Tuesday, September 9, 2008

करना कभी न भीष्म प्रतिज्ञा दुविधा में खो जाओगे





करना कभी न भीष्म प्रतिज्ञा दुविधा में खो जाओगे
तन से दुर्योधन का मन से अर्जुन का हो जाओगे



जहाँ सिंहासन रत हो केवल अपनों के हित पालन में
राजधर्म से निकट विमुख हो सत्ता के संचालन में
वहां प्रभावित दंभ कपट से कब तक ना रह पाओगे
तन से दुर्योधन का मन से अर्जुन का हो जाओगे



समय बड़ा बलवान किसी से यारी नहीं निभाता है
करनी के प्रतिफल करता को यथा उचित दे जाता है

आसक्ति अंतस में पाले चैन कहाँ से पाओगे
तन से दुर्योधन का मन से अर्जुन का हो जाओगे



जो जैसा वैसा दिखलाये अच्छा वही तो दर्पण है
निष्ठा और विश्वास जगाये सच्चा वही समर्पण है
अन्यायी के नमक में ऐसा असर कहाँ भर पाओगे
तन से दुर्योधन का मन से अर्जुन का हो जाओगे



होनी होती प्रबल उसे कब कहाँ किसी ने रोका है
किंतु अवांछित परिणामों को बड़े बड़ों ने भोगा है
चीर हरण जैसी घटना के मूक साक्षी रह जाओगे
तन से दुर्योधन का मन से अर्जुन का हो जाओगे



सिर्फ़ विषमताओं को ढोते श्रांत क्लांत मन हो जाए
आखिर प्रायश्चित की खातिर सरशैया भी अपनाए
फ़िर भी कुछ अपराध बोध से जब नयना छलकाओगे
तन से दुर्योधन का मन से अर्जुन का हो जाओगे



रचयिता
सुकवि बुधराम यादव
बिलासपुर

8 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

बहुत अच्छा लिखा है . भाव भी बहुत सुंदर है. पर्याप्त जानकारी भी है. जारी रखें

Shastri JC Philip said...

कभी कभी प्रतिज्ञा न करना महंगा पड जाता है!!



-- शास्त्री जे सी फिलिप

-- बूंद बूंद से घट भरे. आज आपकी एक छोटी सी टिप्पणी, एक छोटा सा प्रोत्साहन, कल हिन्दीजगत को एक बडा सागर बना सकता है. आईये, आज कम से कम दस चिट्ठों पर टिप्पणी देकर उनको प्रोत्साहित करें!!

अनुनाद सिंह said...

कविता का शब्द सौन्दर्य मनोरम है। अच्छा कटाक्ष है!!

कंचन सिंह चौहान said...

समय बड़ा बलवान किसी से यारी नहीं निभाता है
करनी के प्रतिफल करता को यथा उचित दे जाता है

आसक्ति अंतस में पाले चैन कहाँ से पाओगे
तन से दुर्योधन का मन से अर्जुन का हो जाओगे



जो जैसा वैसा दिखलाये अच्छा वही तो दर्पण है
निष्ठा और विश्वास जगाये सच्चा वही समर्पण है
अन्यायी के नमक में ऐसा असर कहाँ भर पाओगे
तन से दुर्योधन का मन से अर्जुन का हो जाओगे



होनी होती प्रबल उसे कब कहाँ किसी ने रोका है
किंतु अवांछित परिणामों को बड़े बड़ों ने भोगा है
चीर हरण जैसी घटना के मूक साक्षी रह जाओगे

bahut achchhe..... bhav evam lay satik.....! hamse bantane ka shukriya

दीपक कुमार भानरे said...

बहुत अच्छा लिखा है . भावः बहुत ही सुंदर है .

महेन्द्र मिश्र said...

बहत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति आभार.

दीपक said...

होनी होती प्रबल उसे कब कहाँ किसी ने रोका है
किंतु अवांछित परिणामों को बड़े बड़ों ने भोगा है
चीर हरण जैसी घटना के मूक साक्षी रह जाओगे
तन से दुर्योधन का मन से अर्जुन का हो जाओगे

लगता है कही किसी का सत्य बोल रहा है ,आत्मा का अनुनाद है यह छंद !!!

अभिन्न said...

har pankti me kavita ki aatma hai bahut sundar likhte rahiye