.................... जागरण गीत .................
मालिक बन गयं नौकर भैया
ऊंच हबेली के रहवैया !
हमरे घर ले हमला धकियावत हें
अब तो जागव छतिसगद्रिया मन
मौउका ये हाथ ले गवावंत हे !!
लोटा धर के आइन जेमन होगयं सेठ महाजन
धान कटोरा सजाइन तेमन हो गयं भाट अउ मांगन
हमर ओरिया घाम घलाईया
हमर देहे ला खवईया
हमरे बर कुकुर कस गुर्रावत हें !
अब तो जागव छतीस..............
हमर सत इमान धरम के इन होगें बयपारी
होत बिहनिया झाँकत हावन इंखर हम दुवारी
इन भाइन खुर्सी बैठवैया
हमन टहल के बजवैया
हुकुम हमर ऊपर इन चलावत हें !
अब तो जागव छतीस ..
दिन मा दू रात मा चार महल इन सिर्जाथें
हमर छानी-परवा उघरा भितिया अउ भहराथे
हितवा बन के बिष देवइया
जोंक जनव ये लहू पिवईया
हमर आन्छत इन मजा उड़ावत हें
अब तो जागव छतीस.....
घर आये पहुना कस सुघर उंच पीढा बैठारेन
अपन पेट के बाना मार के इन्कर पेट मा डारेन
खाके पतरी छेदा करइया
बाहिर डेहरी के बैठिया
घर मा हमर दवां ये बगरावत हें !
अब तो जागव छतीस ..
का गुन मा थोरे कउनो ले का बल के हम हीन
बीत गे ओ समे जवंरिहा फिर गय अब ओ दिन
ये भुइंया के सेवा बजैया
छत्तीसगढ़ ला मोर कहैया
पार बांधव पानी अब बोहावत हे !
अब तो जागव छत्तीसगढ़ मन मौका ये हाथ ले गवावंत हे .......!!
............ रचनाकर
........सुकवि बुधराम यादव
No comments:
Post a Comment