हम तेरी मनुहार में मितवा कैसे गीत सुनाये
सिसक रहे सब साज उम्र के कैसे राग मिलाये
सुख दुःख की अनुभूति
वक्त ने बेहद जटिल दिया है
जीते बाजी हार में यूँ
उसने तब्दील किया है
कई विसंगतियों के कितने कारण क्या बतलाये
हम तेरी मनुहार में मितवा कैसे गीत सुनाये
अभिशापित सी हुई जिंदगी
नीरवता को जीने निकट
अकिंचन इस काया के
फटेहाल को सीने
अनुभव की कुछ अर्जित दौलत है जो तुम्हें लुटाएं
हम तेरी मनुहार में मितवा कैसे गीत सुनाये
संध्या साथ लिए आती है
निशा एक अनजानी
किसको व्यथा बताएं अपनी
किसको राम कहानी
रात पहाती है आँखों में बैठे दिवस बिताये
हम तेरी मनुहार में मितवा कैसे गीत सुनाये
इस विराम सफ़र में थककर
पग जब भी रुक जाते
अनजाने अनचाहे बरबस
गीत अधर तक आते
टुकडों में बिखरे शब्दों से कैसे छंद बनाए
हम तेरी मनुहार में मितवा कैसे गीत सुनाये
रचयिता
सुकवि बुधराम यादव
बिलासपुर
आदरणीय बुधराम यादव जी की रचनाये सुनता पढता मै बड़ा हुआ हूँ... मूलतः यह रचनायें अद्भुत कवित्व....के साथ गेय शब्दावली शैली में रचित हैं , जो की आदरणीय बुधराम जी के मुख से सुने बिना अधूरे हैं। chhatisgadhi लोक साहित्य में यह वस्तुतः दुर्लभ है। लेकिन यहाँ पर मेरी भी विवशता है कि उपलबध्ता के परिसीमा में जो हो सका है वह आपके सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ। आदरणीय को सुकवि कि उपाधि उक्ताशय से ही प्रदत्त है। कभी कवि सम्मलेन अथवा किसी गायन कार्यक्रम में उन्हें सुनना आदरणीय के प्रति सम्मान को वृद्धि ही करती है। अब आप भी उनकी रचनाओं का पाठन करते हुए उस अद्भुत गेयता का रसास्वादन का अनुभव करें।
3 comments:
bhut badhiya. jari rhe.
प्रथम्त:आज आपके कमेंट बाक्स ने अपना हडताल खत्म कर दिया इसके लिये बधाई ॥ जीवन को प्रेरीत करती और उर्जा देती इस रचना के लिये आभार ॥
सुकवि बुधराम यादव की इस बेहतरीन रचना को पढ़वाने का आभार. जानकर अच्छा लगा, आप जबलपुर में हैं. मैं भी जबलपुर का ही हूँ किन्तु विगत १० वर्षों से कनाडा आ बसा हूँ. मेरे ब्लॉग का पता http://udantashtari.blogspot.com/ है. हल्का फुल्का कुछ लिखते रहते हैं.
Post a Comment