिहा अउ
गड़हा गाड़ी जोतंय!
मसमोटी* म हांक त बैला
गजब ददरिया सोंटय!
पारय टेही संगवारी ह
अउ जुवाब म गावय!
हिरदे के जमो जियान ल
चतुरा जनव घटावय!
खेतखार का डगर डगर अब
ट्रक ट्रेक्टर टर्रावत हें!
मिसे कूटे धान पान अउ
ओन्हारी संझके रहा!
दौंरी बेलन दूरिहागंय
आ गय ट्रेक्टर टेर टेरहा!
मुठिया* डाँड़ी धुरखिल्ली*
सुमेला* सूपा कलारी* !
बावन बख्खर कुड़ी* कोपर*
दतरी* नागर जुवाँरी!
नहना* जोता* बरही* का
परचाली* नाव भुलावत हे!
घी राहर दार के संग सुघ्घर
दुबराज चाउँर के महमहाब!
धनिया मेथी संग नइ रहि गय
गोभी के तइहा कस रूआब!
भुइंयाँ भर म जहर मिलावत
हे रसायन खातू
साग पान ल घलव चढ़ाथे
सूजी दवाई नाथू !
मनखे बैरी बन गंय अपने
मौत ल अपन बिसावत हें!
गाँव जगावंय बड़कू बैगा
बरिख दिन म आके !
ठाकुर दइया महमाई म
बस्ती संग जूरियाके !
पंडऱा बोकरा कर्रा कुकरा
उल्टा पाँख के कुकरी!
सबके सेती चाऊँर चबावय
बड़कू बैगा पोगरी* !
पितर-गोतर देव-धामी अब
वइसन कहाँ मनावत हें।
असली जमो सिरावत हावंय
नकली पाँव पसारंय!
भीतर बगरत हे अंधियारी
ऊपर दियना बारंय !
राचर* फइका ओठगाके* तब
जहां चहंय चल देवंय !
सुन्ना घर कुरिया के सरबस
सोर परोसी लेवंय !
आपुस के बिस्वास जनव अब
पंछी बन उडिय़ावत हें !
घर घुसरके मारंय पीटंय
जबरन लूटंय खजाना !
बेरा कुबेरा रस्ता बाट के
कहिबे काय ठिकाना !
निचट पराये के हितवा बन
जाके तलुवा चाटंय !
भाई भाई ले दुरमत कर
अपने बांह ल काटंय !
जांघ ठोंक के बैरी जइसन
अपने ल हुरियावत* हें !
हिंदी अरथ – मुठिया- हल को हथेली से दबाने हेतु लकड़ी का हैंडल, धुरखिल्ली- हल या गाड़ी की मुय डंडी के सामने सिरे में लगी लकड़ी की कील जिससे हल जुँवारी और गाड़ी डांड़ी बँधी होती है , सुमेला- गाड़ी की डाँड़ी से जानवर को बाँधने हेतु प्रयुक्त लकड़ी का डंडा, कलारी- फसल की मिसाई के समय उलट-पलट,सींचने हेतु लोहा या लकड़ी का उपकरण, बक्खर- गन्ने की खेत को जोतने वाला बड़ा हल, कुड़ी- गेहँ,चना, मसूर आदि को कतारबद्घ बोनी क रने हल से जुड़ा भाग, कोपर- जूती गीली जमीन को समतल करने का उपकरण , दतरी- कोदो, अरहर की फसल की गुड़ाई करने लकड़ी का दांतो वाला उपकरण , नहना- हल और जुँवाड़ा को बाँधने वाली चमड़े की डोर, जोता- परचाली, सुमेला से बँधी रस्सी, बरही- चमड़े की डोर , परचाली- हल की जँवारी में लगी चपटे आकार की लकड़ी, पोगरी- अकेले ही, स्वयं के , राचर- घरों में लगे लक ड़ी के बत्तों से बने दरवाजे, जो बोरे, पुराने कपड़े, टीन के चद्ïदर से ढके होतें हैं या सिर्फ बोरे से बने होते हैं , ओठगाके-सांकल व ताला के बिना दरवाजा बंद करना या सटाकर रखना, हुरियावत- लड़ने के लिए ललकारना.
1 comment:
सुकवि बुधराम यादव काफी भाव-प्रवण लिखते हैं ..बधाई.
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