Wednesday, September 17, 2008

सबले गुरतुर गोठियाले ...





सबले गुरतुर गोठियाले तैं गोठ ला आनी बानी के
अंधरा ला कह सूरदास अउ नाव सुघर धर कानी के




बिना दाम के अमरित कस ये
मधुरस भाखा पाए
दू आखर कभू हिरदे के
नई बोले गोठियाये



थोरको नई सोचे अतको के दू दिन के जिनगानी हे
सबले गुरतुर गोठियाले तैं गोठ ला आनी बानी के




एक आखर दुरपती के बौरब
जब्बर घात कराइस
पापी दुर्योधन जिद करके
महभारत सिरजाइस



रितवैया नई बाचिन कौरव कुल चुरवा भर पानी के
सबले गुरतुर गोठियाले तैं गोठ ला आनी बानी के




एईसनाहे एक आखर धोबी
भोरहा मा कहि डारिस
मूड के पथरा गोड़ में अड़हा
अलकरहा कच्चारिस

सुन के राम निकारिस सीता ल तुरते रजधानी ले
सबले गुरतुर गोठियाले तैं गोठ ला आनी बानी के




परके बुध परमती मा कैकयी
दू आखर बर मागिस
अवध राम बिन सुन्ना होगे
दशरथ परान तियागिस

महुरा हितवा नई होवे ना राजा ना रानी के
सबले गुरतुर गोठियाले तैं गोठ ला आनी बानी के




बसीकरण के मंतर मीठ भाखा मा
गजब समाये हे
चिरई चुरगुन सकल जनावर
मनखे तक भरमाये हे

कोयली अमरईया मा कुहके काउआ छानी छानी के
सबले गुरतुर गोठियाले तैं गोठ ला आनी बानी के



रचियता
सुकवि बुधराम यादव
बिलासपुर

4 comments:

Anil Pusadkar said...

सुकवि बुधराम जी को पहले भी आपके ब्लोग पर पढा था और इस बार भी पढने का मौका मिला, आभार आपका

दीपक said...

छ्त्तीसगढी और छ्त्तीसगढ के प्रति प्रेम का अच्छा चित्रण है !!

महेन्द्र मिश्र said...

bahut badhiya rachana . chhattishgarh bhasha ke prati apka lagaav sarahaniy hai .aap apne pita ki sundar rachanao ko blaag me sthaan de rahe hai apke is umda prayas ki jitani bhi sarahana ki jaye kam hai . bahut bahut shukriya abhaar.

समीर यादव said...

अनिल भाई आपका आभार ...सुकवि बुधराम यादव जी को आपने पढ़ा एवं सराहा. दीपक भाई एवं मिश्रा जी को भी सुकवि बुधराम जी की ओर से हार्दिक धन्यवाद . यह एक प्रयास है मेरी और से की chhattisgarhi की रचनाओं को नेट पाठकों के बीच भी लाने का. अच्छा प्रतिसाद मिलने पर यह उर्जा भी बनी रहेगी...!