Saturday, August 16, 2008

मुक्तक..



मुक्तक..



पर के पीरा हा जेकर हिरदे मा जनावत हे
पर के पीरा ल जौन अपन कस बनावत हे !
ऐसनहा मनखे, मनुख नोहय देवता ये
पर के पीरा हरत जौन जनम पहावत हे !!


मांगे ले इक घरी ना कौनो उधार देंहय
बुडे जिनगी के डोंगा नई कउनो उबार देंहय !
माउका मिले हे जम्मो बिगडे बना ले संगी
रो रो गोहराबे तभो न कउनो सुधार देंहय !!



सत अउ इमान सही कउनो धरम नइये
अपन बिरान सही कउनो भरम नइये !
पर के हितवा बन के जिनगी पहा ले
'बुध' अइसन गियान सही कउनो मरम नइये !!



रतन अमोल धरे इंहा उंहा भटकत हें
बिरथा बर रात दिन माथा ला पटकत हें !
मरम नई पाइन सिरतो मनुख तन पाये के
सैघो ला छांड तभे आधा मा अटकत हें !!


बूता ओसरावय नहीं एती ओती टारके मा
रस्ता नापावय नहीं मरहा जईसे सरके मा !
सुघर करम के बिन जिनगी महमहावय नहीं
बैरी डरावे नहीं दुरिहा ले बरके मा !!


रचयिता...
सुकवि बुधराम यादव
बिलासपुर.....
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....................... परिचय...............
..........बुधराम यादव ............
पिता का नाम - श्री भोंदू राम यादव
पत्नी - श्रीमती कमला देवी यादव
जन्मतिथि - 3 मई 1946
पता - ग्राम खैरवार (खुर्द) तहसील-लोरमी, जिला-बिलासपुर, छत्तीसगढ़.
शैक्षणिक योग्यता - सिविल इंजीनियरिंग में पत्रोपाधि अभियंता
साहित्यिक अभिरुचि - गीत एवम कविता लेखन छत्‍तीसगढी एवम हिंदी में, सतसाहित्य अध्ययन चिंतन और गायन
कृतियाँ - काव्य संग्रह " अंचरा के मया " छत्‍तीसगढी गीत एवम कविता संग्रह प्रकाशित
प्रकाशन एवम प्रसारण - वर्ष 1966-67 से प्रयास प्रकाशन बिलासपुर से प्रकाशित काव्य संग्रह 'खौलता खून', मैं भारत हूँ, नए गीत थिरकते बोल, सुघ्घर गीत एवम भोजली आदि में रचनाएँ प्रकाशित हुई . इनके अतिरिक्त अन्य आंचलिक पत्र पत्रिकाओ एवम काव्य संग्रहों में भी रचनाओं का प्रकाशन होता रहा है. आकाशवाणी तथा गोष्ठी एवम कवि सम्मेलनों के माध्यम से भी निरंतर साहित्य साधना करते रहें हैं.
सम्प्रति - अभियंता के पद पर विभिन्न स्थानों में शासकीय सेवा करते हुए साहित्य साधना में सक्रिय रहे, वर्तमान में पद से सेवानिवृत होकर बिलासपुर में सक्रिय.
वर्तमान पता - एम.आई.जी. ए/8 चंदेला नगर रिंग रोड क्र. २ बिलासपुर, छत्तीसगढ़

3 comments:

Anil Pusadkar said...

sukavi budhram jee ko dusri baar padh raha hun.achha laga,aapke blog par pehli baar aaya badhai aapko

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर कविताएँ।
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रक्षा-बंधन का भाव है, "वसुधैव कुटुम्बकम्!"
इस की ओर बढ़ें...
रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकानाएँ!

रवि रतलामी said...

बने बढ़िया लिखथस गा तें हर. अपन मन के भाखा मा पढ़े अऊ सुने के मजा अलग हावे. त कुछ कविता मन ल रेकार्ड कर छत्तीसगढ़ी मा सुनाव तब अऊ मजा आही...