Friday, August 15, 2008

साखी....


साखी....



एक झन के जन्माये एक अँगना मा खेलेन बाढें !
हिन्दू सिख ईसाई मुल्ला फेर कैसे बन ठादें !!



जनधन पाके अतियाँवय अउ पद पाके गरुवाय !
जोबन पाके इतरावय पर एक्को संग ना जाय !!



बिरथा करत गुमान हवस ये कभू दगा दे जाहय !
हाड़ मास के पुतरी संगी माटी मा मिल जाहय !!



कए दिन के जिनगानी सुघ्घर हांसत खेलत पहा ले !
गुरतुर भाखा बाउर के भईया अंतस ला फरियाले !!



काम क्रोध अउ लोभ इनकर किस्सा ला कतेक बखानी !
जिनगी के जब्बर बैरी तीनों अवगुन ल जानी !!



घरी घरी घुरत हे जिनगी पल पल खिरत जाय !
बिना तेल के बाती कस जाने कब जाहे बुझाय !!



चार लाख चौरासी भटके तब मनखे तन पाये !
देहरी मा ठाडे गुण भीतर घुसरे के बिसराये !!



पानी भीतर के पुरैन कस ये दुनिया मा जीले !
जम्मो रस के सार राम-रस तैं जी भर के पीले !!



दुसर के दुःख देख देख दुरिहाले जौन मुस्काथे !
'बुध' काबर नई सोचे एक दिन ओकरो ऊपर आथे !!



रचयिता .....
सुकवि बुधराम यादव..
बिलासपुर...

1 comment:

Udan Tashtari said...

स्वतंत्रता दिवस की आपको भी बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.