हो न तू उदास कभी होना न तू निराश
तेरे लिए गाऊँगा मै गीत जिंदगी
फिर तुझे बनाउंगा मैं मीत जिंदगी
जो सहज सरल हो और मन में न कपट धरे
औरों की खुशी का ही सदा ख़याल जो करे
न परायों की विरासतों में ही नजर रखे
अपनों के अभिन्न दुश्मनों के भी जो हो सखे
एक अजातशत्रु हो विनीत जिंदगी ...
तेरे लिए गाऊँगा मै गीत जिंदगी
लौह सा जमाने के जो ताप से पिघल रहा
बन दधिची अस्थियों जो वज्र में हो ढल रहा
वक्त की चलन जो भाँपकर कदम बढ़ा रहा
कर्म के फ़लक पे रंग नित नया चढ़ा रहा
बिन हुए किसी से भयभीत जिंदगी ....
तेरे लिए गाऊँगा मै गीत जिंदगी
त्याग भेदभाव सिर्फ़ स्नेह से गले मिले
विपदाओं में भी लगे जो सदा खिले खिले
अंतरात्मा में तनिक निज का ना गुमान हो
सत्य घुले शब्द प्रेम से पगे जुबान हो
जिसका हो स्वभाव नवनीत जिंदगी ....
तेरे लिए गाऊँगा मै गीत जिंदगी
फिर तुझे बनाउंगा मैं मीत जिंदगी
सुकवि बुधराम यादव
7 comments:
आदरणीय बुधराम जी यादव की सुंदर रचना हम सभी को बाटने के लिए धन्यवाद. शब्दों का सरल सुंदर भावः रचना को बेहद रोचक बना देता है .
सुंदर रचना को बाटने के लिए धन्यवाद.
वाह बहुत खुब,बेहद सुंदर,उम्दा,प्रेरक !!
aap ki ye rachna ko padh kar accha laga kuch alag thi ye kavita badhai ho aap ko.........
समीर भाई,
बहुत बहुत आभार. कितने सरल शब्दों में कितनी गहरी बात..बुधराम जी को पढ़कर आनन्द आ जाता है.
आपके जरिये फ़िर बुधराम जी को पढने का सौभाग्य मिला,आभार आपका
सुंदर रचना को बाटने के लिए धन्यवाद.
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